ॐ जय एकादशी लिखित आरती
ॐ जय एकादशी लिखित आरती
ॐ जय एकादशी आरती, भगवान विष्णु की महिमा और भक्ति का अद्भुत स्तुति गान है, जो एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव और दिव्यता को दर्शाती है। जब भक्तजन "ॐ जय एकादशी माते" का गान करते हैं, तो यह उनकी श्रद्धा और आस्था को प्रकट करता है। एकादशी माता, जो जीवन में पवित्रता, संयम, और धर्म का प्रतीक हैं, उनकी आरती हमें यह सिखाती है कि व्रत और भक्ति के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध कर सकते हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
सुन्दर भजन में एकादशी व्रत की महिमा का दिव्य विस्तार किया गया है। इस पावन तिथि में केवल उपवास और पूजा का कर्म नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने, चित्त को निर्मल करने और परमात्मा के निकट होने का अवसर प्राप्त होता है। विष्णु जी की आराधना के साथ यह व्रत साधक को शक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करता है, जिससे जीवन में आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है।
यह भजन हमें एकादशी की विभिन्न रूपों की याद दिलाता है, जो हर मास में भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रदान करती हैं। प्रत्येक एकादशी विशेष फलदायी होती है—कुछ पापों का नाश करती हैं, तो कुछ धन, संतोष और मुक्ति का वरदान देती हैं। यह बताती हैं कि ईश्वरीय कृपा सदैव धर्म और भक्ति के मार्ग से प्राप्त होती है। जब साधक श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत का पालन करता है, तब उसे आंतरिक शक्ति मिलती है, और उसका मन समस्त मोह-माया से मुक्त होकर परमात्मा की ओर बढ़ता है।
एकादशी व्रत का महत्व केवल बाह्य उपवास तक सीमित नहीं, बल्कि यह मन को विकारों से दूर रखने और आत्मिक तपस्या के माध्यम से ईश्वरीय प्रेम में रमने का उपक्रम है। जब भक्त भक्ति और संकल्पपूर्वक इस व्रत को धारण करता है, तब उसके जीवन में दिव्यता और सुख का संचार होता है। जीवन में समर्पण और श्रद्धा का भाव ही वास्तविक पुण्य का स्रोत है, जो अंततः आत्मा को मुक्त करता है।
इस भजन का संदेश यही कहता है कि एकादशी का पालन केवल शरीर को संयमित करने का मार्ग नहीं, बल्कि परमात्मा के समीप जाने की सच्ची विधि है। जब भक्त निष्ठा के साथ विष्णु जी की पूजा करता है, तब उसे आध्यात्मिक ज्ञान, मोक्ष और सुख की प्राप्ति होती है। यही इस व्रत की दिव्यता और शक्ति है, जो अंततः साधक को ईश्वरीय अनुग्रह से जोड़ती है। श्रद्धा, भक्ति और तप से ही जीवन में वास्तविक कल्याण संभव है।
ॐ जय एकादशी