पलक ना लागे मेरी श्याम बिना

पलक ना लागे मेरी श्याम बिना

पलक ना लागे मेरी श्याम  बिना मीरा भजन
पलक न लागी मेरी स्याम बिना ।।टेक।।
हरि बिनु मथुरा ऐसी लागै, शसि बिन रैन अँधेरी।
पात पात वृन्दावन ढूंढ्यो, कुँज कुँज ब्रज केरी।
ऊँचे खड़े मथुरा नगरी, तले बहै जमना गहरी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर हरि चरणन की चेरी।।

मीरा बाई के इस भजन में उनके आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम और वियोग की भावना प्रकट होती है। वे कहती हैं कि श्याम (कृष्ण) के बिना उनकी पलकें नहीं लगतीं, अर्थात उन्हें नींद नहीं आती। हरि (कृष्ण) के बिना मथुरा उन्हें ऐसी लगती है जैसे चंद्रमा के बिना रात अंधेरी हो। वृंदावन के प्रत्येक पत्ते और ब्रज की प्रत्येक कुंज में उन्होंने अपने प्रियतम को खोजा है। मथुरा नगरी ऊंचाई पर स्थित है और उसके नीचे यमुना गहरी बहती है। मीरा कहती हैं कि उनके प्रभु गिरधर नागर के चरणों की वे दासी हैं।
 
श्याम के बिना मन की हर पलक भारी हो जाती है, जैसे बिना चाँद की रात अंधेरी लगती है। यह विरह वह आग है, जो हृदय को जलाती है, और प्रभु के दर्शन की प्यास को और गहरा करती है। मथुरा, वृंदावन, और ब्रज की कुँज-कुँज में भटकता मन, हर पात में श्याम को खोजता है, पर बिना उनके रंग के सब सूना है।

मथुरा की ऊँची नगरी और यमुना की गहरी धारा, ये सब बाहरी शोभा हैं, पर श्याम के बिना ये मन को नहीं भातीं। यह तड़प उस भक्त की है, जो प्रभु के बिना अधूरा है, जैसे कमल बिना सूरज के मुरझा जाता है।

मीरा का गिरधर के चरणों में दास्य भाव, वह समर्पण है, जो हर दुख को भुलाकर केवल प्रभु की सेवा में रम जाता है। यह भक्ति वह नदी है, जो श्याम के चरणों में बहती हुई, आत्मा को उनके प्रेम में डुबो देती है, और जीवन को उनकी कृपा के रंग से सराबोर कर देती है।
 
 


पलक ना लागे मेरी श्याम  बिना मीरा भजन   Please watch: "कब आओगे मदन गोपाल ! super hit krishna bhajan 2019 ~ Kab Aaoge Madan Gopal"  https://www.youtube.com/watch?v=72q1o... --~-- SAV - 60462  Video Name :- Shyam Bin Palak Na Lage Mori  Copyright :- Bankey Bihari Music (BBM Series)
 
पपइया रे, पिव की वाणि न बोल।
सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़॥
चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण।
पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥
थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज।
चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज॥
प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे, कागा तू ले जाय।
जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे, थांरि बिरहस धान न खाय॥
मीरा दासी व्याकुल रे, पिव पिव करत बिहाय।
बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम विन रह्यौ न जाय॥

पिया मोहि दरसण दीजै हो।
बेर बेर मैं टेरहूं, या किरपा कीजै हो॥
जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो।
मोर असाढ़ा कुरलहे घन चात्रा सोई हो॥
सावण में झड़ लागियो, सखि तीजां खेलै हो।
भादरवै नदियां वहै दूरी जिन मेलै हो॥
सीप स्वाति ही झलती आसोजां सोई हो।
देव काती में पूजहे मेरे तुम होई हो॥
मंगसर ठंड बहोती पड़ै मोहि बेगि सम्हालो हो।
पोस महीं पाला घणा,अबही तुम न्हालो हो॥
महा महीं बसंत पंचमी फागां सब गावै हो।
फागुण फागां खेलहैं बणराय जरावै हो।
चैत चित्त में ऊपजी दरसण तुम दीजै हो।
बैसाख बणराइ फूलवै कोमल कुरलीजै हो॥
काग उड़ावत दिन गया बूझूं पंडित जोसी हो।
मीरा बिरहण व्याकुली दरसण कद होसी हो॥ 
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