कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे मीरा पदावली
कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे मीरा बाई पदावली
कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे
कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे॥टेक॥
कारेको विश्वास न कीजे अतिसे भूल परे॥१॥
काली जात कुजात कहीजे। ताके संग उजरे॥२॥
श्याम रूप कियो भ्रमरो। फुलकी बास भरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कारे संग बगरे॥४॥
कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे॥टेक॥
कारेको विश्वास न कीजे अतिसे भूल परे॥१॥
काली जात कुजात कहीजे। ताके संग उजरे॥२॥
श्याम रूप कियो भ्रमरो। फुलकी बास भरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कारे संग बगरे॥४॥
सांसारिक विश्वास और काले मन की संगति मन को भटकाती है, जैसे अंधेरे में राह खो जाए। उद्धव को यह पुकार है कि काले हृदय वालों पर भरोसा करना भूल है, जो आत्मा को भवसागर में डुबो देता है। नीच संगति और दुष्ट प्रवृत्ति जीवन को उजाड़ देती है, जैसे काली छाया सूरज की रोशनी को ढक ले।
पर श्याम का रूप भ्रमर-सा है, जो फूलों की सुगंध में रमता है, और मन को प्रेम की मिठास से भर देता है। मीरा का हृदय गिरिधर में डूबा है, जो सारी कालिमा को धो देता है। जैसे कोई कमल कीचड़ में भी निर्मल खिलता है, वैसे ही भक्ति काले संग को त्यागकर प्रभु के प्रेम में लीन हो जाती है। यह वह सत्य है, जो मन को सही राह दिखाता है।
पर श्याम का रूप भ्रमर-सा है, जो फूलों की सुगंध में रमता है, और मन को प्रेम की मिठास से भर देता है। मीरा का हृदय गिरिधर में डूबा है, जो सारी कालिमा को धो देता है। जैसे कोई कमल कीचड़ में भी निर्मल खिलता है, वैसे ही भक्ति काले संग को त्यागकर प्रभु के प्रेम में लीन हो जाती है। यह वह सत्य है, जो मन को सही राह दिखाता है।
शाम बन्सीवाला कन्हैया । मैं ना बोलूं तुजसेरे ॥ध्रु०॥
घर मेरा दूर घगरी मोरी भारी । पतली कमर लचकायरे ॥१॥
सास नंनदके लाजसे मरत हूं । हमसे करत बलजोरी ॥२॥
मीरा तुमसो बिगरी । चरणकमलकी उपासीरे ॥३॥
घर मेरा दूर घगरी मोरी भारी । पतली कमर लचकायरे ॥१॥
सास नंनदके लाजसे मरत हूं । हमसे करत बलजोरी ॥२॥
मीरा तुमसो बिगरी । चरणकमलकी उपासीरे ॥३॥
कृष्ण करो जजमान ॥ प्रभु तुम ॥ध्रु०॥
जाकी किरत बेद बखानत । सांखी देत पुरान ॥ प्रभु०२॥
मोर मुकुट पीतांबर सोभत । कुंडल झळकत कान ॥ प्रभु०३॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर । दे दरशनको दान ॥ प्रभु०४॥
तुम बिन मेरी कौन खबर ले । गोवर्धन गिरिधारीरे ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे । कुंडलकी छबी न्यारीरे ॥ तुम०॥१॥
भरी सभामों द्रौपदी ठारी । राखो लाज हमारी रे ॥ तुम० ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल बलहारीरे ॥ तुम० ॥३॥
हातकी बिडिया लेव मोरे बालक । मोरे बालम साजनवा ॥ध्रु०॥
कत्था चूना लवंग सुपारी बिडी बनाऊं गहिरी ।
केशरका तो रंग खुला है मारो भर पिचकारी ॥१॥
पक्के पानके बिडे बनाऊं लेव मोरे बालमजी ।
हांस हांसकर बाता बोलो पडदा खोलोजी ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर बोलत है प्यारी ।
अंतर बालक यारो दासी हो तेरी ॥३॥
पग घुंगरू पग घुंगरू बांधकर नाचीरे ॥ध्रु०॥
मैं अपने तो नारायणकी । हो गई आपही दासीरे ॥१॥
विषका प्याला राजाजीनें भेजा । पीवत मीरा हासीरे ॥२॥
लोक कहे मीरा भईरे बावरी । बाप कहे कुलनासीरे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरिचरनकी दासीरे ॥४॥
जाकी किरत बेद बखानत । सांखी देत पुरान ॥ प्रभु०२॥
मोर मुकुट पीतांबर सोभत । कुंडल झळकत कान ॥ प्रभु०३॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर । दे दरशनको दान ॥ प्रभु०४॥
तुम बिन मेरी कौन खबर ले । गोवर्धन गिरिधारीरे ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे । कुंडलकी छबी न्यारीरे ॥ तुम०॥१॥
भरी सभामों द्रौपदी ठारी । राखो लाज हमारी रे ॥ तुम० ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल बलहारीरे ॥ तुम० ॥३॥
हातकी बिडिया लेव मोरे बालक । मोरे बालम साजनवा ॥ध्रु०॥
कत्था चूना लवंग सुपारी बिडी बनाऊं गहिरी ।
केशरका तो रंग खुला है मारो भर पिचकारी ॥१॥
पक्के पानके बिडे बनाऊं लेव मोरे बालमजी ।
हांस हांसकर बाता बोलो पडदा खोलोजी ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर बोलत है प्यारी ।
अंतर बालक यारो दासी हो तेरी ॥३॥
पग घुंगरू पग घुंगरू बांधकर नाचीरे ॥ध्रु०॥
मैं अपने तो नारायणकी । हो गई आपही दासीरे ॥१॥
विषका प्याला राजाजीनें भेजा । पीवत मीरा हासीरे ॥२॥
लोक कहे मीरा भईरे बावरी । बाप कहे कुलनासीरे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरिचरनकी दासीरे ॥४॥
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