नींदड़ी आवाँ णा साराँ रात भजन
नींदड़ी आवाँ णा साराँ रात भजन
नींदड़ी आवाँ णा साराँ रात
नींदड़ी आवाँ णा साराँ रात, कुण विधि होय परभात।।टेक।।
चमक उठाँ सुपनाँ लख सजणी, सुध णा भूल्याँ जात।
तलफाँ तलफाँ जियराँ जायाँ कब मिलियाँ दीनानाथ।
भवाँ बावरा सुध बुध भूलाँ, पीव जान्या म्हारी बात।
मीराँ पीडा सोइ जाणै, मरण जीवण जिण हाथ।।
नींदड़ी आवाँ णा साराँ रात, कुण विधि होय परभात।।टेक।।
चमक उठाँ सुपनाँ लख सजणी, सुध णा भूल्याँ जात।
तलफाँ तलफाँ जियराँ जायाँ कब मिलियाँ दीनानाथ।
भवाँ बावरा सुध बुध भूलाँ, पीव जान्या म्हारी बात।
मीराँ पीडा सोइ जाणै, मरण जीवण जिण हाथ।।
(नींदडी=नींद, कुण विधि=किस प्रकार से, चमक उठी=चौंक उठी, तलफाँ-तलफाँ=तड़प-तड़पकर, पीडा= पीड़ा,वेदना)
रात गहरी है, नींद नहीं आती, मानो सुबह का रास्ता ही खो गया हो। सपनों में प्रिय की झलक चमकती है, पर उसकी स्मृति मन को चैन नहीं लेने देती। हृदय तड़पता है, हर धड़कन में बस एक ही पुकार—कब मिलेंगे वे दयालु? मन भटकता है, जैसे कोई पागल प्रेमी अपनी सुध-बुध खो बैठे। प्रेम की यह पीड़ा वही समझे, जिसने जीते-जी मरना सीख लिया। वह प्रिय, जो हर सांस में बस्ता है, वही इस तड़प का एकमात्र सहारा है। यह प्रेम ऐसा है, जो न जीने देता है, न मरने, बस हर पल उसी की राह तकता है।
दरस बिनु दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन॥
सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन।
बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन॥
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभू कब र मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन॥
दीजो हो चुररिया हमारी। किसनजी मैं कन्या कुंवारी॥ध्रु०॥
गौलन सब मिल पानिया भरन जाती। वहंको करत बलजोरी॥१॥
परनारीका पल्लव पकडे। क्या करे मनवा बिचारी॥२॥
ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों। मारे रंगकी पिचकारी॥३॥
जाके कहती यशवदा मैया। होगी फजीती तुम्हारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके है लहरी॥५॥
दरस बिन दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।
सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन।
बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।।
छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।।
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।।
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आंणद फल होई।।
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।।
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन॥
सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन।
बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन॥
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभू कब र मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन॥
दीजो हो चुररिया हमारी। किसनजी मैं कन्या कुंवारी॥ध्रु०॥
गौलन सब मिल पानिया भरन जाती। वहंको करत बलजोरी॥१॥
परनारीका पल्लव पकडे। क्या करे मनवा बिचारी॥२॥
ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों। मारे रंगकी पिचकारी॥३॥
जाके कहती यशवदा मैया। होगी फजीती तुम्हारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके है लहरी॥५॥
दरस बिन दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।
सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन।
बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।।
छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।।
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।।
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आंणद फल होई।।
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।।
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।