मैं तो सांवरे के रंग राची भजन
मैं तो सांवरे के रंग राची भजन
मैं तो सांवरे के रंग राची।साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।
माई साँवरे रंग राँची।।टेक।।
साज सिंगार बाँध पग घूंघर, लोकलाज तज नाँची।
गयाँ कुमत लयाँ साधाँ, सँगत, श्याम प्रीत जग साँची।
गायाँ गायाँ हरि गुण निसदिन, काल ब्याल री बाँची।
श्याम बिणआ जग खाराँ लागाँ जगरी बाताँ काँची।
मीरां सिरी गिरधर नट नागर, भगति रसीली जाँची।।
मै तो सावरे रंग राची / देवकी पंडित / Live in Concert
जब प्रेम संपूर्ण समर्पण में बदल जाता है, तब कोई बंधन, कोई लोक-लाज उसके मार्ग में नहीं आती। यह आत्मा का वह भाव है, जब ईश्वर के रंग में रंग जाने के बाद संसार की प्रत्येक चिंता फीकी पड़ जाती है। पग में घुंघरू बांधकर भक्त नाच उठता है, कुमति छूट जाती है, और साधु-संगति उसे सत्य के मार्ग पर ले जाती है।
जिस क्षण भक्त को परम सत्य की अनुभूति होती है, उसकी समस्त संशय, समस्त भय समाप्त हो जाता है—जैसे कोई विषधर सामने हो, परंतु ईश्वर का स्मरण उसे निर्भय कर देता है। यह वह स्थिति है, जब संसार निस्सार लगने लगता है, और मोह की प्रत्येक बात अस्थायी प्रतीत होती है। उस स्थिति में केवल एक ही रस शेष रहता है—भक्ति का आनंद, प्रेम की पराकाष्ठा।
यह प्रेम कोई साधारण प्रेम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का भाव है। जब यह अनुभूति प्रबल हो जाती है, तब जीवन की हर बाधा समाप्त हो जाती है। यही भक्ति की सच्ची परीक्षा है, और यही जीवन का सार है—जहाँ संपूर्ण अस्तित्व ईश्वर की आराधना में रम जाता है। यही आनंद, यही समर्पण, और यही अनन्य प्रेम है, जो हरि के रंग में रच जाने के बाद मिलता है।