आओ सहेल्हां रली करां मीरा बाई पदावली
आओ सहेल्हां रली करां मीरा बाई पदावली
ओ सहेल्हां रली करां
आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि॥
झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
झूठा आभूषण री, सांची पियाजी री प्रीति॥
झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखडणी चीर।
सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥
छपन भोग बुहाय दे हे इण भोगन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है अपणे पिया जी रो साग॥
देखि बिराणे निवांणकूं है क्यूं उपजावे खीज।
कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज॥
छैल बिराणो लाखको है अपणे काज न होय।
ताके संग सीधारतां है भला न कहसी कोय॥
बर हीणो अपणो भलो है कोढी कुष्टी कोय।
जाके संग सीधारतां है भला कहै सब लोय॥
अबिनासी सूं बालबा हे जिनसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभुजी मिल्या है एही भगति की रीत॥
आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि॥
झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
झूठा आभूषण री, सांची पियाजी री प्रीति॥
झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखडणी चीर।
सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥
छपन भोग बुहाय दे हे इण भोगन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है अपणे पिया जी रो साग॥
देखि बिराणे निवांणकूं है क्यूं उपजावे खीज।
कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज॥
छैल बिराणो लाखको है अपणे काज न होय।
ताके संग सीधारतां है भला न कहसी कोय॥
बर हीणो अपणो भलो है कोढी कुष्टी कोय।
जाके संग सीधारतां है भला कहै सब लोय॥
अबिनासी सूं बालबा हे जिनसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभुजी मिल्या है एही भगति की रीत॥
सखियों का साथ और संसार का राग-रंग क्षणिक सुख देता है, पर सच्चा आनंद तो उस प्रियतम के चरणों में है, जहाँ मन माया से मुक्त हो जाता है। मोती-माणिक की चमक, आभूषणों का ठाठ और रेशमी वस्त्रों की शोभा—ये सब झूठे हैं, जैसे सुबह का कोहरा जो धूप में गायब हो जाता है। सच्ची तो वह प्रीत है, जो प्रभु से जोड़ती है। उनकी दी हुई साधारण गुदड़ी ही वह वस्त्र है, जो शरीर और आत्मा को पवित्र रखती है।
छप्पन भोगों की सैर लुभावनी है, पर उनमें स्वार्थ का दाग लग जाता है। सादा नमक और साग, जब प्रभु के प्रेम में पकता है, तो वही अमृत बन जाता है। दूसरों की समृद्धि देखकर मन में ईर्ष्या क्यों? अपना छोटा-सा कालर ही श्रेष्ठ है, जिसमें संतोष और सत्य की फसल उगती है। पराया छैल-छबीला लाखों का हो, पर वह अपने हृदय को सुकून नहीं देता। उसके साथ चलने से न मन शांत होता है, न दुनिया की वाहवाही मिलती है।
वहीं, सादा और सच्चा साथी, भले ही वह साधारण या त्रुटिपूर्ण दिखे, सदा हृदय को ठंडक देता है। उसका साथ दुनिया को भला लगता है। सच्चा सुख तो उस अविनाशी प्रभु से प्रेम में है, जो कभी नष्ट नहीं होता। यही वह भक्ति है, जिसमें मीरा अपने प्रभु में डूबकर अनंत शांति और प्रेम पाती है।
छप्पन भोगों की सैर लुभावनी है, पर उनमें स्वार्थ का दाग लग जाता है। सादा नमक और साग, जब प्रभु के प्रेम में पकता है, तो वही अमृत बन जाता है। दूसरों की समृद्धि देखकर मन में ईर्ष्या क्यों? अपना छोटा-सा कालर ही श्रेष्ठ है, जिसमें संतोष और सत्य की फसल उगती है। पराया छैल-छबीला लाखों का हो, पर वह अपने हृदय को सुकून नहीं देता। उसके साथ चलने से न मन शांत होता है, न दुनिया की वाहवाही मिलती है।
वहीं, सादा और सच्चा साथी, भले ही वह साधारण या त्रुटिपूर्ण दिखे, सदा हृदय को ठंडक देता है। उसका साथ दुनिया को भला लगता है। सच्चा सुख तो उस अविनाशी प्रभु से प्रेम में है, जो कभी नष्ट नहीं होता। यही वह भक्ति है, जिसमें मीरा अपने प्रभु में डूबकर अनंत शांति और प्रेम पाती है।
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