भक्तों के हर दुःख दर्द दूर करते हैं श्री खाटू श्याम जी :
श्री श्याम बाबा को खाटू नरेश भी कहा जाता है और अपने भक्तों के हर दुःख
दर्द दूर करते हैं। श्री श्याम बाबा सीकर जिले के खाटू नगर में विराजमान
है। श्री खाटू श्याम बाबा को श्री कृष्ण जी से आशीर्वाद प्राप्त था की वे
कलयुग में कृष्ण जी के अवतार के रूप में पूजे जाएंगे और इनकी शरण में आने
वाले की हर पीड़ा को स्वंय भगवान् श्री कृष्ण हर लेंगे। श्री खाटू श्याम जी
के मुख मंदिर के अलावा दर्शनीय स्थलों में श्री श्याम कुंड और श्याम बगीची
भी हैं जो मंदिर परिसर के पास में ही स्थित हैं।
श्री
खाटू श्याम जी को हारे का सहारा कहा जाता है। खाटू श्याम जी कथा का उल्लेख
महाभारत की कथा में आता है। खाटू श्याम जी का नाम बर्बरीक था और वे
घटोत्कच के पुत्र थे। इनकी माता का नाम नाग कन्या मौरवी था। जन्म के समय
बर्बरीक का शरीर मानो किसी बब्बर शेर के सामान विशाल काय था इसलिए निका
नामकरण बर्बरीक कर दिया गया। बर्बरीक बाल्यकाल से ही शारीरिक शक्ति से भरे
थे और शिव के महान भक्त थे। श्री शिव ने ही बर्बरीक की तपस्या से प्रशन्न
होकर इन्हे ३ चमत्कारिक शक्तियां आशीर्वाद स्वरुप दी थी। ये तीन शक्तियां
उनके बाण ही थे जो स्वंय श्री शिव ने उन्हें दिए थे। उनका दिव्य धनुष
भगवान् अग्नि देव के द्वारा दिया गया था। कौरव पांडवो के युद्ध में बर्बरीक
ने अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर हारने वाले पक्ष की और से लड़ने तय किया
जिसके कारन उन्हें हारे का हरीनाम से जाना जाता है।
महाभारत
युद्ध में उन्होंने हारने वाले पक्ष का साथ देने का निर्णय किया। जब श्री
कृष्ण जी को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने जान लिया की यदि बर्बरीक
कौरवों के पक्ष में हो जाएंगे तो युद्ध का परिणाम बदल जाएगा। श्री कृष्ण ने
मार्ग में ब्राह्मण का रूप धारण करके उनकी परीक्षा लेनी चाही। श्री कृष्ण
ने बर्बरीक से कहा की वो अपने तीरों की परीक्षा देकर दिखाए और एक तीर से
पेड़ के सारे पत्ते भेद करके दिखाए। इस पर बर्बरीक ने ईश्वर का ध्यान करके
तीर चलाया। तीर पीपल वृक्ष के सारे पत्तों को भेदता हुआ श्री कृष्ण के
पैरों के चारों और चक्कर लगाने लग गया। श्री कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैरों
के निचे दबा रखा था। बर्बरीक को यह जानते हुए देर नहीं लगी की ये ब्राह्मण
नहीं बल्कि श्री कृष्ण हैं। श्री कृष्ण जी ने युक्तिवश उनके दिव्य तीरों को
खारिज करते हुए उनसे उनका शीश दान में मांग लिया।
वीर बर्बरीक ने ख़ुशी पूर्वक प्रभु के चरणों में अपना शीश दान में दे दिया तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया की कलयुग में उन्हें श्री श्याम बाबा के नाम से घर घर पूजा जाएगा और उनकी शरण में आने वाले भक्तों के दुःख दर्द स्वंय श्री कृष्ण दूर करेंगे।
वीर बर्बरीक ने ख़ुशी पूर्वक प्रभु के चरणों में अपना शीश दान में दे दिया तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया की कलयुग में उन्हें श्री श्याम बाबा के नाम से घर घर पूजा जाएगा और उनकी शरण में आने वाले भक्तों के दुःख दर्द स्वंय श्री कृष्ण दूर करेंगे।
वर्तमान
में जहाँ मंदिर है उसकी स्थापना तो बहुत पूर्व में की गयी थी लेकिन उसे नए
रूप में १७२० में इसकी आधारशिला राखी गयी थी। औरंगजेब ने इस मंदिर पर
आक्रमण किया था और इसे नष्ट करने की कोशिश की जिसे रोकने के लिए हजारों
राजपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है जहाँ देश विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लये आते हैं। मेले के लिए श्याम कमेटि के द्वारा व्यवस्थाएं की जाती है और स्थानीय प्रशाशन भी इसमें सहयोग करता है।
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है जहाँ देश विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन करने के लये आते हैं। मेले के लिए श्याम कमेटि के द्वारा व्यवस्थाएं की जाती है और स्थानीय प्रशाशन भी इसमें सहयोग करता है।
देश विदेश से आते हैं भक्त : श्री
खाटू धाम में देश विदेश से भक्त धोक के लिए आते यहीं और अपनी मन्नत बाबा
से मांगते है। बाबा भक्तों की हर मुराद को पूरा करते हैं और आशीर्वाद देते
हैं। बाबा हारे का सहारा है और शीश दानी के रूप में पूरा संसार पूजता है।
शीश दान के कारन ही पूरा संसार बाबा को दानी समझता है। होली से पहले एकादशी
को खाटू धाम में देश विदेश के भक्तों का जमावड़ा लग जाता है। यह मेला
फाल्गुन माह के शुक्ल ग्यारस को ५ दिनों तक मेला भरता है। ज्यादातर भक्त तो
मेले के बाद चले जाते हैं लेकिन कुछ भक्त होली तक यही रुकते हैं और खाटू
में ही होली खेलकर जाते हैं। रुकने के लिए यहाँ विभिन्न समाजों की तरफ से
धर्मशालाएं हैं और किफायती दरों पर रुकने की व्यवस्था हैं। लोग अपने घरों
से ही बाबा का झंडा जिसे निशान कहते हैं लेकर आते है। कुछ अपने साधनों से
आते हैं और ज्यादातर बसों में और पैदल आते हैं। पैदल यात्रियों के लिए
विशेष व्यवस्था की जाती है।
इस
मेले को लक्खी मेला भी कहा जाता है। इस मेले में स्थानीय लोग लंगर लगाते
हैं और पैदल आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करके बाबा का आशीर्वाद प्राप्त
करते हैं। जयपुर और सीकर के राष्ट्रिय राजमार्ग और छोटी सड़कों पर लोग लंगर
लगाते हैं। मेले का मुख्य द्वार रींगस में लगता है जहाँ से दस से बारह
किलोमीटर पैदल चलकर श्रद्धालु बाबा के दरबार तक पहुँचते हैं।
श्री
खाटू शाम बाबा के दरबार में दर्शनीय स्थल : श्री खाटू श्याम बाबा के
दरबार में मुख्य मंदिर में दर्शन के अलावा अन्य दर्शनीय स्थल भी है जिनके
दर्शन किये जाने चाहिए।
श्याम कुंड :
श्याम कुंड के बारे में मान्यता है की जहां बाबा का शीश जिस धरा पर
अवतरित हुआ था उस स्थान को श्याम कुंड के नाम से जाना जाता है। ऐसी
मान्यता है की श्याम कुंड में यदि कोई भक्त सच्चे मन से डुबकी लगाता है तो
उसके सारे पाप कट जाते हैं और बाबा का आशीर्वाद उसे प्राप्त होता है।
श्याम कुंड दो भागों में विभक्त है, महिला और पुरुष।
ऐसी
मान्यता है की श्री श्याम कुंड प्राचीन समय में रेत का टीला हुआ करता था।
उस टीले के आस पास इदा जाट की गायें चरने के लिए आया करती थी। टीले के
ऊपर के आक का पौधा भी था। टीले के पास आते ही गायें स्वतः ही दूध देने लग
जाती थी। इदा जाट रोज इस प्रक्रिया को देखता था। उसे इस बात का आश्चर्य
हुआ की गायें उस स्थान पर जाते ही कैसे दूध देने लगती हैं।
रात
को इडा जाट को स्वप्न में दिखाई दिया की वहां दूध पीने वाला कोई और नहीं
श्री श्याम ही हैं। श्री श्याम ने उससे कहा की राजा से कह कर उस स्थान की
खुदाई करवाओ तुम्हे उस स्थान पर में मिलूंगा जो कलयुग में श्याम बाबा के
नाम से पुकारे जाएंगे। अगले रोज राजा के कहने पर उस स्थान की मिटटी को
हटाया गया और वहां पर श्री श्याम बाबा की मूर्ति टीले से निकाली गयी। आज
मूर्ति की पूजा होती है और वहां जो कुंड बनाया गया उस कुंड को श्याम कुंड
के नाम से पुकारा जाता है। श्याम बगीची
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