आवाँ मन मोहणा जी जोवाँ थारी बाट मीराबाई

आवाँ मन मोहणा जी जोवाँ थारी बाट मीरा बाई पदावली

आवाँ मन मोहणा जी जोवाँ थारी बाट
आवाँ मन मोहणा जी जोवाँ थारी बाट।।टेक।।
खाण पाण म्हारे नेक न भावाँ, नैणा खुला कपाट।
थे आप बिण सुख णा म्हारो, हियड़ो घणी उचाट। 
 मीराँ थे बिण भई बावरी, छाँड्या णा णिरवाट।

(थारी बाट=तुम्हारी राह, कपाट=किवाड़, उचाट=व्याकुल णिरवाट=निराश्रय,असहाय)
 
मनमोहन की प्रतीक्षा में मन बेकरार है, जैसे आँखें उनकी राह ताकते-ताकते किवाड़ खुला रखती हों। बिना उनके दर्शन के खाना-पानी बेस्वाद है, हृदय व्याकुल और असहाय होकर तड़पता है। उनके बिना सुख की एक किरण भी नहीं, मानो जीवन का सारा रंग फीका पड़ गया हो।

मीरा का मन उनके प्रेम में बावरा हो गया, जो निराश्रय होकर भी उनकी भक्ति में डूबा है। जैसे कोई प्यासा झरने की तलाश में भटकता रहे, वैसे ही यह भक्ति प्रभु की एक झलक के लिए हर सांस को उनकी बाट जोहने में लगा देती है। यह वह प्रेम है, जो आत्मा को उनके चरणों की शरण में बांधकर सदा जीवित रखता है।


 तज मन हरि विमुखन को संग | Heartwarming Surdas Ji Bhajan | Devi Chitralekhaji

मागत माखन रोटी । गोपाळ प्यारो मागत माखन रोटी ॥ध्रु०॥
मेरे गोपालकू रोटी बना देऊंगी । एक छोटी एक मोटी ॥१॥
मेरे गोपालकू बीहा करुंगी । बृषभानकी बेटी ॥२॥
मेरे गोपालकू झबला शिवाऊंगी । मोतनकी लड छुटी ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमलपा लोटी ॥४॥

मुखडानी माया लागीरे । मोहन तारा मुखडानी ॥ध्रु०॥
मुखडूं मैं जोयूं तारूं । सर्वें जुग थयुं खारूं ।
मन तारूं रहथूं न्यारूंरे ॥१॥
संसारीनुं सुख एवूं झांझवाना नीर जेवूं ।
तेने तुच्छ करी फरीयेरे ॥२॥
संसारीनुं सुख काचूं । परणीने रंडाथूं पाछुं ।
तेने घेर शीद जईयेरे ॥३॥
भणूं तो पीतम प्यारो । अखंड सौभाग्य मारो ।
रांडवानो भय ठाळ्योरे ॥४॥
मीराबाई बलिहारी । आशा एक मने तारी ।
हवे हुं तो बडभागीरे ॥५॥

मेरो मन हरलियो राज रणछोड । मेरो मन० ॥ध्रु०॥
त्रिकम माधव और पुरुषोत्तम ने । कुबेर कल्याणनी जोड ॥१॥
राधां रुक्मिणी और सतभामा । जांबुक करणी जोड ॥२॥
चार मास रत्‍नागर गाजे । गोमती करत कलोल ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । हरी मारा दलडाना चोर ॥४॥ 
 
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