मैं तो शिव की पुजारन बनूँगी अपने भोले

मैं तो शिव की पुजारन बनूँगी अपने भोले की जोगन

मैं तो शिव की पुजारन बनूँगी,
अपने भोले की जोगन बनूँगी,

मैं तो पहनुँगी जोगन का चोला,
वो है पारस महादेव भोला,
चरण छु कर मैं कुंदन बनूँगी,
अपने भोले की जोगन बनूँगी,
मैं तो शिव की पुजारन बनूँगी,

नही मिलते है अनुरागियों को,
शिव तो मिलते है बैरागियो को,
मैं भी उनकी बैरगान बनूँगी,
अपने भोले की जोगन बनूँगी,
मै तो शिव की पुजारन बनूँगी,
अपने भोले की जोगन बनूँगी,

करके जी जान से उसकी भक्ति,
शिव से माँगूंगी नारी की मुक्ति,
नारी जाती का दर्पण बनूँगी,
अपने भोले की जोगन बनूँगी,
मै तो शिव की पुजारन बनूँगी,
अपने भोले की जोगन बनूँगी,

मै तो शिव की पुजारन बनूँगी,
अपने भोले की जोगन बनूँगी

आपके सुंदर भजन में भक्ति और त्याग की भावना प्रबल रूप से झलकती है। यह शिव के प्रति समर्पण और उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रबल इच्छा को प्रकट करता है। शिव का दर्शन वैराग्य और आत्मज्ञान से जुड़ा हुआ है। यह भजन उस गहन सत्य को उजागर करता है कि शिव प्रेम नहीं बल्कि संपूर्ण समर्पण और त्याग के माध्यम से प्राप्त होते हैं। भक्त अपनी भक्ति को एक साधना के रूप में देखता है, जिसमें वह सांसारिक मोह को त्यागकर शिव की जोगन बनने की राह पर चल पड़ता है। यह मार्ग आत्मशुद्धि और दिव्य प्रेम से ओत-प्रोत होता है।

शिव को पारस मानकर उनकी कृपा से स्वयं को कुंदन बनाने की भावना व्यक्ति के आत्मिक उत्थान को दर्शाती है। यह भजन त्याग और शिव की भक्ति को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य बताता है। संसार की मोह-माया से दूर रहकर शिव की सेवा करना ही सच्चा सुख है।

इसके अतिरिक्त, यह भजन नारी की मुक्ति और उसकी शक्ति को भी उजागर करता है। शिव की आराधना नारी को उसके वास्तविक स्वरूप और शक्ति का बोध कराती है। समाज में नारी को एक दर्पण की तरह सम्मानित करने का संदेश इसमें निहित है, जिसमें उसका स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता अहम भूमिका निभाते हैं।वैरागियों को शिव का साथ मिलने का उद्गार इस सत्य को सामने लाता है कि सच्ची भक्ति में लालसा और आसक्ति का कोई स्थान नहीं। वैराग्य ही वह मार्ग है, जो शिव तक ले जाता है। यह भाव मीराबाई की तरह उस समर्पण को याद दिलाता है, जो बिना किसी अपेक्षा के केवल प्रभु के लिए जीता है। वैरागी मन संसार की माया से मुक्त होकर शिव में लीन होना चाहता है।

 

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