मीरां साहित्य विशेषताएँ

मीरां साहित्य विशेषताएँ मीराबाई द्वारा प्रयुक्त राग मीरा बाई पदावली

मीराबाई का साहित्य भक्ति और प्रेम की अनन्य अभिव्यक्ति है, जो कृष्ण के प्रति उनकी तन्मयता को हृदयस्पर्शी ढंग से उकेरता है। उनकी रचनाएँ, जिन्हें पदावली कहते हैं, सगुण भक्ति की माधुर्य भावना से सराबोर हैं, जहाँ कृष्ण को पति मानकर राधा की तरह दांपत्य प्रेम व्यक्त होता है। सहज और सरल ब्रजभाषा में राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी का मिश्रण उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाता है, जो आमजन और विद्वानों को समान रूप से आकर्षित करता है। शृंगार और भक्ति रस का सुंदर समन्वय, जैसे “मोर मुकुट मकराकृत कुंडल” में कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन, उनके काव्य को रसपूर्ण बनाता है, जिसमें करुण और शांत रस भी झलकते हैं। 
 
मीरा के पद संगीतात्मक हैं, जो राग नीलाम्बरी, मुल्तानी, झंझोटी, मल्हार और सोरठ में गाए जाते हैं, जैसे “म्हारों री गिरधर गोपाल” में झंझोटी की मधुरता भक्ति की अनन्यता को उजागर करती है। उनकी रचनाओं में स्त्री-संवेदना गहरी है, जो सामाजिक बंधनों के प्रति टीस को भक्ति के रंग में व्यक्त करती है, जैसे लोक-लाज और कुल-मर्यादा को ठुकराकर प्रभु-प्रेम को सर्वोपरि मानना। सहज अलंकारों जैसे रूपक और उपमा के साथ रहस्यवाद का पुट उनके काव्य को दार्शनिक गहराई देता है। पदावली, जिसमें लगभग 200 फुटकर पद हैं, उनकी प्रमुख कृति है, जिसमें “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो” जैसे गीत प्रभु-प्राप्ति के आनंद को चित्रित करते हैं। यद्यपि प्रामाणिकता पर विद्वानों में मतभेद हैं, मीरा का साहित्य भक्ति आंदोलन की अमर धरोहर है, जो संगीत, साहित्य और प्रेम का त्रिवेणी संगम बनकर आज भी जीवंत है।
 
मीराबाई ने चार ग्रन्थों की भी रचना की थी-
'बरसी का मायरा'
'गीत गोविंद टीका'
'राग गोविंद'
'राग सोरठ'
इसके अतिरिक्त उनके गीतों का संकलन "मीराबाई की पदावली" नामक ग्रन्थ में किया गया है, जिसमें निम्नलिखित खंड प्रमुख हैं-

नरसी जी का मायरा
मीराबाई का मलार या मलार राग
गर्बा गीता या मीराँ की गरबी
फुटकर पद
सतभामानु रूसण या सत्यभामा जी नुं रूसणं
रुक्मणी मंगल
नरसिंह मेहता की हुंडी
चरित

साहित्यिक विशेषताएँ-मीरा सगुण धारा की महत्वपूर्ण भक्त कवयित्री थीं। कृष्ण की उपासिका होने के कारण इनकी कविता में सगुण भक्ति मुख्य रूप से मौजूद है, लेकिन निर्गुण भक्ति का प्रभाव भी मिलता है। संत कवि रैदास उनके गुरु माने जाते हैं। इन्होंने लोकलाज और कुल की मर्यादा के नाम पर लगाए गए सामाजिक और वैचारिक बंधनों का हमेशा – विरोध किया। इन्होंने पर्दा प्रथा का पालन नहीं किया तथा मंदिर में सार्वजनिक रूप से नाचने-गाने में कभी हिचक महसूस नहीं की। मीरा सत्संग को ज्ञान प्राप्ति का माध्यम मानती थीं और ज्ञान को मुक्ति का साधन। निंदा से वे कभी विचलित नहीं हुई। वे उस युग के रूढ़िग्रस्त समाज में स्त्री-मुक्ति की आवाज बनकर उभरी।
मीराबाई द्वारा प्रयुक्त राग

1. राग झिंझोटी
2. राग काहन्ड़ा
3. राग केदार
4. राग कल्याण
5. राग खट
6. राग गुजरी
7. राग गोंड
8. राग छायानट
9. राग ललित
10. राग त्रिबेणी
11. राग सूहा
12. राग सारंग
13. राग तोड़ी
14. राग धनासरी
15. राग आसा
16. राग बसंत
17. राग बिलाबल
18. राग बिहागड़ो
19. राग भैरों
20. राग मल्हार
21. राग मारु
22. राग रामकली
23. राग पीलु
24. राग सिरी
25. राग कामोद
26. राग सोरठि
27. राग प्रभाती
28. राग भैरवी
29. राग जोगिया
30. राग देष
31. राग कलिंगडा़
32. राग देव गंधार
33. राग पट मंजरी
34. राग काफी
35. राग मालकौंस
36. राग जौनपुरी
37. राग पीलु
38. राग श्याम कल्याण
39. राग परज
40. राग असावरी
41. राग बागेश्री
42. राग भीमपलासी
43. राग पूरिया कल्याण
44. राग हमीर
45. राग सोहनी  

बारी होके जाने बंदना । पठीयो कछु नारी है ॥ध्रु०॥
बुटीसे बुडी भई साची तो भारी हो बिचारी रही ।
तुम घर जावो बदना मेरो प्यारा भारी हो ॥१॥
नारी होके द्वारकामें बाजे बासुरी । बासु मुस वारी हो ।
वोही खूब लाला वणीर जोए । मारी सारी हो ॥२॥
पान जैसी पिरी भई पर गोपवर रही ।
मेरा गिरिधर पिया प्रभुजी मीरा वारी डारी हो ॥३॥

लेता लेता श्रीरामजीनुं नाम । लोकडिवा तो लाजे मरे छे ॥ध्रु०॥
हरी मंदिर जाता पाव लिया दुखे । फरा आवे सारूं गाम ॥१॥
झगडो थाय त्यां दोडीनें जाया । मुक्तीनें बरना काम ॥२॥
भांड भवैया गुणका नृत्य करता । बेशी रहे चारे ठाम ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर गुण गाऊं । चरणकमल चित्त काम ॥४॥

साधुकी संगत पाईवो । ज्याकी पुरन कमाई वो ॥ध्रु०॥
पिया नामदेव और कबीरा । चौथी मिराबाई वो ॥१॥
केवल कुवा नामक दासा । सेना जातका नाई वो ॥२॥
धनाभगत रोहिदास चह्यारा । सजना जात कसाईवो ॥३॥
त्रिलोचन घर रहत ब्रीतिया । कर्मा खिचडी खाईवो ॥४॥
भिल्लणीके बोर सुदामाके चावल । रुची रुची भोग लगाईरे ॥५॥
रंका बंका सूरदास भाईं । बिदुरकी भाजी खाईरे ॥६॥
ध्रुव प्रल्हाद और बिभीषण । उनकी क्या भलाईवो ॥७॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । ज्योतीमें ज्योती लगाईवो ॥८॥

हैडा मामूनें हरीवर पालारे । जाऊछूं जमनी तेमनीरे ।
मुजे मारी कट्यारी । प्रेमनी प्रेमनीरे ॥ध्रु०॥
जल भरवासु गरवा गमाया । माथा घागरडी हमनारे ॥१॥
बाजुबंद गोंडा बरखा बिराजे । हाथे बिटी छे हेमनीरे ॥२॥
सांकडी शेरीमां वालोजी मी ज्याथी । खबर पुछुछुं खेमनीरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भक्ति करुछुं नित नेमनीरे ॥४॥

यह भजन भी देखिये
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