बंसीवारा आज्यो म्हारे देस हिंदी मीनिंग
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस।
थारी सांवरी सुरत वाला भेष ॥
आऊँ आऊँ कर गया जी कर गया कौल अनेक।
गिणता गिणता घिस गई म्हारी आंगलियां री रेख॥
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस।
थारी सांवरी सुरत वाला भेष ॥
जोगण होकर बन बन हेरूं तेरो नाम ना पायो भेद,
तेरी सुरत के कारणे मैं तो धार्या छे लिया भगवां भेस॥
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस।
थारी सांवरी सुरत वाला भेष ॥
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर मिल्या मिटेगा कलेश॥
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस।
थारी सांवरी सुरत वाला भेष ॥
मीरा के पद का हिंदी मीनिंग : इस पद में मीरा बाई श्री कृष्ण जी को बंसीवाला कहकर सम्बोधित करते हुए कहती हैं की आप मेरे देस (मुझसे मिलने) भी आओ। आपकी सूरत सांवली है, ऐसा आपका भेष है। आपने आने का वादा किया था और इस वादे को गिनते गिनते मेरे हाथों की रेखाएं घिस गई हैं। मैं आपसे मिलने के लिए जोगण (साध्वी) बन कर जंगल जंगल भटक रही हूँ। आपकी सूरत देखने के लिए ही मैंने भगवा वस्त्र धारण किये हैं। मैंने जोग लिया है। इस पद में भगवा धारण करने का भाव है की सांसारिकता से वैराग्य प्राप्त कर लिया है।
मैं आपसे मिलने के लिए वन वन भटक रही हूँ लेकिन आपके रहस्य को प्राप्त नहीं कर पाई हूँ। आपकी छवि निराली है आपके मस्तक पर मोर मुकुट शोभित है और आपके बाल घुंघराले हैं। मीरा के प्रभु गिरधर नागर आपका मुझसे मिलन होने के उपरान्त ही कलेश समाप्त होगा। भाव है जीवात्मा पूर्ण परमात्मा से मिलन को आतुर है। मेरे देश आने से आशय है की मेरे भीतरी लोक में आप आओ। चित्त में / हृदय में आप समाओ। आपकी सूरत साँवली है भाव है की आपमें गहराई प्रतीत होती है। आत्मा की पूर्ण परमात्मा से मिलन का विरह परम स्तर पर प्रदर्शित हो रहा हैं जहां जीवात्मा उलाहना देती है की आप अब तक मुझसे मिलने नहीं आए हो।
मूल पाठ
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारा भेष॥
आऊं-आऊं कर गया जी कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस ग म्हारी आंगलिया री रेख॥
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी होय ग धोय सफेद॥
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस॥
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस॥
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