बुजदिलों को ही सदा मौत से डरते देखा

बुजदिलों को ही सदा मौत से डरते देखा

बुजदिलों को ही सदा मौत से डरते देखा,
गो कि सौ बार उन्हें रोज़ ही मरते देखा।

मौत से वीर को, हमने नहीं डरते देखा,
तख्ता-ए-मौत पै भी खेल ही करते देखा।

मौत को एक बार जब आना है, तो डरना क्या है,
हम सदा खेल ही समझा किये, मरना क्या है।

वतन हमेशा रहे शादकाम, औ' आजाद,
हमारा क्या है अगर हम रहे रहे न रहे।



कायरता में बार-बार मरने का भाव प्रकट होता है, परंतु सच्चे वीर मृत्यु को भी खेल समझकर आगे बढ़ते हैं। जीवन का अंतिम सत्य यही है—मृत्यु निश्चित है, तो उससे भय कैसा? सच्चा योद्धा मृत्यु से डरता नहीं, बल्कि उसे एक और चुनौती की भांति स्वीकार करता है। संघर्ष का मैदान हो या जीवन की कठिनाइयाँ, वह साहसपूर्वक अडिग रहता है। मृत्यु को सहज भाव से स्वीकारना ही शौर्य की पराकाष्ठा है।

देशभक्ति की भावना भी इसमें मुखर होती है—वतन स्वतंत्र और समृद्ध बना रहे, यही सबसे बड़ा उद्देश्य है। स्वयं का अस्तित्व रहे या न रहे, पर मातृभूमि सदा उन्नति और गौरव से भरपूर होनी चाहिए। यही सच्चा समर्पण है, और यही आत्मा की उच्चतम अभिव्यक्ति है।

इस संदेश में आत्मबल, राष्ट्रप्रेम और निर्भयता की गहन प्रेरणा समाहित है। जो मृत्यु से परे देख सकता है, वही जीवन के वास्तविक अर्थ को प्राप्त कर सकता है। साहस और समर्पण से युक्त जीवन ही सच्ची शांति और सम्मान प्रदान करता है।
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