कागळ कोण लेई जायरे मीरा पदावली
कागळ कोण लेई जायरे मीरा बाई पदावली
कागळ कोण लेई जायरे
कागळ कोण लेई जायरे मथुरामां वसे रेवासी मेरा प्राण पियाजी॥टेक॥
ए कागळमां झांझु शूं लखिये। थोडे थोडे हेत जणायरे॥१॥
मित्र तमारा मळवाने इच्छे। जशोमती अन्न न खाय रे॥२॥
सेजलडी तो मुने सुनी रे लागे। रडतां तो रजनी न जायरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल तारूं त्यां जायरे॥४॥
ए कागळमां झांझु शूं लखिये। थोडे थोडे हेत जणायरे॥१॥
मित्र तमारा मळवाने इच्छे। जशोमती अन्न न खाय रे॥२॥
सेजलडी तो मुने सुनी रे लागे। रडतां तो रजनी न जायरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल तारूं त्यां जायरे॥४॥
हृदय तुमकी करवायो । हूं आलबेली बेल रही कान्हा ॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । मुरली क्यौं बजावे कान्हा ॥२॥
ब्रिंदाबनमों कुंजगलनमों । गड उनकी चरन धुलाई ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । घर घर लेऊं बलाई ॥४॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । मुरली क्यौं बजावे कान्हा ॥२॥
ब्रिंदाबनमों कुंजगलनमों । गड उनकी चरन धुलाई ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । घर घर लेऊं बलाई ॥४॥
प्रभु के प्रति गहरी विरह और अनन्य भक्ति का भाव इन भजनों में समाया है। मन की व्याकुलता, जैसे कागज के पत्र के माध्यम से प्रिय तक संदेश भेजने की तड़प, प्रभु से मिलन की गहन इच्छा को दर्शाती है। यह विरह हृदय को बेचैन करता है, जैसे यशोदा का अन्न न खाना या रातभर की बेचैनी, पर यही प्रेम भक्त को प्रभु के और करीब ले जाता है। प्रभु का स्मरण, उनकी मुरली की धुन, और उनकी शोभा—मोर मुकुट, पीतांबर—मन में उनकी छवि को जीवंत करती है। जैसे कोई प्रिय की स्मृति में डूबकर उसकी हर बात को याद करता है, वैसे ही भक्त का मन वृंदावन की कुंज-गलियों में प्रभु की चरण धूलि से सजा रहता है। प्रभु की भक्ति में डूबकर मन सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है, और उनकी शरण में ही सच्चा सुख मिलता है। उदाहरण के लिए, जैसे कोई पथिक थककर घर की ओर लौटता है, वैसे ही आत्मा प्रभु के चरणों में विश्राम पाती है। हर घर में उनकी भक्ति की बलाई फैलाने का भाव यह सिखाता है कि प्रभु का प्रेम बांटने से ही जीवन सार्थक होता है। उनकी मुरली की धुन हृदय को प्रेम की बेल बनाकर प्रभु में लीन कर देती है।
मनमोहन गिरिवरधारी ॥ध्रु०॥
मोर मुकुट पीतांबरधारी । मुरली बजावे कुंजबिहारी ॥१॥
हात लियो गोवर्धन धारी । लिला नाटकी बांकी गत है न्यारी ॥२॥
ग्वाल बाल सब देखन आयो । संग लिनी राधा प्यारी ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । आजी आईजी हमारी फेरी ॥४॥
बालपनमों बैरागन करी गयोरे ॥ध्रु०॥
खांदा कमलीया तो हात लकरीया । जमुनाके पार उतारगयोरे ॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत । बनसीकी टेक सुनागयोरे ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सावली सुरत दरशन दे गयोरे ॥३॥
लटपटी पेचा बांधा राज ॥ध्रु०॥
सास बुरी घर ननंद हाटेली । तुमसे आठे कियो काज ॥१॥
निसीदन मोहिके कलन परत है । बनसीनें सार्यो काज ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधन नागर । चरन कमल सिरताज ॥३॥
राजा थारे कुबजाही मन मानी । म्हांसु आ बोलना ॥ध्रु०॥
रसकोबी हरि छेला हारियो बनसीवाला जादु लाया ।
भुलगई सुद सारी ॥१॥
तुम उधो हरिसो जाय कैहीयो । कछु नही चूक हमारी ॥२॥
मिराके प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल उरधारी ॥३॥
मोर मुकुट पीतांबरधारी । मुरली बजावे कुंजबिहारी ॥१॥
हात लियो गोवर्धन धारी । लिला नाटकी बांकी गत है न्यारी ॥२॥
ग्वाल बाल सब देखन आयो । संग लिनी राधा प्यारी ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । आजी आईजी हमारी फेरी ॥४॥
बालपनमों बैरागन करी गयोरे ॥ध्रु०॥
खांदा कमलीया तो हात लकरीया । जमुनाके पार उतारगयोरे ॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत । बनसीकी टेक सुनागयोरे ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सावली सुरत दरशन दे गयोरे ॥३॥
लटपटी पेचा बांधा राज ॥ध्रु०॥
सास बुरी घर ननंद हाटेली । तुमसे आठे कियो काज ॥१॥
निसीदन मोहिके कलन परत है । बनसीनें सार्यो काज ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधन नागर । चरन कमल सिरताज ॥३॥
राजा थारे कुबजाही मन मानी । म्हांसु आ बोलना ॥ध्रु०॥
रसकोबी हरि छेला हारियो बनसीवाला जादु लाया ।
भुलगई सुद सारी ॥१॥
तुम उधो हरिसो जाय कैहीयो । कछु नही चूक हमारी ॥२॥
मिराके प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल उरधारी ॥३॥