आरती गोरख नाथ की
आरती गोरख नाथ की
जय गोरख देवा जय गोरख देवा |कर कृपा मम ऊपर नित्य करूँ सेवा |
शीश जटा अति सुंदर भाल चन्द्र सोहे |
कानन कुंडल झलकत निरखत मन मोहे |
गल सेली विच नाग सुशोभित तन भस्मी धारी |
आदि पुरुष योगीश्वर संतन हितकारी |
नाथ नरंजन आप ही घट घट के वासी |
करत कृपा निज जन पर मेटत यम फांसी |
रिद्धी सिद्धि चरणों में लोटत माया है दासी |
आप अलख अवधूता उतराखंड वासी |
अगम अगोचर अकथ अरुपी सबसे हो न्यारे |
योगीजन के आप ही सदा हो रखवारे |
ब्रह्मा विष्णु तुम्हारा निशदिन गुण गावे |
नारद शारद सुर मिल चरनन चित लावे |
चारो युग में आप विराजत योगी तन धारी |
सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग भय टारी |
गुरु गोरख नाथ की आरती निशदिन जो गावे |
विनवित बाल त्रिलोकी मुक्ति फल पावे |
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गुरु गोरक्ष (गोरख ) नाथ जी के बारे में :
गुरु गोरक्ष नाथ जी का नाम लेने मात्र से ही नाथ जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त होने लगता है। नाथो के नाथ श्री गुरु गोरख नाथ जी अत्यंत ही शुभकर और लाभदायक हैं। सच्चे और पवित्र मन से यदि नाथ जी महाराज को याद किया जाय तो वे अपने भक्तों को हर संकट से बचाने के लिए स्वंय उसकी मदद करते हैं। ऐसे कई लोगों के उदहारण हैं जिनकी पीड़ा स्वंय श्री गुरु गोरक्ष नाथ जी ने स्वंय हर ली है और अपना आशीर्वाद प्रदान किया है। इनकी महिमा है की इन्हे सिद्ध योगी कहा जाता है। गुरु गोरख नाथ जी के गुरु का नाम मछँदर नाथ /मत्स्येन्द्र नाथ है। बहुत ही सुन्दर कथा है, एक बार मछन्दरनाथ जी भिक्षा मांगते हुए एक गांव पहुंचे जहाँ उन्हें एक उदास महिला मिली। महिला ने बताया की तमाम कोशिश के बाद भी उसे संतान प्राप्ति नहीं हो रही है। मंछन्दर नाथ जी ने उन्हें दिव्य भभूति दी और बताया की इसके सेवन से तुम्हे जरूर पुत्र की प्राप्ति होगी। उस औरत सरस्वती ने अपनी सहेलियों के कहने पर उस भभूति को गोबर के ढेर में फ़ेंक दिया।
सुन्दर भजन में योगेश्वर गुरु गोरखनाथजी की दिव्यता और उनकी कृपा का भाव प्रकाशित किया गया है। वे अद्वितीय योगी, सनातन सत्य के धारक और भक्तों के मार्गदर्शक हैं। उनकी उपस्थिति केवल एक व्यक्तित्व नहीं, बल्कि एक अनवरत प्रवाह है, जो साधक को मोक्ष और आत्मज्ञान की दिशा में अग्रसर करता है।
गोरखनाथजी की आराधना आत्मा को शुद्ध करती है, अहंकार को मिटाती है, और योग-तप का मार्ग प्रशस्त करती है। जटा, भालचंद्र, कुंडल और भस्म से शोभायमान उनका स्वरूप साक्षात् योगशक्ति का प्रतीक है। वे उन दिव्य रहस्यों के ज्ञाता हैं, जो सृष्टि के आधारभूत तत्वों से परे हैं। उनके चरणों में रिद्धि-सिद्धि स्वयं समर्पित होती हैं, क्योंकि उनके योगबल से समस्त लौकिक और अलौकिक शक्तियाँ प्रभावित होती हैं।
भजन में यह भाव स्पष्ट होता है कि गोरखनाथजी की कृपा से साधक के भीतर आत्मा का प्रकाश जागृत होता है। जब योगी ध्यान और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ता है, तब उसे ब्रह्मज्ञान की अनुभूति होती है। चारों युगों में उनकी उपस्थिति सिद्ध होती है, क्योंकि वे काल और सीमाओं से परे हैं। उनकी तपस्या संसार के समस्त भय और अज्ञान को समाप्त करती है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति आत्मिक शांति प्राप्त कर सकता है।
योगमार्ग पर चलने वाले के लिए गुरु गोरखनाथजी की उपासना अत्यंत फलदायी होती है। वे केवल बाह्य रूप में नहीं, बल्कि प्रत्येक भक्त के अंतःकरण में निवास करते हैं। उनकी कृपा से भटकती आत्मा को मार्ग मिलता है, जीवन का अर्थ स्पष्ट होता है, और परम सत्य की अनुभूति प्राप्त होती है। यही योग, भक्ति और आत्मज्ञान का वह दिव्य संगम है, जो साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है। माँ भक्ति और योगशक्ति का यह संदेश सदा अमर है।
गोरखनाथजी की आराधना आत्मा को शुद्ध करती है, अहंकार को मिटाती है, और योग-तप का मार्ग प्रशस्त करती है। जटा, भालचंद्र, कुंडल और भस्म से शोभायमान उनका स्वरूप साक्षात् योगशक्ति का प्रतीक है। वे उन दिव्य रहस्यों के ज्ञाता हैं, जो सृष्टि के आधारभूत तत्वों से परे हैं। उनके चरणों में रिद्धि-सिद्धि स्वयं समर्पित होती हैं, क्योंकि उनके योगबल से समस्त लौकिक और अलौकिक शक्तियाँ प्रभावित होती हैं।
भजन में यह भाव स्पष्ट होता है कि गोरखनाथजी की कृपा से साधक के भीतर आत्मा का प्रकाश जागृत होता है। जब योगी ध्यान और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ता है, तब उसे ब्रह्मज्ञान की अनुभूति होती है। चारों युगों में उनकी उपस्थिति सिद्ध होती है, क्योंकि वे काल और सीमाओं से परे हैं। उनकी तपस्या संसार के समस्त भय और अज्ञान को समाप्त करती है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति आत्मिक शांति प्राप्त कर सकता है।
योगमार्ग पर चलने वाले के लिए गुरु गोरखनाथजी की उपासना अत्यंत फलदायी होती है। वे केवल बाह्य रूप में नहीं, बल्कि प्रत्येक भक्त के अंतःकरण में निवास करते हैं। उनकी कृपा से भटकती आत्मा को मार्ग मिलता है, जीवन का अर्थ स्पष्ट होता है, और परम सत्य की अनुभूति प्राप्त होती है। यही योग, भक्ति और आत्मज्ञान का वह दिव्य संगम है, जो साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है। माँ भक्ति और योगशक्ति का यह संदेश सदा अमर है।