ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन

ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझपे दिल क़ुर्बान
तू ही मेरी आरज़ू, तू ही मेरी आबरू
तू ही मेरी जान...

माँ का दिल बन के कभी सीने से लग जाता है तू,
और कभी नन्हीं सी बेटी बन के याद आता है तू।
जितना याद आता है मुझको, उतना तड़पाता है तू,
तुझपे दिल क़ुर्बान...

तेरे दामन से जो आए, उन हवाओं को सलाम,
चूम लूं मैं उस ज़ुबां को, जिस पे आए तेरा नाम।
सबसे प्यारी सुबह तेरी, सबसे रंगीं तेरी शाम,
तुझपे दिल क़ुर्बान...

छोड़ कर तेरी गली को, दूर आ पहुंचे हैं हम,
है मगर ये ही तमन्ना, तेरे ज़र्रों की कसम।
जिस जगह पैदा हुए थे, उस जगह ही निकले दम,
तुझपे दिल क़ुर्बान...


 गीत "ऐ मेरे प्यारे वतन" साझा किया है, जो हर प्रवासी भारतीय के दिल को छू जाता है। यह गीत फ़िल्म "काबुलीवाला" (1961) से है, जिसे मन्ना डे ने अपने भावुक स्वर में गाया था। इसके गीतकार प्रेम धवन और संगीतकार सलिल चौधरी हैं। यह गीत मातृभूमि के प्रति प्रेम, उसकी याद, और उस मिट्टी से अटूट जुड़ाव की भावना को बयां करता है। इस देशभक्ति गीत में वतन के प्रति गहरे प्रेम और विरह का मार्मिक उदगार है। भारत माता एक माँ की तरह हृदय से लगती है, तो कभी नन्हीं बेटी की तरह यादों में तड़पाती है। जैसे कोई प्रियजन दूर होकर भी मन में बसा रहे, वैसे ही वतन की हर सुबह, हर शाम, और उसका नाम लेने वाली जुबान सबसे प्यारी है।

वतन की हवाओं को सलाम और उसके हर जर्रे की कसम यह दर्शाती है कि भक्त का जीवन उसी मिट्टी के लिए समर्पित है, जहाँ वह जन्मा। दूर रहकर भी उसकी एकमात्र तमन्ना है कि आखिरी सांस उसी धरती पर निकले। यह भाव आत्मा को प्रेरित करता है कि वतन के लिए कुर्बान होने की भावना ही सच्चा प्रेम है, जो गर्व, शांति, और आत्मिक सुख की ओर ले जाता है।
 
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