घर में रागी घर में वैरागी भजन

घर में रागी घर में वैरागी भजन

 
घर में रागी घर में वैरागी लिरिक्स Ghar Me Raagi Ghar Me Bairagi Lyrics

  घर में रागी घर में वैरागी,
घर घर गावन वाला ओ,
कलयुग री आ छाया पड़ी है
कुन नुगरोने वर्जन वाला ओ जी।।

गुरु मुख ग्यानी जगत में थोड़ा,
मन मुख मुंड कियोड़ा रे,
ग्यान गत री मत नही जाने,
ऐ लंबे बालों वाला ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

बाल राख ने मोड़ा चाले,
अरे पंच केश नही ध्याता है,
पांच तत्व री सार नही जाने,
नित निम् न्हावन वाला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

नावे धोवे तिलक लगावे,
अरे मंदिर जावन वाला ओ,
निज मन्दिर री खबर नही जाने,
गले जनोइरी माला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

अरे वेश पेर भगवान् रिजावे,
घरे जोगियो रा वाना ओ,
नेती धोती री सार नही जाने,
पर बैठा पुरुष दीवाना है ओ जी
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

भुरनाथ अडवन्का जोगी,
सिद का जल वसवाला है,
गुरु कानजी सिमरत मिलिया,
अब फेरुस थोरी माला है ओ जी,
घर में रागी घर में वैरागि,
घर घर गावन वाला ओ।।

घर में रागी घर में वैरागी,
घर घर गावन वाला ओ,
कलयुग री आ छाया पड़ी है
कुन नुगरोने वर्जन वाला ओ जी

Rajasthan का शानदार मारवाड़ी भजन 2021 Prakash Mali की आवाज में

 
Ghar Mein Raagee Ghar Mein Vairaagee,
Ghar Ghar Gaavan Vaala O,
Kalayug Ree Aa Chhaaya Padee Hai
Kun Nugarone Varjan Vaala O Jee..

जाका गुरु भी अंधला, चेरा खरा निरंध
अंधै अंधा ठेलिया, दून्यूं कूप पडंत।।
जिसका गुरु अंधा हो (अज्ञानी हो ) उसका चेला स्वतः ही उससे भी अँधा होता है। दोनों एक दूसरे को धकेलते हैं और संसार के अंधे कुए में गिर  जाते हैं। गुरु स्वंय अज्ञानी है, वो चेले को ज्ञान नहीं दे सकता हैं, इसलिए गुरु का चयन करना बहुत ही सावधानी का कार्य है।

बिन देखे वह देस की, बात कहै सो कूर।

आपै खारी खात हैं, बेचत फिरत कपूर।।
कबीर साहब का यह दोहा देखिये, कितनी ही गूढ़ सत्य को सरल शब्दों में कहा है। अज्ञानी और पाखंडी गुरु बिना ईश्वर ज्ञान के ईश्वर के देश, ईश्वर सबंधी बाते करता फिरता है। स्वंय खारी खाता है , उसे स्वंय को ही ज्ञान नहीं है, लेकिन कपूर बेचने का दिखावा करता है।

साधु भया तौ का भया, बूझा नहीं विवेक।
छापा तिलक बनाइ करि, दगध्या लोक अनेक।।
अगर साधू के पास विवेक ही नहीं है , ज्ञान नहीं है तो  साधू होने का क्या फायदा ? बाहरी आवरण धारण कर , तिलक छप कर वेश पहन कर स्वंय ही माया की अग्नि में जलता हैं।  
फूटी आंखि विवेक की, लखै न संत असंत।

जाके संग दस बीस हैं, ताका नाम महंत।।
वर्तमान समय में कबीर के विचार इस दोहे से सिद्ध हो जाते हैं।  विवेक के अभाव में हम संत और असंत का भेद नहीं कर पाते हैं। जिसके साथ दस बीस चेले हों हम उसे ही महंत मान बैठते हैं, जबकि वर्तमान समय में चेलों की संख्या ढोंगियों की ज्यादा है।
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