बड़े घर ताली लागी रे

बड़े घर ताली लागी रे

बड़े घर ताली लागी रे
बड़े घर ताली लागी रे, म्हारां मन री उणारथ भागी रे॥
छालरिये म्हारो चित नहीं रे, डाबरिये कुण जाव।
गंगा जमना सूं काम नहीं रे, मैंतो जाय मिलूं दरियाव॥
हाल्यां मोल्यांसूं काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार।
कामदारासूं काम नहीं रे, मैं तो जाब करूं दरबार॥
काच कथीरसूं काम नहीं रे, लोहा चढ़े सिर भार।
सोना रूपासूं काम नहीं रे, म्हारे हीरांरो बौपार॥
भाग हमारो जागियो रे, भयो समंद सूं सीर।
अम्रित प्याला छांडिके, कुण पीवे कड़वो नीर॥
पीपाकूं प्रभु परचो दियो रे, दीन्हा खजाना पूर।
मीरा के प्रभु गिरघर नागर, धणी मिल्या छै हजूर॥
 
मन प्रभु के प्रेम में बंध गया है, जैसे बड़े घर में ताला लग गया हो, और यह बंधन पूर्वजन्म के पुण्य का फल है। छोटे तालाबों, झीलों, गंगा-यमुना का जल अब मन को नहीं भाता; वह तो समुद्र-से अथाह प्रभु के दर्शन को लालायित है। सांसारिक रिश्ते, पहरेदार, या सिर पर सज्जा का बोझ—ये सब अब व्यर्थ हैं। मन केवल प्रभु के दरबार में जाना चाहता है।

कांच, रांगा, लोहा, सोना-चांदी जैसे भौतिक पदार्थ मन को नहीं लुभाते; उसका व्यापार तो हीरे-सा अनमोल प्रभु-प्रेम है। भाग्य जाग उठा है, और अब कड़वे संसार का पानी छोड़, मन अमृत की तलाश में है। प्रभु ने पीपे-सा खजाना दे दिया, जिसमें उनका प्रेम भरा है। मीरां का मन गिरधर में रम गया, जो सदा हृदय में हाजिर हैं। यह भक्ति का वह रास्ता है, जहां प्रभु का प्रेम ही जीवन का एकमात्र धन है।
(ताला लागाँ=सम्बन्ध हो गया,लगन लग गई, पुरबला पुन्न=पूर्वजन्म का पुन्य, झीलर्यां=झील जलाशय, डबरां=छोटा तालाब, दरियाव=समुद्र, हेल्या-मेल्या=हेल-मेल दूर का सम्बन्ध, कामदारा= प्रहरी,पहरेदार, काथ=काँच, कथीर=राँग, सारयाँ= लोहा,रूपाँ, सीरयाँ=सम्बन्ध, नीरा=नीर,पानी, मरणथ=मनोरथ,मन की इच्छा)
 

सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥
थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥
मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥

नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किना०॥ध्रु०॥
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥
ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव॥३॥

होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी।।
चंदन केसर छिड़कत मोहन
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी।।
फाग जु खेलत रसिक सांवरो
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया
मोहनलाल बिहारी।।
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