मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम मीरा
मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम मीरा
मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम
मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम।।टेक।।
तुम आवा बिन सुष नहीं मेरे पीरी परी जैसे पान।
मेरे आसा और न स्वामी एक तिहारी ध्यान।
मीराँ के प्रभु बेगि मिलो अब, राषो जी मेरी मान।।
मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम।।टेक।।
तुम आवा बिन सुष नहीं मेरे पीरी परी जैसे पान।
मेरे आसा और न स्वामी एक तिहारी ध्यान।
मीराँ के प्रभु बेगि मिलो अब, राषो जी मेरी मान।।
(सुष=सुख, पीरी=पीली, वेग शीघ्र, राषो=रक्खो, मान=सम्मान,प्रण, पान=पत्ता)
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जब आत्मा प्रभु के मिलन की आतुरता में डूब जाती है, तब हर अन्य सुख व्यर्थ लगता है। यह विरह वह वेदना है, जहाँ समस्त आशाएँ केवल उसी प्रियतम के दर्शन पर टिकी होती हैं। बिना उनके आगमन के, यह जीवन पीले पत्ते की तरह सूखा और निस्तेज प्रतीत होता है—कोई आनंद नहीं, कोई उमंग नहीं।
भक्त की एकमात्र अभिलाषा यही है कि शीघ्रता से प्रभु का साक्षात्कार हो। यह वह पुकार है, जो किसी साधारण इच्छा से नहीं, बल्कि जन्म-जन्म के प्रेम की गहराई से उठती है। जब यह समर्पण सच्चे भाव से होता है, तब ईश्वर स्वयं उस पुकार को सुनते हैं और भक्त की आकुलता का मान रखते हैं।
यह प्रेम आत्मा की गहन अवस्था है, जहाँ संसार की प्रत्येक वस्तु गौण हो जाती है और केवल प्रभु का ध्यान ही सर्वस्व बन जाता है। यही सच्ची भक्ति है, जहाँ प्रतीक्षा कोई बाधा नहीं बल्कि समर्पण की पराकाष्ठा बन जाती है। जब यह भाव प्रबल हो जाता है, तब आत्मा स्वयं ही प्रभु के चरणों में रम जाती है, और यह मिलन ही उसका अंतिम सत्य बन जाता है।
भक्त की एकमात्र अभिलाषा यही है कि शीघ्रता से प्रभु का साक्षात्कार हो। यह वह पुकार है, जो किसी साधारण इच्छा से नहीं, बल्कि जन्म-जन्म के प्रेम की गहराई से उठती है। जब यह समर्पण सच्चे भाव से होता है, तब ईश्वर स्वयं उस पुकार को सुनते हैं और भक्त की आकुलता का मान रखते हैं।
यह प्रेम आत्मा की गहन अवस्था है, जहाँ संसार की प्रत्येक वस्तु गौण हो जाती है और केवल प्रभु का ध्यान ही सर्वस्व बन जाता है। यही सच्ची भक्ति है, जहाँ प्रतीक्षा कोई बाधा नहीं बल्कि समर्पण की पराकाष्ठा बन जाती है। जब यह भाव प्रबल हो जाता है, तब आत्मा स्वयं ही प्रभु के चरणों में रम जाती है, और यह मिलन ही उसका अंतिम सत्य बन जाता है।