आव सजनियाँ बाट मैं जोऊँ मीरा बाई पदावली
आव सजनियाँ बाट मैं जोऊँ
आव सजनियाँ बाट मैं जोऊँ, तेरे कारण रैण न सोऊँ।।टेक।।
जक न परत मन बहुत उदासी, सुन्दर स्याम मिलौ अबिनासी।
तेरे कारण सब हम त्यआगे, षान पान पै मन नहीं लागै।
मीराँ के प्रभु दरसण दीज्यौ, मेरी अरज कान सूँण लीज्यौ।।
(जोऊँ=देखना, जक=चैन, षान=खाना, कान सूँण लीज्यो=/ध्यान देकर सुनो)
सुंदर मारो सांवरो । मारा घेर आउंछे वनमाली ॥ध्रु०॥
नाना सुगंधी तेल मंगाऊं । ऊन ऊन पाणी तपाऊं छे ॥
मारा मनमों येही वसे छे । आपने हात न्हवलाऊं छे ॥१॥
खीर खांड पक्वान मिठाई । उपर घीना लडवा छे ॥
मारो मनमों येही वसे छे । आपने होतसे जमाऊं छे ॥२॥
सोना रुपानो पालनो बंधाऊं । रेशमना बंद बांधूं छे ॥
मारा मनमों येडी वसे छे । आपने हात झूलाऊं छे ॥३॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर । चरनकमल बलहारु छे ॥
मारा मनमों येही वसे छे । अपना ध्यान धराऊं छे ॥४॥
कागळ कोण लेई जायरे मथुरामां वसे रेवासी मेरा प्राण पियाजी ॥ध्रु०॥
ए कागळमां झांझु शूं लखिये । थोडे थोडे हेत जणायरे ॥१॥
मित्र तमारा मळवाने इच्छे । जशोमती अन्न न खाय रे ॥२॥
सेजलडी तो मुने सुनी रे लागे । रडतां तो रजनी न जायरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमल तारूं त्यां जायरे ॥४॥
सामळोजी मारी बात । बाई तमे सामळोजी मारी बात ॥ध्रु०॥
राधा सखी सुंदर घरमां । कुबजानें घर जात ॥१॥
नवलाख धेनु घरमां दुभाय । घर घर गोरस खात ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमलपर हात ॥३॥
बन जाऊं चरणकी दासी रे । दासी मैं भई उदासी ॥ध्रु०॥
और देव कोई न जाणूं । हरिबिन भई उदासी ॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना । नहीं न्हावूं प्रयाग कासी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमलकी प्यासी ॥३॥