या देवी सर्वभुतेशु विष्णु मयेति सद्बिता
नमस् तस्यै, नमस् तस्यै, नमस् तस्यै नमो नमः.
या देवी सर्वभुतेशु बुद्धि रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु निद्रा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु क्षुधा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु छाया रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु सकती रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु त्रिसना रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु क्संती रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु लज्जा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु शांति रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु श्रद्धा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु काँटी रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु वृत्ति रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु स्मृति रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु दया रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु तुस्ती रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु मत्री रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
नमस् तस्यै, नमस् तस्यै, नमस् तस्यै नमो नमः.
या देवी सर्वभुतेशु बुद्धि रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु निद्रा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु क्षुधा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु छाया रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु सकती रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु त्रिसना रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु क्संती रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु लज्जा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु शांति रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु श्रद्धा रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु काँटी रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु वृत्ति रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु स्मृति रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु दया रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु तुस्ती रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
या देवी सर्वभुतेशु मत्री रूपेण संस्थिता,
नमस् तस्यै….
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्॥
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धा˜यै नमो नम:। ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नम:॥
कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नम:। नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नम:॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नम:॥
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नम:। नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभेतेषु चेतनेत्यभिधीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
यादेवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या। भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नम:॥
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्व्याप्य स्थिता जगत्। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
स्तुता सुरै: पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:॥
या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै-रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति न: सर्वापदो भक्ति विनम्रमूर्तिभि:॥
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धा˜यै नमो नम:। ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नम:॥
कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नम:। नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नम:॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नम:॥
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नम:। नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभेतेषु चेतनेत्यभिधीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
यादेवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या। भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नम:॥
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्व्याप्य स्थिता जगत्। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
स्तुता सुरै: पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:॥
या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै-रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति न: सर्वापदो भक्ति विनम्रमूर्तिभि:॥
माँ दुर्गा अपने भक्तों के दुःख दर्द दूर करती हैं। माँ दुर्गा बहुत ही दयालु है और दुश्मनों का नाश करती हैं। सदाचारियों का माँ सदा ही उद्धार करती हैं। नवरात्रा के समय माँ की स्तुति बहुत ही लाभदायक है। नित्य माँ दुर्गा की स्तुति से माता रानी प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं जिससे सारे दुःख दर्द दूर हो जाते हैं। माँ दुर्गा की स्तुति नित्य स्नान करके सुद्ध वातावरण में माता रानी की मूर्ति के समक्ष की जानी चाहिए।
दुर्गा स्तुति का पाठ संकल्प और न्यास के साथ इसके उच्चारण से हमारे अंदर एक रासायनिक परिवर्तन होता है, जो आत्मिक शक्ति और आत्मविश्वास को शिखर पर पहुंचाने की ताकत रखता है। दुर्गा स्तुति से हमारी आंतरिक ऊर्जा का विस्तार होता है।
माता दुर्गा की महिमा : माता दुर्गा को आदि शक्ति माना जाता है। माँ दुर्गा पार्वती जी का ही रूप हैं। उपनिषदों में माँ के बारे में वर्णन मिलता है। उमा हैमवती के नाम से माता की महिमा का वर्णन उपनिषदों में मिलता है। देवताओं की प्रार्थना पर माँ ने अवतार लिया जिससे असुरों का अंत किया जा सके। माता दुर्गा के द्वारा असुरों का संहार करने के कारन ही युद्ध की देवी के रूप में पूजा जाता है। देवताओं ने सामूहिक रूप से माँ पार्वती का आह्वान किया और माँ ने दुर्गा रूप धारण किया और समस्त असुरों का अंत किया। ऐसी मान्यता है की माँ ने दुर्गेश नाम के राक्षक अंत करके "दुर्गा" नाम धारण किया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में माता के सोलह नामों की जानकारी मिलती है। माता दुर्गा के सोलह नाम हैं - दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अंबिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती, और सनातनी। दुर्गा शप्तशती में माता के नाम हैं - ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति, रक्तदन्तिका।
माँ दुर्गा के नाम से समस्त विषय विकारों का अंत होता है, दुर्गा शब्द से आशय है की समस्त आसुरी शक्तियों का अंत करने वाली। समस्त दुःख दर्द, शोक, भय का नाश होता है माँ दुर्गा के नाम के जाप से। माँ दुर्गा के नाम से ही समस्त नकारात्मक शक्तियों और क्लेश का अंत होता है। समस्त शक्तियों का वरदान और सिद्धि देनी वाली शक्ति है माता दुर्गा।
माता दुर्गा को शिव प्रिया कहा जाता है क्यों की एक तो माता रानी को पार्वती जी का अवतार माना जाता है और दूसरा शिव के नाम के समान ही माता जी के नाम का अर्थ है कल्याणकारी और शुभ शक्तियों का पोषण करने वाली माता।
माँ दुर्गा के रूप : शास्त्रों में माँ दुर्गा के ९ रूप माने गए हैं। माता दुर्गा जो जगत जननी है, उनके रूप निम्न है। नवरात्रों में माँ के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है और नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है।
माँ दुर्गा के नाम से समस्त विषय विकारों का अंत होता है, दुर्गा शब्द से आशय है की समस्त आसुरी शक्तियों का अंत करने वाली। समस्त दुःख दर्द, शोक, भय का नाश होता है माँ दुर्गा के नाम के जाप से। माँ दुर्गा के नाम से ही समस्त नकारात्मक शक्तियों और क्लेश का अंत होता है। समस्त शक्तियों का वरदान और सिद्धि देनी वाली शक्ति है माता दुर्गा।
माता दुर्गा को शिव प्रिया कहा जाता है क्यों की एक तो माता रानी को पार्वती जी का अवतार माना जाता है और दूसरा शिव के नाम के समान ही माता जी के नाम का अर्थ है कल्याणकारी और शुभ शक्तियों का पोषण करने वाली माता।
माँ दुर्गा के रूप : शास्त्रों में माँ दुर्गा के ९ रूप माने गए हैं। माता दुर्गा जो जगत जननी है, उनके रूप निम्न है। नवरात्रों में माँ के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है और नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है।
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चन्द्रघंटा
- कूष्माण्डा
- स्कंदमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यंति न संशय॥
माँ दुर्गा का कल्याणकारी मंत्र है जो समस्त बाधाओं का अंत करता है और जीनव में कल्याण लाता है।
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
यदि कोई जातक आर्थिक रूप से संकटों से घिरा है, विपन्नता उसका पीछा नहीं छोड़ रही है, व्यापार में लगातार घाटा प्राप्त हो रहा है तो माता रानी के निम्न मंत्र के जाप से लाभ प्राप्त होता है।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥
यदि आप आकर्षण चाहते हैं तो माता रानी की निम्न मंत्र का जाप करें।
ॐ क्लींग ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती ही सा,समस्त संकटों और विपत्तियों के नाश के लिए माता रानी के इस मंत्र से मिलेगी माता रानी की विशेष कृपा और होगा समस्त विपत्तियों का नाश।
बलादाकृष्य मोहय महामाया प्रयच्छति
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शक्ति प्राप्त करने के लिए माता रानी के निम्न मंत्र का जाप करें।
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।रक्षा पाने के लिएमाता रानी के निचे दिए गए मंत्र का जाप करे।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।जीवन में आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति माता रानी के दिए गए मंत्र का जाप करें।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।भय नाश के लिए माता रानी की इस मंत्र का जाप करे सभी आसुरी शक्तियों का नाश होगा।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।महामारी नाश के लिए माता रानी के इस मंत्र का जाप करे।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जाप करें।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।पाप नाश के लिए इस मंत्र का जाप करें।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्य भिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु छाया-रुपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू लज्जा-रुपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु शांति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू कान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु व्रती-रुपेणना संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृती-रुपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु दया-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु भ्राँति-रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इन्द्रियाणा मधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या |
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ||
चितिरुपेण या कृत्स्नम एतत व्याप्य स्थितः जगत
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्य भिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु छाया-रुपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू लज्जा-रुपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु शांति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषू कान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु व्रती-रुपेणना संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृती-रुपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु दया-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु भ्राँति-रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इन्द्रियाणा मधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या |
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ||
चितिरुपेण या कृत्स्नम एतत व्याप्य स्थितः जगत
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥