कोई कहियौ रे प्रभु आवन की मीरा बाई पदावली

कोई कहियौ रे प्रभु आवन की मीरा बाई पदावली

कोई कहियौ रे प्रभु आवन की
कोई कहियौ रे प्रभु आवन की,
आवनकी मनभावन की।

आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
बाण पड़ी ललचावन की।

ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
नदियां बहै जैसे सावन की।

कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
पांख नहीं उड़ जावनकी।

मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।
 
"कोई कहियौ रे प्रभु आवन की" मीरा बाई का एक भावुक पद है, जिसमें वे भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी गहरी तड़प और प्रेम को व्यक्त करती हैं। इस पद में मीरा बाई कहती हैं कि वे भगवान के आगमन की प्रतीक्षा में हैं, लेकिन वे नहीं आ रहे हैं और न ही कोई संदेश भेज रहे हैं। उनकी आँखें भी उनकी बात नहीं मानतीं, जैसे सावन में नदियाँ बहती हैं। वे कहती हैं कि उनके पास पंख नहीं हैं, जिससे वे भगवान के पास उड़कर जा सकें। अंत में, मीरा बाई भगवान से कहती हैं कि वे कब मिलेंगे, क्योंकि वे उनकी दासी बन चुकी हैं।

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