श्री बालकृष्ण जी की आरती भजन

श्री बालकृष्ण जी की आरती भजन

'आरती बालकृष्ण की कीजै' भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की स्तुति में गाई जाने वाली एक लोकप्रिय आरती है। इस आरती में श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं, उनकी मोहक छवि और उनके प्रति भक्तों के प्रेम का वर्णन किया गया है।
आरती बालकृष्ण की कीजै |
अपनों जनम सुफल करि लीजै |
श्रीयशुदा को परम दुलारौ |
बाबा की अखियन कौ तारो ||

गोपिन के प्राणन को प्यारौ |
इन पै प्राण निछावरी कीजै |
आरती बालकृष्ण की कीजै ||

बलदाऊ कौ छोटो भैया |
कनुआँ कहि कहि बोलत मैया |
परम मुदित मन लेत वलैया |
यह छबि नयननि में भरि लीजै |
आरती बालकृष्ण की कीजै ||

श्री राधावर सुघर कन्हैया |
ब्रजजन कौ नवनीत खवैया |
देखत ही मन नयन चुरैया |
अपनौ सरबस इनकूं दीजे |
आरती बालकृष्ण की कीजै ||

तोतरि बोलनि मधुर सुहावै |
सखन मधुर खेलत सुख पावै |
सोई सुकृति जो इनकूं ध्यावै |
अब इनकूं अपनों करि लीजै |
आरती बालकृष्ण की कीजै ||



आरती बालकृष्ण की कीजै || भगवान् कृष्ण की आरती || DEVKINANDAN THAKUR JI

सुन्दर भजन में बालकृष्णजी के दिव्य स्वरूप और उनकी बाल लीलाओं का उदगार है। उनके कोमल चरणों की वंदना से मन आनंद और भक्ति से परिपूर्ण हो जाता है। यह आरती भावनाओं को पवित्रता और प्रेम से भर देती है।

श्रीयशोदाजी के परम लाड़ले के रूप में श्रीकृष्णजी की छवि मन को मोह लेने वाली है। बाबा की आँखों का तारा बने श्रीकृष्णजी ब्रजभूमि में अपनी अलौकिक लीलाओं से सभी के हृदय में प्रेम और उल्लास का संचार करते हैं। उनके स्नेह में गोपियाँ अपने प्राण अर्पित करने को तत्पर रहती हैं, क्योंकि श्रीकृष्णजी का सान्निध्य जीवन को मधुरता से भर देता है।

बलरामजी के छोटे भाई के रूप में श्रीकृष्णजी का नटखट रूप ब्रजवासियों को सुख और उल्लास प्रदान करता है। उनकी बातें और बाल-चेष्टाएँ हर मन को भाव-विभोर कर देती हैं। उनकी वलैया को नयनों में भर लेने से जीवन में माधुर्य और सरलता का स्पंदन होता है। श्रीकृष्णजी की मधुर छवि मन को आनंद की अनुभूति कराती है।

श्रीराधारानीजी के प्रिय कन्हैया, ब्रजवासियों के लाडले, जिनकी मुख की मधुरता और सरलता हर मन को आकर्षित कर लेती है। उनकी अलौकिक लीलाओं का दर्शन मन को शुद्धता और भक्ति में तल्लीन कर देता है। श्रीकृष्णजी के भावों को अपनाने से जीवन में प्रेम और करुणा का प्रवाह अविरल बना रहता है।

इस भजन में श्रीकृष्णजी के तोतले बोलों की मधुरता और उनकी लीलाओं का आनंद प्रकट होता है। जो भी उनके ध्यान में तन्मय हो जाता है, वह आनंद और भक्ति में रम जाता है। उनकी उपासना से जीवन में सौम्यता और शांति का संचार होता है। श्रीकृष्णजी के चरणों की आरती करने से मन निर्मल और आस्था से ओतप्रोत हो जाता है।

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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