कुंवरी अलबेली री अति सुन्दर सुकुँवारी
कुंवरी अलबेली री,
अति सुन्दर सुकुँवारी,
श्री राधा के रूप पर वारौं,
सुरनि नरनि की नारी।
वारौं सुर नर नारि निरखि मुख,
तनक पालक नहीं लागै,
वदन विमल राकेस चन्द्रिका,
जगमगाए रही आगै।
शीश फूल श्रीमंत अलक,
भुव बंक छबीले नैन,
नाथ की दुरनि अरुण अधरन पर,
बरनत बने न बैन।
चिबुक चारु की झलक,
कपोलनि कुण्डल रतन सुरंग,
उर ऊपर पदकनी की पाँति,
कटि छीन छर हरै अंग,
मनहुँ लता अनुराग की,
पूजत सांझी सांझ,
ज्यों उड़गन में चन्द्रमा,
त्यों स्यामा जू सखियाँ माँझ।
स्यामा जू सखियाँ माँझ छवि,
भरी आरती आय उतारैं,
सोभा रहि सब देखिति हिय में,
अपनौं मन धन वारें।
यह सोभा दूरि देखत हे पिय,
धरनि धुकति हिं बार,
नागरी सखि हाथ दे कखिया,
राखत श्याम संभार।
छबीली नागरी हो,
धन्य तेरो परम सुहाग,
तेरे ही रंग रंग्यो मनमोहन,
मानत है बड़ भाग।
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Author - Saroj Jangir
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