सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती भजन
मैं तो गिरधर के रंग राती,
सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती,
पचरंग मेरा चोला रंगा दे, मैं झुरमुट खेलन जाती,
झुरमुट में मेरा सांई मिलेगा, खोल अडम्बर गाती,
चंदा जाएगा, सुरज जाएगा, जाएगा धरण अकासी,
पवन पाणी दोनों ही जाएंगे, अटल रहे अबिनासी,
गिरधर के रंग राती, मैं तो गिरधर के रंग राती,
सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती,
सुरत निरत का दिवला संजो ले, मनसा की कर बाती,
प्रेम हटी का तेल बना ले, जगा करे दिन राती,
जिनके पिय परदेश बसत हैं, लिखि लिखि भेजें पाती,
मेरे पिय मो माहिं बसत है, कहूं न आती जाती,
पीहर बसूं ना बसूं सास घर, सतगुरु शबद संगाती,
ना घर मेरा ना घर तेरा, मीरा हरि रंग राती,
गिरधर के रंग राती, मैं तो गिरधर के रंग राती,
सखी री मैं तो गिरधर के रंग राती,
इस पद के विषय में : मीरा बाई ने इस पद में कृष्ण भक्ति की अद्भुत अभिव्यक्ति की है। आत्मा का परमात्मा से मिलन का यहाँ अलौकिक वर्णन है। मीरा बाई अपनी सखी से कहती हैं की पांच अन्तः करन में रंगी आत्मा, आखों के मध्य में खेलती है, नेत्रों के केंद्र रूपी झुरमुट में खेलती है। बाह्य आडम्बर भक्ति और हरी के मिलन में बाधा पंहुचाते हैं इसलिए मैं इनको खोल कर के अंदर प्रवेश करती हूँ। यहीं मेरे साईं मुझको मिलेंगे। पाँचों तत्व, सूर्य और चन्द्रमा, पवन पानी भी वहीँ पर विचरण करेंगे। आत्मा में ही इश्वर है जिससे वार्तालाप करुँगी। घट में जो दीपक है वह प्रेम रूपी तेल से ही प्रकाशित होता है, अपनी आत्मा में इश्वर के प्रति प्रेम भाव से ही वह प्रकाशित होता है। प्रीतम कहाँ है ? वह तो घट में ही है लेकिन सासारिक लोग अपने प्रीतम के परदेश में जाने पर उन्हें चिट्ठी लिखते हैं लेकिन वह तो घट / आत्मा / हृदय में ही सदा वास करते हैं, उनको बाहर कहीं पर ढूँढने की जरूरत नहीं है। आत्मा से परमात्मा कहीं दूर नहीं होते हैं और ना ही कहीं आते जाते हैं। इनको तो प्रेम भाव के माध्यम से ही पहचाना जा सकता है।
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