विश्कर्मा आरती अर्थ और महत्त्व
विश्कर्मा आरती अर्थ और महत्त्व
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||
आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||
ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
जय श्री विश्वकर्मा.
जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||
ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||
श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
"जय श्री विश्वकर्मा"
जानिये श्री विश्वकर्मा देव के बारे में : उपनिषद और पुराणों में उल्लेख मिलता है की श्री विश्वकर्मा देव अपने कौशल, विशेष ज्ञान और विज्ञानं, शिल्प कला के लिए देवताओं के द्वारा पूजे जाते थे। श्री विश्वकर्मा जी को आविष्कारक और निर्माणकर्ता के रूप में पूजा जाता है। प्राचीन काल की सभी राजधानियों का निर्माण श्री विश्वकर्मा जी के द्वारा ही किया गया था। इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी, कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड आदि का निर्माण श्री विश्वकर्मा जी के द्वारा ही किया गया है। भगवन श्री विश्वकर्मा जी की जयंती हर वर्ष १७ सितम्बर को बड़ी ही आस्था के साथ मनाई जाती है। इस दिन कारीगर लोग अपने औजारों की पूजा करते हैं और कारखानों और फैक्ट्रियों में मशीनों की पूजा की जाती है क्यों की श्री विश्वकर्मा इस श्रष्टि के प्रथम वैज्ञानिक, इंजीनियर और श्रष्टि की निर्माता माना जाता है। श्री विश्वकर्मा जी ने श्री ब्रह्म जी का निर्माण करके जीवन की शुरआत की। श्री विश्वकर्मा जी के पांच स्वरूपों का वर्णन प्राप्त है।
विराट विश्वकर्मा – सृष्टि के रचियता।
धर्मवंशी विश्वकर्मा – महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र
अंगिरावंशी विश्वकर्मा – आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र
सुधन्वा विश्वकर्म – महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पात्र
भृंगुवंशी विश्वकर्मा – उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र )
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||
हे प्रभु श्री विश्वकर्मा, आपको बार-बार प्रणाम। आप सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता और रक्षक हैं, आपकी स्तुति धर्म का पालन है।
आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||
सृष्टि के आरंभ में आपने ब्रह्मा (विधि) को वेद-ज्ञान का उपदेश दिया और समस्त जीवों में ज्ञान का विस्तार किया।
ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
ऋषि अंगिरा को जब तपस्या से शांति नहीं मिली, और एक रोगग्रस्त राजा ने आपकी शरण ली, तब आपने संकट का निवारण कर उनके दुःख दूर किए।
जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||
जब एक रथ बनाने वाले दंपत्ति ने आपकी प्रार्थना की, आपने उनकी विपत्ति दूर कर दी।
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||
आपके अनेक रूप हैं—एक मुख, चार मुख, पाँच मुख, तीन भुजाएँ, चार भुजाएँ, दस भुजाएँ—सभी रूपों में आप सुशोभित हैं।
ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||
जो आपके चरणों का ध्यान करता है, उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, मन की शंका मिट जाती है और अटल शक्ति मिलती है।
श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
जो भी श्रद्धा से आपकी आरती गाता है, उसे गणेश जी की कृपा से सुख और संपत्ति मिलती है।
श्री विश्वकर्मा आरती का महत्त्व
श्री विश्वकर्मा जी को सृष्टि के प्रथम शिल्पकार, वैज्ञानिक और देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है। आरती के माध्यम से उनके अद्भुत ज्ञान, निर्माण क्षमता, और संसार के कल्याण हेतु किए गए कार्यों का गुणगान किया जाता है। आरती में उनके द्वारा सृष्टि, राजधानियों, दिव्य अस्त्र-शस्त्र, और देवताओं के लिए बनाए गए अद्वितीय आविष्कारों का उल्लेख है। इससे यह संदेश मिलता है कि विश्वकर्मा जी न केवल भौतिक निर्माण के देवता हैं, बल्कि वे ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी कौशल और सृजनात्मकता के भी प्रतीक हैं।
विश्वकर्मा आरती का पाठ करने से साधक में रचनात्मकता, कौशल, परिश्रम, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कारीगर, इंजीनियर, वास्तुकार, और सभी निर्माण कार्यों से जुड़े लोग उनकी आराधना कर अपने कार्यों में सफलता, सुरक्षा और समृद्धि की कामना करते हैं। विश्वकर्मा जयंती पर औजारों, मशीनों और कार्यस्थलों की पूजा करने की परंपरा भी इस आरती के महत्व को दर्शाती है। श्री विश्वकर्मा जी की उपासना से जीवन में रचनात्मकता, नवाचार, और कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है, साथ ही समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी योगदान मिलता है।
धर्मवंशी विश्वकर्मा – महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र
अंगिरावंशी विश्वकर्मा – आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र
सुधन्वा विश्वकर्म – महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पात्र
भृंगुवंशी विश्वकर्मा – उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र )
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ||
हे प्रभु श्री विश्वकर्मा, आपको बार-बार प्रणाम। आप सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता और रक्षक हैं, आपकी स्तुति धर्म का पालन है।
आदि सृष्टि मे विधि को श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्रा का जाग मे, ज्ञान विकास किया ||
सृष्टि के आरंभ में आपने ब्रह्मा (विधि) को वेद-ज्ञान का उपदेश दिया और समस्त जीवों में ज्ञान का विस्तार किया।
ऋषि अंगीरा ताप से, शांति नहीं पाई |
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रया लीना |
संकट मोचन बनकर डोर दुःखा कीना ||
ऋषि अंगिरा को जब तपस्या से शांति नहीं मिली, और एक रोगग्रस्त राजा ने आपकी शरण ली, तब आपने संकट का निवारण कर उनके दुःख दूर किए।
जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी |
सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ||
जब एक रथ बनाने वाले दंपत्ति ने आपकी प्रार्थना की, आपने उनकी विपत्ति दूर कर दी।
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ||
आपके अनेक रूप हैं—एक मुख, चार मुख, पाँच मुख, तीन भुजाएँ, चार भुजाएँ, दस भुजाएँ—सभी रूपों में आप सुशोभित हैं।
ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ||
जो आपके चरणों का ध्यान करता है, उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, मन की शंका मिट जाती है और अटल शक्ति मिलती है।
श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे |
भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ||
जो भी श्रद्धा से आपकी आरती गाता है, उसे गणेश जी की कृपा से सुख और संपत्ति मिलती है।
श्री विश्वकर्मा आरती का महत्त्व
श्री विश्वकर्मा जी को सृष्टि के प्रथम शिल्पकार, वैज्ञानिक और देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है। आरती के माध्यम से उनके अद्भुत ज्ञान, निर्माण क्षमता, और संसार के कल्याण हेतु किए गए कार्यों का गुणगान किया जाता है। आरती में उनके द्वारा सृष्टि, राजधानियों, दिव्य अस्त्र-शस्त्र, और देवताओं के लिए बनाए गए अद्वितीय आविष्कारों का उल्लेख है। इससे यह संदेश मिलता है कि विश्वकर्मा जी न केवल भौतिक निर्माण के देवता हैं, बल्कि वे ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी कौशल और सृजनात्मकता के भी प्रतीक हैं।
विश्वकर्मा आरती का पाठ करने से साधक में रचनात्मकता, कौशल, परिश्रम, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कारीगर, इंजीनियर, वास्तुकार, और सभी निर्माण कार्यों से जुड़े लोग उनकी आराधना कर अपने कार्यों में सफलता, सुरक्षा और समृद्धि की कामना करते हैं। विश्वकर्मा जयंती पर औजारों, मशीनों और कार्यस्थलों की पूजा करने की परंपरा भी इस आरती के महत्व को दर्शाती है। श्री विश्वकर्मा जी की उपासना से जीवन में रचनात्मकता, नवाचार, और कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है, साथ ही समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी योगदान मिलता है।