तु राजा की राज दुलारी में सर्फ लगोटेआला
तु राजा की राज दुलारी में सर्फ लगोटे आला सु
मुखड़ा:तू राजा की राज दुलारी, मैं सिर्फ लंगोटे वाला हूँ,
भांग रगड़ के पिया करूं, मैं कुण्डी सोटे वाला हूँ।
अंतरा 1:
मैं अवधूत दर्शनी बाबा, राग देखकर डर जागी,
सौ-सौ नाग गले में हैं, तू नाग देखकर डर जागी।
मैं राख घोल के पिया करूं, मेरा भाग देखकर डर जागी,
धरती ऊपर सोया करूं, मेरी सेहत देखकर डर जागी।
एक कमंडल, एक कटोरा, मैं फूटे लोटे वाला हूँ,
भांग रगड़ के पिया करूं, मैं कुण्डी सोटे वाला हूँ।
अंतरा 2:
तेरे सौ-सौ दासी-दास हैं, मेरे एक भी दासी-दास नहीं,
महल वाला सुख चाहिए तुझे, मैं संतों का चौपड़-ताश नहीं।
तू बाग़ की कोयल सी है, मैं बर्फ पर उगी घास नहीं,
साल-दुशाले मांगेगी तू, मेरे पास कंबल तक भी नहीं।
तू साहूकारों में गुज़ारी, मैं बिलकुल टोटे वाला हूँ,
भांग रगड़ के...
अंतरा 3:
तू पालकी में सैर करे, मैं पैदल सवारी करूं,
तू महलों में रहने वाली, मैं बिन घरबारी रहूं।
पर्वतों पर लगी समाधि, मैं अटल अटारी रहूं,
तुझे बढ़िया भोजन मिले, मैं पेट पूजा से ही चलूं।
तुझे बड्ढा चाहिए ज़ुल्मों वाला, मैं लंबे-चौड़े वाला हूँ,
भांग रगड़ के...
अंतरा 4:
मैं कह रहा हूँ पार्वती, तुझसे ब्याह कराना ठीक नहीं,
मेरे साथ बच्चों वाला खेल खिलाना ठीक नहीं।
मैं भांग रगड़ के पिया करूं, मुझे तेल पिलाना ठीक नहीं,
मेरी जटा में गंगा बहे, मुझे मोड़ बनाना ठीक नहीं।
माघे राम बोझ मर जाएगी, मैं जबर भरोटे वाला हूँ,
भांग रगड़ के पिया करूं, मैं कुण्डी सोटे वाला हूँ।
शिव की तुलना सांसारिक ऐश्वर्य और भौतिक सुख-सुविधाओं से की गई है, जहाँ एक ओर पार्वती समृद्धि और वैभव से जुड़ी हुई हैं, वहीं शिव उन सभी सांसारिक मोहों से परे हैं। वह तपस्वी हैं, अवधूत हैं, जिनका कोई स्थायी निवास नहीं, जो साधना में लीन रहते हैं और जिनके पास केवल एक कमंडल और कटोरा है। यह भाव दिखाता है कि सच्चा आनंद बाहरी ऐश्वर्य में नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और भक्ति में है।
शिव का नागों के साथ निवास, उनकी जटाओं से बहती गंगा, उनके शरीर पर लिपटी राख—ये सभी उनके जीवन के अद्वितीय पहलुओं को दर्शाते हैं। वह मृत्यु और जीवन दोनों को सहज भाव से स्वीकार करते हैं। उनका जीवन त्याग और तपस्या की राह का संदेश देता है, जहाँ साधना ही सर्वोच्च सुख है।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं