प्रभु बिनि ना सरै माई भजन
प्रभु बिनि ना सरै माई भजन
प्रभु बिनि ना सरै माई
प्रभु बिनि ना सरै माई।
मेरा प्राण निकस्या जात, हरी बिन ना सरै माई।।टेक।।
कमठ दादुर बसत जल में, जल से उपजाई।
मीन जल से बाहर कीना, तुरत मर जाई।
काठ लकरी बन परी, काठ घुन खाई।
ले अगन प्रभु डार आये, भसम हो जाई।
बन बन ढूँढत मैं फिरी, आली सुधि नहीं पाई।
एक बेर दरसण दीजै, सब कसर मिटि जाई।
पात ज्यूँ पीरी परी, अरू बिपत तन छाई।
दासी मीराँ लाल गिरधर, मिल्याँ सुख छाई।।
(सरे=सफल होना,काम चलाना, कमठ=कछुवा, कसर=कमी, पात=पत्ता)
प्रभु बिनि ना सरै माई।
मेरा प्राण निकस्या जात, हरी बिन ना सरै माई।।टेक।।
कमठ दादुर बसत जल में, जल से उपजाई।
मीन जल से बाहर कीना, तुरत मर जाई।
काठ लकरी बन परी, काठ घुन खाई।
ले अगन प्रभु डार आये, भसम हो जाई।
बन बन ढूँढत मैं फिरी, आली सुधि नहीं पाई।
एक बेर दरसण दीजै, सब कसर मिटि जाई।
पात ज्यूँ पीरी परी, अरू बिपत तन छाई।
दासी मीराँ लाल गिरधर, मिल्याँ सुख छाई।।
(सरे=सफल होना,काम चलाना, कमठ=कछुवा, कसर=कमी, पात=पत्ता)
प्रभु के बिना जीवन अधूरा है, जैसे मछली जल के बिना तड़पकर मर जाती है। हृदय की यह तड़प, जो हरि के बिना प्राण निकलने की बात कहती है, वह गहरी प्यास है, जो केवल उनके दर्शन से बुझती है। कछुआ और मेंढक जल में रहकर भी उससे उत्पन्न होते हैं, पर प्रभु से दूर मन हर पल मुरझाता है।
संसार की माया काठ-सी है, जिसे घुन खाता है, और प्रभु की अग्नि में वह भस्म हो जाती है। वन-वन भटकने से भी उनकी सुधि नहीं मिलती, पर एक बार का दर्शन सारी कमियाँ मिटा देता है। जैसे पीला पत्ता और तन की विपत्ति मन को कमजोर करते हैं, वैसे ही प्रभु का अभाव आत्मा को दुख देता है।
गिरधर से मिलन वह सुख है, जो दासी के हृदय को आनंद से भर देता है। मन को उनकी शरण में अर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह अमृत है, जो हर कमी को पूर्ण कर जीवन को सार्थक बनाती है।
संसार की माया काठ-सी है, जिसे घुन खाता है, और प्रभु की अग्नि में वह भस्म हो जाती है। वन-वन भटकने से भी उनकी सुधि नहीं मिलती, पर एक बार का दर्शन सारी कमियाँ मिटा देता है। जैसे पीला पत्ता और तन की विपत्ति मन को कमजोर करते हैं, वैसे ही प्रभु का अभाव आत्मा को दुख देता है।
गिरधर से मिलन वह सुख है, जो दासी के हृदय को आनंद से भर देता है। मन को उनकी शरण में अर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह अमृत है, जो हर कमी को पूर्ण कर जीवन को सार्थक बनाती है।
तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं
मन के बड़े कठोर।
मेरे आसा चितनि तुम्हरी
और न दूजी ठौर।
तुमसे हमकूँ एक हो जी
हम-सी लाख करोर।।
कब की ठाड़ी अरज करत हूँ
अरज करत भै भोर।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी
देस्यूँ प्राण अकोर।।
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥
मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥
थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडा रो साज।
मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥
आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि।
झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति।
झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर।
सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं
मन के बड़े कठोर।
मेरे आसा चितनि तुम्हरी
और न दूजी ठौर।
तुमसे हमकूँ एक हो जी
हम-सी लाख करोर।।
कब की ठाड़ी अरज करत हूँ
अरज करत भै भोर।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी
देस्यूँ प्राण अकोर।।
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥
मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज।
मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥
थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडा रो साज।
मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥
आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि।
झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति।
झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर।
सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर।