आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई
आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई मीरा बाई पदावली
आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई
आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई।
मातापिता भाईबंद सात नही कोई।
मेरो मन रामनाम दुजा नही कोई॥टेक॥
साधु संग बैठे लोक लाज खोई। अब तो बात फैल गई।
जानत है सब कोई॥१॥
आवचन जल छीक छीक प्रेम बोल भई। अब तो मै फल भई।
आमरूत फल भई॥२॥
शंख चक्र गदा पद्म गला। बैजयंती माल सोई।
मीरा कहे नीर लागो होनियोसी हो भई॥३॥
मातापिता भाईबंद सात नही कोई।
मेरो मन रामनाम दुजा नही कोई॥टेक॥
साधु संग बैठे लोक लाज खोई। अब तो बात फैल गई।
जानत है सब कोई॥१॥
आवचन जल छीक छीक प्रेम बोल भई। अब तो मै फल भई।
आमरूत फल भई॥२॥
शंख चक्र गदा पद्म गला। बैजयंती माल सोई।
मीरा कहे नीर लागो होनियोसी हो भई॥३॥
यह संसार नश्वर है, क्षणभंगुर सुख-दुख का मायाजाल, जो देखने में भले आकर्षक हो, पर उसका आधार खोखला है। मनुष्य इस जगत में माता-पिता, भाई-बंधुओं के साथ बंधता है, पर ये रिश्ते भी अंततः अकेलेपन की सैर कराते हैं। सच्चा साथी केवल परमात्मा का नाम है, जो हर क्षण, हर स्थिति में साथ रहता है। यह नाम ही वह दीपक है, जो अंधेरे में राह दिखाता है, वह मित्र जो कभी छल नहीं करता।
सच्चे साधुओं का संग जीवन की दिशा बदल देता है। उनके साथ बैठकर मन की लज्जा, समाज का भय सब धुल जाता है। यह सत्संग वह पाठशाला है, जहाँ आत्मा को परमात्मा से मिलन की राह मिलती है। जब यह प्रेम उजागर हो जाता है, तो दुनिया की नजरें भले कुछ कहें, पर आत्मा उस परम सत्य को जान लेती है। जैसे कोई प्यासा कुएं तक पहुंचकर जल पी ले, वैसे ही प्रभु का नाम मन को तृप्त करता है।
प्रेम की वाणी में वह शक्ति है, जो सूखे हृदय को हरियाली दे देती है। यह प्रेम वह जल है, जो छींटे मारकर आत्मा को जागृत करता है। जिसने इस प्रेम को पा लिया, उसका जीवन अमर फल बन जाता है, जैसे आम का पेड़ फल देता है, वही फल जो आत्मा को संतुष्टि देता है। यह प्रेम ही वह रस है, जो जीवन को रसपूर्ण बनाता है।
परमात्मा के प्रतीक—शंख, चक्र, गदा, पद्म, वैजयंती माला—ये केवल बाहरी चिह्न नहीं, बल्कि आत्मा के गुण हैं। शंख की तरह पवित्रता, चक्र की तरह निरंतरता, गदा की तरह दृढ़ता और पद्म की तरह निर्मलता, ये सब प्रभु के भक्त में समा जाते हैं। यह प्रेम का बंधन ऐसा है, जो न कभी टूटता है, न कभी कमजोर पड़ता। जो इस प्रेम में डूब गया, वह उसी में लीन हो जाता है, जैसे नदी सागर में मिलकर एक हो जाती है।
सच्चे साधुओं का संग जीवन की दिशा बदल देता है। उनके साथ बैठकर मन की लज्जा, समाज का भय सब धुल जाता है। यह सत्संग वह पाठशाला है, जहाँ आत्मा को परमात्मा से मिलन की राह मिलती है। जब यह प्रेम उजागर हो जाता है, तो दुनिया की नजरें भले कुछ कहें, पर आत्मा उस परम सत्य को जान लेती है। जैसे कोई प्यासा कुएं तक पहुंचकर जल पी ले, वैसे ही प्रभु का नाम मन को तृप्त करता है।
प्रेम की वाणी में वह शक्ति है, जो सूखे हृदय को हरियाली दे देती है। यह प्रेम वह जल है, जो छींटे मारकर आत्मा को जागृत करता है। जिसने इस प्रेम को पा लिया, उसका जीवन अमर फल बन जाता है, जैसे आम का पेड़ फल देता है, वही फल जो आत्मा को संतुष्टि देता है। यह प्रेम ही वह रस है, जो जीवन को रसपूर्ण बनाता है।
परमात्मा के प्रतीक—शंख, चक्र, गदा, पद्म, वैजयंती माला—ये केवल बाहरी चिह्न नहीं, बल्कि आत्मा के गुण हैं। शंख की तरह पवित्रता, चक्र की तरह निरंतरता, गदा की तरह दृढ़ता और पद्म की तरह निर्मलता, ये सब प्रभु के भक्त में समा जाते हैं। यह प्रेम का बंधन ऐसा है, जो न कभी टूटता है, न कभी कमजोर पड़ता। जो इस प्रेम में डूब गया, वह उसी में लीन हो जाता है, जैसे नदी सागर में मिलकर एक हो जाती है।