रख दो सिर पे कृपा का हाथ भजन

रख दो सिर पे कृपा का हाथ भजन

करो दो मुझ पे कृपा श्याम बाबा,
रख दो सिर पे कृपा का हाथ,
करो दो मुझ पे कृपा श्याम बाबा,
बालक हूँ मैं तेरा नादान।

शरण में तेरे आया मैं श्याम बाबा,
किस से कहूं दिल की बात,
मालिक तुम हो मेरे श्याम बाबा,
तुम ही तो पालनहार श्याम बाबा,
करो दो मुझ पे कृपा श्याम बाबा।

तेरी नजर हारो पे है, हारे की रखता तू ही लाज,
कब से तेरे चरणों में पड़ा, अब तो सुन मेरी पुकार ,
करो दो मुझ पे कृपा श्याम बाबा।

बालक हु नादान मैं पकड़ो मेरा हाथ श्याम बाबा,
दुनिया की क्यों करू परवा मेरा जीवन तेरे हाथो
करो दो मुझ पे कृपा श्याम बाबा।

अविनाश का जग में तुझ बिन कोई नहीं सहारा
दे दो बाबा मुझे चरणों में आसरा,
तूने मुझे अपना लिया जीवन होगा सफल,
करो दो मुझ पे कृपा श्याम बाबा। 

 
सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रति एक नादान बालक की तरह पूर्ण समर्पण और उनकी कृपा की याचना का मार्मिक चित्रण है। भक्त स्वयं को श्याम बाबा का बालक मानता है, जो उनकी शरण में आकर अपने हृदय की बात कहता है। वह श्रीकृष्णजी को अपना मालिक और पालनहार मानकर उनके कृपा के हाथ की प्रार्थना करता है। जैसे एक बच्चा माता-पिता की गोद में सांत्वना पाता है, वैसे ही भक्त श्याम की कृपा में जीवन का आधार खोजता है। यह उद्गार सिखाता है कि सच्ची भक्ति में सरलता और विश्वास ही प्रभु के चरणों तक पहुँचाते हैं।

श्रीकृष्णजी हारों के साथी हैं, जो उनकी लाज रखते हैं। भक्त उनकी पुकार सुनने और चरणों में स्थान देने की विनती करता है, क्योंकि दुनिया का कोई सहारा उसे पर्याप्त नहीं लगता। अविनाश जैसे भक्त के लिए श्याम ही एकमात्र आश्रय हैं, जिनके अपनाने से जीवन सफल हो जाता है। जैसे सूरज की किरणें अंधेरे को मिटाती हैं, वैसे ही श्याम की कृपा भक्त के जीवन को उज्ज्वल और सार्थक बनाती है। यह भाव दर्शाता है कि प्रभु का प्रेम और कृपा ही वह शक्ति है, जो हर दुख को दूर कर हृदय को शांति देती है।

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