हरि ओंम शाकम्भरी अम्बा आरती

हरि ओंम शाकम्भरी अम्बा जी शाकम्भरी आरती

हरि ओंम शाकम्भरी अम्बा जी,की आरती कीजो
ऐसा अदभुत रूप हृदय धर लीजो
शताक्षी दयालु की आरती कीजो |
तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां
सब घट तुम आप बखानी मां
शाकम्भरी अंबा जी की आरती कीजो
तुम्हीं हो शाकुम्भरी, तुम ही हो शताक्षी मां
शिव मूर्ति माया तुम ही हो प्रकाशी मां
श्री शाकुम्भर
नित जो नर नारी अंबे आरती गावे मां
इच्छा पूरणकीजो, शाकुम्भरी दर्शन पावे मां
श्री शाकुम्भर
जो नर आरती पढ़े पढ़ावे माँ
जो नर आरती सुने सुनावे माँ
बसे बैकुण्ठ शाकुम्भर दर्शन पावे,
श्री शाकम्भरी

शाकम्भरी माता आरती

जय जय शाकम्भरी माता ब्रह्मा विष्णु शिव दाता
हम सब उतारे तेरी आरती री मैया हम सब उतारे तेरी आरती
संकट मोचनी जय शाकम्भरी तेरा नाम सुना है
री मैया राजा ऋषियों पर जाता मेधा ऋषि भजे सुमाता
हम सब उतारे तेरी आरती
मांग सिंदूर विराजत मैया टीका सूब सजे है
सुंदर रूप भवन में लागे घंटा खूब बजे है
री मैया जहां भूमंडल जाता जय जय शाकम्भरी माता
हम सब उतारे तेरी आरती
क्रोधित होकर चली मात जब शुंभ- निशुंभ को मारा
महिषासुर की बांह पकड़ कर धरती पर दे मारा
री मैया मारकंडे विजय बताता पुष्पा ब्रह्मा बरसाता
हम सब उतारे तेरी आरती
चौसठ योगिनी मंगल गाने भैरव नाच दिखावे।
भीमा भ्रामरी और शताक्षी तांडव नाच सिखावें
री मैया रत्नों का हार मंगाता दुर्गे तेरी भेंट चढ़ाता
हम सब उतारे तेरी आरती
कोई भक्त कहीं ब्रह्माणी कोई कहे रुद्राणी
तीन लोक से सुना री मैया कहते कमला रानी
री मैया दुर्गे में आज मानता तेरा ही पुत्र कहाता
हम सब उतारे तेरी आरती
सुंदर चोले भक्त पहनावे गले मे सोरण माला
शाकंभरी कोई दुर्गे कहता कोई कहता ज्वाला
री मैया मां से बच्चे का नाता ना ही कपूत निभाता
हम सब उतारे तेरी आरती
पांच कोस की खोल तुम्हारी शिवालिक की घाटी
बसी सहारनपुर मे मैय्या धन्य कर दी माटी
री मैय्या जंगल मे मंगल करती सबके भंडारे भरती
हम सब उतारे तेरी आरती
शाकंभरी मैया की आरती जो भी प्रेम से गावें
सुख संतति मिलती उसको नाना फल भी पावे
री मैया जो जो तेरी सेवा करता लक्ष्मी से पूरा भरता
हम सब उतारे तेरी आरती

Shakambhari Mata Aarti 

हरि ॐ श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो
ऐसी अद्भुत रूप हृदय धर लीजो

शताक्षी दयालु की आरती कीजो
तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां, सब घट तुम आप बखानी मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो

तुम्हीं हो शाकुम्भर, तुम ही हो सताक्षी मां
शिवमूर्ति माया प्रकाशी मां,
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो

नित जो नर-नारी अम्बे आरती गावे मां
इच्छा पूर्ण कीजो, शाकुम्भर दर्शन पावे मां
शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो

जो नर आरती पढ़े पढ़ावे मां, जो नर आरती सुनावे मां
बस बैकुंठ शाकुम्भर दर्शन पावे
शाकुम्भरी अंबाजी की आरती कीजो।

शाकंभरी अमृतवाणी ||
बन्दउ माँ शाकम्भरी चरणगुरू का धरकर ध्यान
शाकम्भरी माँ चालीसा का करे प्रख्यान
आनन्दमयी जगदम्बिका अनन्त रूप भण्डार
माँ शाकम्भरी की कृपा बनी रहे हर बार

शाकम्भरी माँ अति सुखकारी
पूर्ण ब्रह्म सदा दुःख हारी
कारण करण जगत की दाता
आनन्द चेतन विश्व विधाता
अमर जोत है मात तुम्हारी
तुम ही सदा भगतन हितकारी
महिमा अमित अथाह अर्पणा
ब्रह्म हरि हर मात अर्पणा

ज्ञान राशि हो दीन दयाली
शरणागत घर भरती खुशहाली
नारायशी तुम ब्रहा प्रकाशी
जल थल नभ हो अविनाशी
कमल कान्तिमय शान्ति अनूपा
जोत मन मर्यादा जोत स्वरुपा
 कोरस: जब जब भक्तों ने है ध्याई
जोत अपनी प्रकट हो आई
प्यारी बहन के संग विराजे
मात शताक्षि संग ही साजे
भीम भयंकर रूप कराली
तीसरी बहन की जोत निराली

चौथी बहिन भ्रामरी तेरी
अद्भुत चंचल चित्त चितेरी
सम्मुख भैरव वीर खड़ा है
दानव दल से खूब लड़ा है
शिव शंकर प्रभु भोले भण्डारी
सदा रहे सन्तन हितकारी
हनुमत माता लकड़ा तेरा
सदा शाकम्भरी माँ का चेरा
हाथ ध्वजा हनुमान विराजे
युद्ध भूमि में माँ संग साजे
कालरात्रि धारे कराली
बहिन मात की अति विकराली

दश विद्या नव दुर्गा आदि
ध्याते तुम्हें परमार्थ वादि
अष्ट सिद्धि गणपति जी दाता
बाल रूप शरणागत माता
माँ भण्डारे के रखवारी
प्रथम पूजने के अधिकारी
जग की एक भ्रमण की कारण
शिव शक्ति हो दुष्ट विदारण
भूरा देव लौकड़ा दूजा
जिसकी होती पहली पूजा
बली बजरंगी तेरा चेरा
चले संग यश गाता तेरा

पाँच कोस की खोल तुम्हारी
तेरी लीला अति विस्तारी
रक्त दन्तिका तुम्हीं बनी हो
रक्त पान कर असुर हनी हो
रक्तबीज का नाश किया था
छिन्न मस्तिका रूप लिया था
सिद्ध योगिनी सहस्या राजे
सात कुण्ड में आप विराजे

रूप मराल का तुमने धारा
भोजन दे दे जन जन तारा
शोक पात से मुनि जन तारे
शोक पात जन दुःख निवारे
भद्र काली कमलेश्वर आई
कान्त शिवा भगतन सुखदाई
भोग भण्डारा हलवा पूरी
ध्वजा नारियल तिलक सिंदूरी
लाल चुनरी लगती प्यारी
ये ही भेंट ले दुःख निवारी
अंधे को तुम नयन दिखाती
कोढ़ी काया सफल बनाती

बाँझन के घर बाल खिलाती
निर्धन को धन खूब दिलाती
सुख दे दे भगत को तारे
साधु सज्जन काज संवारे
भूमण्डल से जोत प्रकाशी
शाकम्भरी माँ दुःख की नाशी
मधुर मधुर मुस्कान तुम्हारी
जन्म जन्म पहचान हमारी
चरण कमल तेरे बलिहारी
जै जै जै जग जननी तुम्हारी
कान्ता चालीसा अति सुखकारी
संकट दुःख दुविधा सब टारी
जो कोई जन चालीसा गावे
मात कृपा अति सुख पावे
कान्ता प्रसाद जगाधरी वासी
भाव शाकम्भरी तत्व प्रकाशी

बार बार कहें कर जोरी
विनती सुन शाकम्भरी मोरी
मैं सेवक हूँ दास तुम्हारा
जननी करना भव निस्तारा
यह सौ बार पाठ करे कोई
मातु कृपा अधिकारी सोई
संकट कष्ट को मात निवारे
शोक मोह शत्रुन संहारे
निर्धन धन सुख सम्पत्ति पावे
श्रद्धा भक्ति से चालीसा गावे
नौ रात्रों तक दीप जगावे
सपरिवार मगन हो गावे
प्रेम से पाठ करे मन लाई
कान्त शाकम्भरी अति सुखदाई
प्रेम से पाठ करे मन लाई
कान्त शाकम्भरी अति सुखदाई
प्रेम से पाठ करे मन लाई
कान्त शाकम्भरी अति सुखदाई

दुर्गा सुर संहारणि
करणि जग के काज
शाकम्भरी जननि शिवे
रखना मेरी लाज
युग युग तक व्रत तेरा
करे भक्त उद्धार
वो ही तेरा लाड़ला
आवे तेरे द्वार  
सुन्दर भजन में माँ शाकम्भरी की दिव्यता और करुणा का उदगार है। उनकी अनुपम ज्योति प्रत्येक भक्त के हृदय को आलोकित करती है। माँ शताक्षीजी का स्नेह असीम है, और उनके दर्शन से आत्मा में शांति और संतोष का संचार होता है। उनकी कृपा से जीवन में न केवल भौतिक समृद्धि आती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है।

माँ शाकम्भरीजी परिपूर्णता और शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। वे सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं और भक्तों को अपने दिव्य आश्रय से आशीर्वाद देती हैं। उनकी आराधना से मन में श्रद्धा और भक्ति की गहनता उत्पन्न होती है। वे आदि शक्ति हैं, जिनकी उपासना से समस्त जीवनदायिनी शक्तियों का साक्षात्कार होता है।

उनके आरती के माधुर्य में अनुग्रह और सुखद अनुभूति समाहित है। जो भी भक्त उनकी आरती करता है, उसके जीवन में आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है। उनकी भक्ति से इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। माँ की स्तुति से आत्मा वैकुण्ठ के दिव्य आनंद का अनुभव करती है, और भक्तों को उनके प्रेम और कृपा का प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है।

शाकम्भरी माँ के चरणों में समर्पण से जीवन में मंगलमय परिवर्तन आता है। उनकी आराधना में श्रद्धा और भक्ति का प्रवाह होता है, जिससे प्रत्येक मन निर्मलता और आनंद से भर जाता है। माँ की कृपा से जीवन में समर्पण, शक्ति और शांति का विस्तार होता है।
Next Post Previous Post