चाँद चढ्यो गिगनार धळ आई आधी रात
राजस्थानी लोक गीतों में विरह एक प्रमुख विषय है। इन गीतों में प्रेमियों के बिछड़ने के बाद उनके मन में आने वाले दर्द और पीड़ा का मार्मिक वर्णन किया गया है। राजस्थानी लोकगीतों में विरह के कई रूप देखने को मिलते हैं, जैसे कि प्रेमी का प्रेमिका से बिछड़ना, प्रेमिका का प्रेमी से बिछड़ना, पति का पत्नी से बिछड़ना, पत्नी का पति से बिछड़ना, भाई का बहन से बिछड़ना, बहन का भाई से बिछड़ना, आदि।
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चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात,
पीव जी,
अब तो घरा पधारो ,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
हाथ्यां मेहंदी राचणी कोई नैना सुरमो सार्यो जी,
ले दीवलों चढ़ गई चौबारे, मरवड़ सेज सँवारे जी,
बैठी मनड़ो मार, गौरी रा,
आया नहीं भरतार,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात पीव जी,
अब तो घरा पधारो,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
ज्यूँ ज्यूँ तैल बळे दिवले में,
भर बाती सरकावे रे,
नहीं आयो मद चखियो बालम,
दिवलो नाड़ हिलावे रे,
दिवलो स्यूं झुंझलाए गोरी,
दिवलो दियो बुझाय,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे,
चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात पीव जी,
अब तो घरा पधारो ,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
सिसक सिसक कर गौरी रोवे,
तकिया काळा करिया जी,
उगते सूरज प्रीतम आया,
हाथ मोर पर धरिया जी,
कठे बिताई सारी रात,
देखो उग आयो प्रभात,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे,
चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात पीव जी,
अब तो घरा पधारो ,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
चंदो गयो सिधार देखो,
उग आयो परभात,
म्हारा घर आया भरतार,
मनड़ो मुळके छे जी मुलाके छै।
धळ आई आधी रात,
पीव जी,
अब तो घरा पधारो ,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
हाथ्यां मेहंदी राचणी कोई नैना सुरमो सार्यो जी,
ले दीवलों चढ़ गई चौबारे, मरवड़ सेज सँवारे जी,
बैठी मनड़ो मार, गौरी रा,
आया नहीं भरतार,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात पीव जी,
अब तो घरा पधारो,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
ज्यूँ ज्यूँ तैल बळे दिवले में,
भर बाती सरकावे रे,
नहीं आयो मद चखियो बालम,
दिवलो नाड़ हिलावे रे,
दिवलो स्यूं झुंझलाए गोरी,
दिवलो दियो बुझाय,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे,
चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात पीव जी,
अब तो घरा पधारो ,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
सिसक सिसक कर गौरी रोवे,
तकिया काळा करिया जी,
उगते सूरज प्रीतम आया,
हाथ मोर पर धरिया जी,
कठे बिताई सारी रात,
देखो उग आयो प्रभात,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे,
चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात पीव जी,
अब तो घरा पधारो ,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
चंदो गयो सिधार देखो,
उग आयो परभात,
म्हारा घर आया भरतार,
मनड़ो मुळके छे जी मुलाके छै।
चाँद चढ्यो गिगनार किरत्या,
धळ आई आधी रात,
पीव जी,
अब तो घरा पधारो ,
मारूड़ी थारी बिलखे छै, जी बिलखे छे।
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