ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ लिरिक्स Brijlila Lakh Jan Sukh Pawa Lyrics

ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ लिरिक्स Brijlila Lakh Jan Sukh Pawa Lyrics मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics

ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ
ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ, ब्रजबणताँ सुखरासी।
णाच्याँ गावाँ ताल बजावाँ, पावाँ आणद हाँसी।
णन्द जसोदा पुन्न रो प्रगटह्याँ, प्रभु अविनासी।
पीताम्बर कट उर बैजणताँ, कर सोहाँ री बाँसी।।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, दरसण दीज्यो दासी।।

(गोकल रो=गोकुल का, जण=जन,प्रत्येक व्यक्ति,
ब्रजबणताँ=ब्रज-वनिता,ब्रज की नारियाँ, सुखरासी=
अपार सुख, णन्द=नन्द,कृष्ण के पिता, कट=कटि,
बैजणताँ=बैजयन्ती माला, बाँसी=बाँसुरी, रे=के,
नागर=चतुर)
 मेरो मनमोहना, आयो नहीं सखी री॥
कैं कहुं काज किया संतन का, कै कहुं गैल भुलावना॥
कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी, लाग्यो है बिरह सतावना॥
मीरा दासी दरसण प्यासी, हरिचरणां चित लावना॥

हरिनाम बिना नर ऐसा है। दीपकबीन मंदिर जैसा है॥ध्रु०॥
जैसे बिना पुरुखकी नारी है। जैसे पुत्रबिना मातारी है।
जलबिन सरोबर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥१॥
जैसे सशीविन रजनी सोई है। जैसे बिना लौकनी रसोई है।
घरधनी बिन घर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥२॥
ठुठर बिन वृक्ष बनाया है। जैसा सुम संचरी नाया है।
गिनका घर पूतेर जैसा है। हरिनम बिना नर ऐसा है॥३॥
कहे हरिसे मिलना। जहां जन्ममरणकी नही कलना।
बिन गुरुका चेला जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥४॥

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