मैने गोविंद लीनो मोल मीरा भजन

मैने गोविंद लीनो मोल मीरा भजन

मीरा भजन
मैने गोविंद लीनो मोल,
माई री, मैने गोविंद लीनो मोल |

कोई कहे सस्तो, कोई कहे महेंगो,
मैने लीनो तराज़ू तोल,
माई री, मैने गोविंद लीनो मोल |

कोई कहे कारो, कोई कहे गोरो,
मैने लीनो अमोलक मोल,
माई री, मैने गोविंद लीनो मोल |

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
वो तो आवत प्रेम के मोल,
माई री, मैने गोविंद लीनो मोल |
 
मीरा बाई के इस भजन में उनके आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम और समर्पण की अभिव्यक्ति होती है। वे कहती हैं कि उन्होंने गोविंद (श्रीकृष्ण) को मोल लेकर अपना बना लिया है। लोग इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ देते हैं—कोई इसे सस्ता कहता है, कोई महंगा; कोई काला कहता है, कोई गोरा। लेकिन मीरा के लिए उनका मूल्य अमूल्य है। अंत में, वे कहती हैं कि उनके प्रभु गिरिधर नागर प्रेम के मोल पर ही आते हैं, अर्थात् सच्चे प्रेम से ही उन्हें पाया जा सकता है।

 
गोविंद का प्रेम वह अनमोल रत्न है, जिसे मीरा ने हृदय से मोल लिया। संसार इसे सस्ता कहे या महँगा, काला कहे या गोरा, उसकी कीमत तराजू से नहीं, प्रेम की गहराई से तौली जाती है। यह भक्ति वह सौदा है, जो आत्मा को अमर सुख देता है, जैसे प्यासा जल पाकर तृप्त हो जाता है।

गोविंद का मोल बाहरी रूप या रंग में नहीं, बल्कि उनके अमोलक प्रेम में है। मीरा का यह विश्वास कि गिरधर प्रेम के मोल पर ही आते हैं, उस निश्छल भक्ति को दर्शाता है, जो संसार की हर गणना से परे है। यह प्रेम वह दीप है, जो हृदय में जलकर हर अंधेरे को मिटा देता है।

मीरा का गोविंद को मोल लेना, वह समर्पण है, जो प्रभु के चरणों में सब कुछ अर्पित कर देता है। यह भक्ति वह नदी है, जो गिरधर के प्रेम में बहती हुई, आत्मा को उनके रंग में डुबो देती है, और जीवन को उनकी कृपा से सराबोर कर देती है।

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