मरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics
मरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी
अब त बेलि फॅलि गायी, आणद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही
गिरधर-पर्वत को धारण करने वाला यानी कृष्ण। गोपाल-गाएँ पालने वाला, कृष्ण। मोर मुकुट-मोर के पंखों का बना मुकुट। सोई-वही। जा के-जिसके। छाँड़ि दयी-छोड़ दी। कुल की कानि-परिवार की मर्यादा। करिहै-करेगा। कहा-क्या। ढिग-पास। लोक-लाज-समाज की मर्यादा। असुवन-आँसू। सींचि-सींचकर। मथनियाँ-मथानी। विलायी-मथी। दधि-दही। घृत-घी। काढ़ि लियो-निकाल लिया। डारि दयी-डाल दी। जगत-संसार। तारो-उद्धार। छोयी-छाछ, सारहीन अंश। मोहि-मुझे।
जळ जमुना जळ पाणी जातां । मार्ग बच्चे वेहेला वळजो ॥१॥
बाळपननी वाहिली दासी । प्रीत करी परवर जो ॥२॥
वाटे आळ न करिये वाहला । वचन कह्युं तें सुनजो ॥३॥
घणोज स्नेह थयाथी गिरिधर । लोललज्जाथी बळजो ॥४॥
मीरा कहे गिरिधर नागर । प्रीत करी ते पाळजो ॥५॥
हूं जाऊं रे जमुना पाणीडा । एक पंथ दो काज सरे ॥ध्रु०॥
जळ भरवुं बीजुं हरीने मळवुं । दुनियां मोटी दंभेरे ॥१॥
अजाणपणमां कांइरे नव सुझ्यूं । जशोदाजी आगळ राड करे ॥२॥
मोरली बजाडे बालो मोह उपजावे । तल वल मारो जीव फफडे ॥३॥
वृंदावनमें मारगे जातां । जन्म जन्मनी प्रीत मळे ॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भवसागरनो फेरो टळे ॥५॥
हारे जावो जावोरे जीवन जुठडां । हारे बात करतां हमे दीठडां ॥ध्रु०॥
सौ देखतां वालो आळ करेछे । मारे मन छो मीठडारे ॥१॥
वृंदावननी कुंजगलीनमें । कुब्जा संगें दीठ डारे ॥२॥
चंदन पुष्पने माथे पटको । बली माथे घाल्याता पछिडारे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । मारे मनछो नीठडारे ॥४॥
कृष्णमंदिरमों मिराबाई नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी ।
पावमों घुंगरू झुमझुम वाजे । तो ताल राखो घुंगटकी ॥१॥
नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी ॥ध्रु०॥
ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको ।
सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टबकी ॥२॥
बीख कटोरा राजाजीने भेजो तो संटसंग मीरा हटकी ।
ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृतकी ॥३॥
घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी ।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । जैसी डेरी तटवरकी ॥४॥
कौन भरे जल जमुना । सखीको०॥ध्रु०॥
बन्सी बजावे मोहे लीनी । हरीसंग चली मन मोहना ॥१॥
शाम हटेले बडे कवटाले । हर लाई सब ग्वालना ॥२॥
कहे मीरा तुम रूप निहारो । तीन लोक प्रतिपालना ॥३॥