बंसीवारा आज्यो म्हारे देस
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।
प्रेम की बंसी बजती है, जो हृदय को एक अनमोल निमंत्रण देती है। यह प्रेम न तो बंधन है, न ही कोई सौदा; यह तो उस अनंत सत्ता के साथ एकाकार होने की पुकार है। जैसे कोई प्यासा सागर की ओर दौड़ता है, वैसे ही आत्मा उस सांवरे की सूरत में खो जाना चाहती है। उसकी एक झलक, एक नाम, एक धुन—सब कुछ इतना पवित्र कि मन बिना साबुन-पानी के ही निखर जाता है।
हर सांस में उसका नाम जपते हुए, उंगलियां थक जाती हैं, पर मन की गिनती कभी खत्म नहीं होती। यह प्रेम वैराग्य की राह पर ले जाता है, जहां जंगल-झाड़ी सब एक समान लगते हैं, क्योंकि उसकी सूरत हर कण में बसती है। इस प्रेम में भगवा वस्त्र नहीं, बल्कि आत्मा का समर्पण सजता है। जैसे मीरा का मन गिरधर में रमा, वैसे ही यह प्रेम दो हृदयों को एक कर देता है—एक प्रभु, एक भक्त, और बीच में केवल प्रेम का अटूट बंधन।
कोई मोर-मुकुट या पीतांबर नहीं, सच्ची भक्ति तो उसकी सादगी में बसती है। मन का हर कोना उसी की छवि से भर जाए, यही तो जीवन की सार्थकता है। प्रेम की यह राह कठिन नहीं, बस उसे पूरे मन से अपनाने की देर है।
हर सांस में उसका नाम जपते हुए, उंगलियां थक जाती हैं, पर मन की गिनती कभी खत्म नहीं होती। यह प्रेम वैराग्य की राह पर ले जाता है, जहां जंगल-झाड़ी सब एक समान लगते हैं, क्योंकि उसकी सूरत हर कण में बसती है। इस प्रेम में भगवा वस्त्र नहीं, बल्कि आत्मा का समर्पण सजता है। जैसे मीरा का मन गिरधर में रमा, वैसे ही यह प्रेम दो हृदयों को एक कर देता है—एक प्रभु, एक भक्त, और बीच में केवल प्रेम का अटूट बंधन।
कोई मोर-मुकुट या पीतांबर नहीं, सच्ची भक्ति तो उसकी सादगी में बसती है। मन का हर कोना उसी की छवि से भर जाए, यही तो जीवन की सार्थकता है। प्रेम की यह राह कठिन नहीं, बस उसे पूरे मन से अपनाने की देर है।
जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम॥
आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम।
पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम॥
बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम।
मीराके सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम॥
झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥
लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥
नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥ गिरि०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥ गिरि०॥४॥
छोडो चुनरया छोडो मनमोहन मनमों बिच्यारो॥धृ०॥
नंदाजीके लाल। संग चले गोपाल धेनु चरत चपल।
बीन बाजे रसाल। बंद छोडो॥१॥
काना मागत है दान। गोपी भये रानोरान।
सुनो उनका ग्यान। घबरगया उनका प्रान।
चिर छोडो॥२॥
मीरा कहे मुरारी। लाज रखो मेरी।
पग लागो तोरी। अब तुम बिहारी।
चिर छोडो॥३॥
आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम।
पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम॥
बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम।
मीराके सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम॥
झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥
लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥
नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥ गिरि०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥ गिरि०॥४॥
छोडो चुनरया छोडो मनमोहन मनमों बिच्यारो॥धृ०॥
नंदाजीके लाल। संग चले गोपाल धेनु चरत चपल।
बीन बाजे रसाल। बंद छोडो॥१॥
काना मागत है दान। गोपी भये रानोरान।
सुनो उनका ग्यान। घबरगया उनका प्रान।
चिर छोडो॥२॥
मीरा कहे मुरारी। लाज रखो मेरी।
पग लागो तोरी। अब तुम बिहारी।
चिर छोडो॥३॥