बसो मोरे नैनन में नंदलाल लिरिक्स

बसो मोरे नैनन में नंदलाल

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल।
अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल।।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।
 
मन नंदलाल को अपनी आंखों में बसाने को आतुर है। उनकी मोहक, सांवली मूरत और विशाल नयन हृदय को बांध लेते हैं। अधरों पर अमृत-सी मुरली की तान और गले में बैजयंती माला उनकी शोभा बढ़ाती है। कमर पर छोटी घंटियों की मधुर आवाज और पायल की रसभरी ध्वनि मन को रिझाती है। मीरां का मन गोपाल में रम गया, जो संतों को सुख देने वाले और भक्तों के प्रति करुणामय हैं। यह भक्ति का वह प्रेम है, जो प्रभु की छवि को आत्मा का स्थायी ठिकाना बनाता है।
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥
भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।
हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर॥
बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर।
दासि 'मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर॥

हरि गुन गावत नाचूंगी॥ध्रु०॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥

तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।

शरणागतकी लाज। तुमकू शणागतकी लाज॥ध्रु०॥
नाना पातक चीर मेलाय। पांचालीके काज॥१॥
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके। आगे चक्रधर जदुराज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। दीनबंधु महाराज॥३॥ 
Next Post Previous Post