अरूज़े कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा
अरूज़े कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा
अरूज़े कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा
अरूज़े कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा ।
चखायेंगे मजा बरबादी-ए-गुलशन का गुलचीं को ।
बहार आयेगी उस दिन जब कि अपना बागवां होगा ।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ।
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे-वतन हरगिज।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहां और तू कहां होगा ।
यह आये दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे-कातिल !
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा ।
शहीदों की चितायों पर जुड़ेगें हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे ।
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ।
अरूज़े कामयाबी पर कभी तो हिन्दुस्तां होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा ।
चखायेंगे मजा बरबादी-ए-गुलशन का गुलचीं को ।
बहार आयेगी उस दिन जब कि अपना बागवां होगा ।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ।
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे-वतन हरगिज।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहां और तू कहां होगा ।
यह आये दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे-कातिल !
बता कब फैसला उनके हमारे दरमियां होगा ।
शहीदों की चितायों पर जुड़ेगें हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।
इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे ।
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ।
सुंदर भजन में वतन के प्रति गहरी आस्था और बलिदान की भावना झलकती है। देश की स्वतंत्रता और सम्मान के लिए हर कष्ट सहने की प्रबल इच्छा मन को उद्वेलित करती है। जैसे कोई पक्षी अपने घोंसले को हर तूफान से बचाने को तत्पर रहता है, वैसे ही देशवासी अपने वतन की रक्षा के लिए हर बलिदान को तैयार हैं। यह भाव धर्मज्ञान की उस सीख को प्रदर्शित करता है कि सच्चा धर्म वही है, जो अपने देश की मिट्टी से प्रेम और उसके लिए समर्पण सिखाए।
वतन की बर्बादी का दर्द गुलशन के सूखे फूलों की तरह हृदय को चुभता है, लेकिन आशा का दीपक कभी बुझता नहीं। वह दिन अवश्य आएगा जब देश का हर बाग हरा-भरा होगा, जब स्वतंत्रता की सुगंध हर ओर फैलेगी। यह आशा चिंतन की गहराई से उपजती है, जो मानती है कि कष्टों के बीच भी सत्य और न्याय का मार्ग प्रशस्त होता है।
देश की आबरू की रक्षा का प्रश्न हर हृदय में गूंजता है। जैसे मां की ममता अपने बच्चों की रक्षा के लिए हर चुनौती से लड़ती है, वैसे ही वतन का हर बेटा-बेटी उसकी गरिमा के लिए कटिबद्ध है। यह भाव संत की वाणी की तरह पवित्र है, जो कहती है कि सच्चा जीवन वही है, जो अपने देश के लिए जिया जाए।
वतन का दर्द हर सांस के साथ जुड़ा है, उसे कभी अलग नहीं किया जा सकता। यह प्रेम इतना गहन है कि मृत्यु के पश्चात भी आत्मा अपने देश की मिट्टी से बंधी रहती है। यह उद्गार धर्मगुरु की उस शिक्षा को रेखांकित करता है कि प्रेम और समर्पण की कोई सीमा नहीं होती।
शहीदों की कुर्बानी को भुलाया नहीं जा सकता। उनकी चिताओं पर जलने वाली हर लौ देशवासियों को स्वतंत्रता का मूल्य सिखाती है। यह बलिदान देश के आकाश को और उज्ज्वल करता है, जैसे तारे रात को रोशन करते हैं।