धनलक्ष्मी स्तोत्रम् महत्त्व और फायदे

धनलक्ष्मी स्तोत्रम् महत्त्व और फायदे

॥धनलक्ष्मी स्तोत्रम्॥
॥धनदा उवाच॥
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।
कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम् ॥१॥
॥देव्युवाच॥
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम् ॥२॥
॥शिव उवाच॥
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।
उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया ॥३॥
स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥
धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम ॥५॥
पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता ॥६॥
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।
प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम् ॥७॥
धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम् ॥८॥
धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम् ॥९॥
रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि ॥१०॥
आरक्त- चरणाम्भोजे सिद्धि- सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते ॥११॥
समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने ॥१२॥
चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।
मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते ॥१३॥
हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने ॥१४॥
क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये ॥१५॥
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके ॥१६॥
कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते ॥१७॥
धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे ॥१८॥
स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे ॥१९॥
पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः ॥२०॥
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन- धान्यादिसम्पदः ॥२१॥
॥इति श्री धनलक्ष्मी स्तोत्रं संपूर्णम्॥

DHANALAKSHMI STOTHRAM (धनलक्ष्मी स्तोत्रम्- देवी देव मुपागम्य)

धनलक्ष्मी स्तोत्रम्, DHANALAKSHMI STOTHRAM

देवी देव मुपागम्य
नील कंठम् मम प्रियम् ।
कृपया पार्वती प्राह
शंकरम् करुणाकरम् ॥
। देव्युवाच ।
ब्रूहि वल्लभ साधूनाम्
दरिद्राणाम् कुटुंबिनाम् ।
दरिद्र दळनोपायम्
मंजसैव धन प्रदम् ॥
। शिव उवाच ।
पूजयन् पार्वती वाक्यम्
इद माह महेश्वरः ।
उचितम् जगद अंबासि
तव भूतानु कंपया ॥

धनलक्ष्मी स्तोत्रम् अर्थ

धनदा उवाच
1. देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।
कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम् ॥
धनदा (धनलक्ष्मी) कहती हैं: देवी पार्वती अपने प्रिय, नीलकंठ (शिव) के पास जाकर, करुणामय शंकर से कृपा करके बोलीं।

2. ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम् ॥
पार्वती बोलीं: हे प्रिय! साधुओं, गरीबों और परिवार वालों की दरिद्रता दूर करने और धन दिलाने का सरल उपाय बताइए।

3. पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।
उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया ॥
पार्वती की बात सुनकर महेश्वर (शिव) बोले: हे जगदंबा! तुम्हारी करुणा से यह उचित प्रश्न है।

4. स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम् ॥
(शिव बोले:) मैं सीता सहित राम, लक्ष्मण, हनुमान और अन्य भक्तों को प्रणाम कर, अब उत्तम स्तोत्र बताऊँगा।

5. धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम ॥
यह स्तोत्र श्रद्धा से पढ़ने वालों को तुरंत धन देता है, योग-क्षेम (संपत्ति-सुरक्षा) देता है। यह मेरा सत्य वचन है।

6. पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता ॥
जो इसे पढ़ते या दूसरों से पढ़वाते हैं, उन्हें जल्दी धन की प्राप्ति होती है, दरिद्रता नष्ट हो जाती है।

7. भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।
प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम् ॥
जो इसे पढ़ता है, उसे यह स्तोत्र कामधेनु (इच्छा पूर्ति करने वाली गाय) के समान फल देता है।

8. धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम् ॥
हे धन देने वाली, दयालु, दानशील देवी! कृपा करो, मैं जिस उद्देश्य से प्रार्थना कर रहा हूँ, वह पूर्ण करो।

9. धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम् ॥
हे धरती, अमर प्रिय, पुण्यशाली, धन्य, धनद की पूजिता! यजमान को तुरंत उत्तम धन दो।

10. रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि ॥
सुंदर, रुद्र की प्रिय, राम के रूप वाली, रति की प्रिय, मयूर मित्र के मनोहर रूप वाली! मुझ पर कृपा करो।

11. आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि- सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते ॥
लाल चरण कमल वाली, सिद्धि और सभी इच्छाएँ देने वाली, दिव्य वस्त्र और माला से सुशोभित देवी!

12. समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने ॥
सभी गुणों से युक्त, सभी लक्षणों वाली, शरद पूर्णिमा के चाँद जैसी मुख वाली, नीले कमल जैसी आँखों वाली देवी!

13. चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।
मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते ॥
भौंरों की टोली से शोभित, सुंदर श्रीहार, घुंघराले बाल, मत्त (मद में) भगवती, मधुर कंठ वाली माता!

14. हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने ॥
दिव्य मुस्कान और दृष्टि से भक्तों की चिंता हरने वाली, रूप, लावण्य, यौवन और दया की खान!

15. क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये ॥
कंकण-मंजीरों की झंकार से शोभित, सुंदर हाथों वाली, रुद्र द्वारा प्रकाशित तत्व, धर्म की धारक, धरती पर विराजमान देवी!

16. प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके ॥
हे माता! यजमान को तुरंत धर्मपूर्वक धन दो, जगदंबा, कृपा करो।

17. कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते ॥
हे शुभे! कृपा कर, मेरी प्रार्थना स्वीकार करो। धरती रूपी, वसु (धन) और वासव (इंद्र) द्वारा पूजित देवी!

18. धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे ॥
हे धन देने वाली! यजमान को वर दो, ब्राह्मणों द्वारा पूजित, पार्वती और शिव की प्रिय!

19. स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे ॥
यह स्तोत्र दरिद्रता और रोग का नाश करता है, उत्तम धन देता है। श्री (लक्ष्मी) और शिव की प्रिय, मुझ पर कृपा करो।

20. पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः ॥
पार्वतीश (शिव) की कृपा से, जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इस स्तोत्र को पढ़ेगा या पढ़ाएगा—

21. सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन- धान्यादिसम्पदः ॥
उसे हजारों-लाखों की धन-प्राप्ति निश्चित होगी। हे धनदा, निधिपद्माधिप (धन की स्वामिनी) आपको नमस्कार! आपकी कृपा से मुझे धन-धान्य आदि संपत्ति मिले।

महत्त्व: धनलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से साधक को माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र शिव-पार्वती संवाद के रूप में है, जिसमें स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को दरिद्रता दूर करने और धन प्राप्ति का उपाय बताया है। इस स्तोत्र में लक्ष्मी जी के सौंदर्य, दया, दानशीलता, और सभी गुणों का वर्णन है। इसे पढ़ने से न केवल आर्थिक कष्ट दूर होते हैं, बल्कि जीवन में शुभता, संतुलन, और सुख-शांति भी आती है। यह स्तोत्र खासकर उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है, जो आर्थिक तंगी, दरिद्रता, व्यापार में घाटा, या पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।

लाभ: धनलक्ष्मी स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक के जीवन में धन, वैभव, समृद्धि और सुख-शांति का संचार होता है। यह स्तोत्र दरिद्रता, रोग, और बाधाओं का नाश करता है, और साधक को इच्छानुसार धन, धान्य, संपत्ति, और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, यह स्तोत्र मन को शुद्ध, सकारात्मक और आत्मविश्वासी बनाता है, जिससे साधक अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। माता लक्ष्मी की कृपा से साधक के घर में हमेशा सुख, शांति, और समृद्धि बनी रहती है।

यह स्तोत्र शिव-पार्वती संवाद के रूप में है। माता पार्वती भगवान शिव से पूछती हैं कि दरिद्रता (गरीबी) से छुटकारा पाने और साधारण गृहस्थों के जीवन में धन-समृद्धि प्राप्त करने का सरल उपाय क्या है। शिवजी माता पार्वती की करुणा और जिज्ञासा की सराहना करते हैं और कहते हैं कि वे एक ऐसा स्तोत्र बताएंगे, जिसका पाठ श्रद्धा से करने पर साधक को शीघ्र ही धन, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है तथा दरिद्रता का नाश होता है। शिवजी बताते हैं कि इस स्तोत्र का पाठ करने या दूसरों से करवाने पर धन की प्राप्ति निश्चित है और दरिद्रता दूर होती है। इसमें माता लक्ष्मी के सौंदर्य, दया, दानशीलता, दिव्यता, और सभी गुणों का सुंदर वर्णन है। स्तोत्र में माता लक्ष्मी से प्रार्थना की गई है कि वे साधक की मनोकामनाएँ पूर्ण करें, उसे धर्मपूर्वक धन, सुख, शांति और समृद्धि दें, और उसके जीवन से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर करें।

नियमित पाठ से दरिद्रता दूर होती है

 
नियमित रूप से धनलक्ष्मी स्तोत्र या अन्य शुभ स्तोत्रों का पाठ करने से दरिद्रता क्यों दूर होती है और सुख क्यों प्राप्त होता है, इसका कारण शास्त्रों और अनुभवों में स्पष्ट रूप से बताया गया है। जब व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक इन स्तोत्रों का पाठ करता है, तो उससे उसके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शुभता और आत्मविश्वास का संचार होता है। यह पाठ नकारात्मकता, दुर्भाग्य, चिंता, मानसिक तनाव और आर्थिक बाधाओं को दूर करता है। ऐसे स्तोत्रों में देवी-देवताओं की कृपा, आशीर्वाद और उनकी शक्तियों का आवाहन होता है, जिससे साधक के जीवन में धन, सुख, शांति, संतुलन और संतोष का मार्ग खुलता है।

शास्त्रों के अनुसार, लक्ष्मी, शिव या अन्य देवी-देवताओं के स्तोत्रों का नियमित पाठ करने से घर में दरिद्रता, आर्थिक तंगी, रोग, कलह, मानसिक अशांति आदि दूर होते हैं और परिवार में सुख-शांति, समृद्धि तथा ऐश्वर्य आता है। यह पाठ साधक के मन को शुद्ध करता है, आत्मबल बढ़ाता है और जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देता है। जब साधक श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमित रूप से पाठ करता है, तो उसकी मनोकामनाएँ भी पूर्ण होती हैं और उसे देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे दरिद्रता दूर होती है और जीवन में सुख, सफलता और संतुलन आता ह

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