पार्वती बोली भोले से भजन
पार्वती बोली भोले से भजन
पार्वती बोली भोले से ऐसा महल बना देना,जिसदिन से मैं ब्याह के आई भाग्य हमारे फुट गये,
पीसत पीसत भंगियाँ तेरी हाथ हमारे टूट गये,
कान खोल कर सुन ले मोडे, अब पर्वत पर ना रहना,
कोई भी देखे तो ये बोले क्या कहना भाई क्या कहना,
पार्वती से बोले भोले तेरे मन में धीर नहीं,
इन ऊचे महलो में रहना ये अपनी तकदीर नहीं,
करूँ तपस्या मैं पर्वत पर हमे महल का क्या करना,
कोई भी देखे तो ये बोले क्या कहना भाई क्या कहना,
सोना चांदी हीरे मोती चमक रहे हो चम, चम,
दास दासियाँ करे हाज़री मेरी सेवा में हर दम,
बिना इजाजत कोई न आवे पहरेदार बिठा देना,
कोई भी देखे तो ये बोले क्या कहना भाई क्या कहना,
पार्वती की ज़िद के आगे भोले बाबा हार गये,
सूंदर महल बनाने खातिर विस्वकर्मा त्यार हुए,
पार्वती लक्ष्मी से बोली ग्रहप्रवेश में आ जाना,
कोई भी देखे तो ये बोले क्या कहना भाई क्या कहना,
ग्रह प्रवेश करने की खातिर पंडत को भुलवाया था,
विष्णु वहां था बड़ा ही ज्ञानी गृहप्रवेश करवाया था,
सूंदर महल बना सोने का इसे दान में दे देना,
कोई भी देखे तो ये बोले क्या कहना भाई क्या कहना,
जिसकी जो तकदीर है संजू बस उतना ही मिलता है,
मालिक की मर्जी के बिना तो पता तक न हिलता है,
तू तो भजन किये जा प्यारे इस दुनिया से क्या लेना,
कोई भी देखे तो ये बोले क्या कहना भाई क्या कहना,
सुंदर भजन में माँ पार्वती और भगवान भोलेनाथ की भावपूर्ण चर्चा का उदगार प्रकट हुआ है। यह भजन शिव-पार्वती के दिव्य संवाद को दर्शाता है, जिसमें माँ पार्वती शिव से अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति करती हैं और शिव अपने सरल, त्यागमयी स्वरूप से उत्तर देते हैं।
इसमें पार्वती जी की इच्छाएँ और भोलेनाथ का संतुलित दृष्टिकोण स्पष्ट होता है—जहाँ पार्वती जी सांसारिक सुख-सुविधाओं की अभिलाषा करती हैं, वहीं शिवजी उनकी सीख देकर सत्य और त्याग का मार्ग अपनाने का संकेत देते हैं। शिवजी तपस्वी हैं, उन्हें सांसारिक ऐश्वर्य से कोई मोह नहीं, जबकि पार्वती जी अपने स्थान को भव्य बनाने की कामना करती हैं।
उदगार स्वरूप यह भजन प्रदर्शित करता है कि जीवन में भौतिक ऐश्वर्य से अधिक महत्वपूर्ण संतोष, धर्म और सच्ची साधना है। शिवजी का त्यागपूर्ण और साधनारत जीवन यही संकेत देता है कि सच्चा सुख सांसारिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और समर्पण में है।
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