आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट

आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट मीरा बाई पदावली

आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट।।टेक।।
खान पान मोहि नैक न भावै नैणन लगे कपाट॥
तुम आयां बिन सुख नहिं मेरे दिल में बहोत उचाट।
मीरा कहै मैं बई रावरी, छांड़ो नाहिं निराट॥

(जोऊं थांरी(थारी) बाट=तेरी राह देखती हूं, आयां बिन= बिना आये, उचाट=बेचैनी, निराट=असहाय)

 मन की गहराई में प्रभु के लिए एक ऐसी तड़प है, जो हर सांस के साथ बढ़ती है। उनकी राह देखते-देखते आँखें थक जाती हैं, जैसे कोई दीया तेल खत्म होने पर मंद पड़ जाए। खाने-पीने की सुध नहीं, क्योंकि हृदय केवल उनके दर्शन की प्यास से भरा है। उनके बिना मन बेचैन है, जैसे पंछी बिना आकाश के अधूरा।

यह बेचैनी प्रेम की गहराई है, जो प्रभु के बिना जीवन को सूना कर देती है। मन बार-बार उनकी ओर दौड़ता है, जैसे नदी सागर की ओर बढ़ती है। वह प्रभु ही एकमात्र सहारा है, जिसके बिना आत्मा असहाय होकर भटकती है। यह समर्पण ही सच्ची भक्ति है—जहाँ मन, प्रभु के चरणों में अटल विश्वास के साथ, उनकी प्रतीक्षा में डूबा रहता है।

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