बृहस्पत्याष्टॊत्तर शतनामावलि अर्थ और महत्त्व

बृहस्पत्याष्टॊत्तर शतनामावलि अर्थ और महत्त्व

 
बृहस्पत्याष्टॊत्तर शतनामावलि अर्थ और महत्त्व

गुरु अष्टोत्तर शतनामावली हिंदी में
॥ बृहस्पत्याष्टॊत्तर शतनामावलि ॥
ॐ गुरवॆ नमः । ॐ गुणाकराय नमः ।
ॐ गॊप्त्रॆ नमः । ॐ गॊचराय नमः ।
ॐ गॊपतिप्रियाय नमः । ॐ गुणिनॆ नमः ।
ॐ गुणवंतांश्रॆष्ठाय नमः । ॐ गुरूनां गुरवॆ नमः ।
ॐ अव्ययाय नमः । ॐ जॆत्रॆ नमः ॥ १० ॥
ॐ जयंताय नमः । ॐ जयदाय नमः ।
ॐ जीवाय नमः । ॐ अनंताय नमः ।
ॐ जयावहाय नमः । ॐ अंगीरसाय नमः ।
ॐ अध्वरासक्ताय नमः । ॐ विविक्ताय नमः ।
ॐ अध्वरकृतॆ नमः । ॐ पराय नमः ॥ २० ॥
ॐ वाचस्पतयॆ नमः । ॐ वशिनॆ नमः ।
ॐ वश्याय नमः । ॐ वरिष्ठाय नमः ।
ॐ वाग्विचक्षणाय नमः । ॐ चित्तशुद्धिकराय नमः ।
ॐ श्रीमतॆ नमः । ॐ चैत्राय नमः ।
ॐ चित्रशिखंडिजाय नमः । ॐ बृहद्रथाय नमः ॥ ३० ॥
ॐ बृहद्भानवॆ नमः । ॐ बृहस्पतयॆ नमः ।
ॐ अभीष्टदाय नमः । ॐ सुराचार्याय नमः ।
ॐ सुराराध्याय नमः । ॐ सुरकार्यहितंकराय नमः ।
ॐ गीर्वाणपॊषकाय नमः । ॐ धन्याय नमः ।
ॐ गीष्पतयॆ नमः । ॐ गिरीशाय नमः ॥ ४० ॥
ॐ अनघाय नमः । ॐ धीवराय नमः ।
ॐ धीषणाय नमः । ॐ दिव्यभूषणाय नमः ।
ॐ धनुर्धराय नमः । ॐ दैत्रहंत्रॆ नमः ।
ॐ दयापराय नमः । ॐ दयाकराय नमः ।
ॐ दारिद्र्यनाशनाय नमः । ॐ धन्याय नमः ॥ ५० ॥
ॐ दक्षिणायन संभवाय नमः । ॐ धनुर्मीनाधिपाय नमः ।
ॐ दॆवाय नमः । ॐ धनुर्बाणधराय नमः ।
ॐ हरयॆ नमः । ॐ सर्वागमज्ञाय नमः ।
ॐ सर्वज्ञाय नमः । ॐ सर्ववॆदांतविद्वराय नमः ।
ॐ ब्रह्मपुत्राय नमः । ॐ ब्राह्मणॆशाय नमः ॥ ६० ॥
ॐ ब्रह्मविद्याविशारदाय नमः । ॐ समानाधिकनिर्मुक्ताय नमः ।
ॐ सर्वलॊकवशंवदाय नमः । ॐ ससुरासुरगंधर्ववंदिताय नमः ।
ॐ सत्यभाषणाय नमः । ॐ सुरॆंद्रवंद्याय नमः ।
ॐ दॆवाचार्याय नमः । ॐ अनंतसामर्थ्याय नमः ।
ॐ वॆदसिद्धांतपारंगाय नमः । ॐ सदानंदाय नमः ॥ ७० ॥
ॐ पीडाहराय नमः । ॐ वाचस्पतयॆ नमः ।
ॐ पीतवाससॆ नमः । ॐ अद्वितीयरूपाय नमः ।
ॐ लंबकूर्चाय नमः । ॐ प्रकृष्टनॆत्राय नमः ।
ॐ विप्राणांपतयॆ नमः । ॐ भार्गवशिष्याय नमः ।
ॐ विपन्नहितकराय नमः । ॐ बृहस्पतयॆ नमः ॥ ८० ॥
ॐ सुराचार्याय नमः । ॐ दयावतॆ नमः ।
ॐ शुभलक्षणाय नमः । ॐ लॊकत्रयगुरवॆ नमः ।
ॐ सर्वतॊविभवॆ नमः । ॐ सर्वॆशाय नमः ।
ॐ सर्वदाहृष्टाय नमः । ॐ सर्वगाय नमः ।
ॐ सर्वपूजिताय नमः । ॐ अक्रॊधनाय नमः ॥ ९० ॥
ॐ मुनिश्रॆष्ठाय नमः । ॐ नीतिकर्त्रॆ नमः ।
ॐ जगत्पित्रॆ नमः । ॐ सुरसैन्याय नमः ।
ॐ विपन्नत्राणहॆतवॆ नमः । ॐ विश्वयॊनयॆ नमः ।
ॐ अनयॊनिजाय नमः । ॐ भूर्भुवाय नमः ।
ॐ धनदात्रॆ नमः । ॐ भर्त्रॆ नमः ॥ १०० ॥
ॐ जीवाय नमः । ॐ महाबलाय नमः ।
ॐ काश्यपप्रियाय नमः । ॐ अभीष्टफलदाय नमः ।
ॐ विश्वात्मनॆ नमः । ॐ विश्वकर्त्रॆ नमः ।
ॐ श्रीमतॆ नमः । ॐ शुभग्रहाय नमः ॥ १०८ ॥
ॐ दॆवाय नमः । ॐ सुरपूजिताय नमः ।
ॐ प्रजापतयॆ नमः । ॐ विष्णवॆ नमः ।
ॐ सुरॆंद्रवंद्याय नमः ॥ ११२ ॥
॥ इति श्री बृहस्पत्याष्टॊत्तर शतनामावळिः संपूर्णम्‌ ॥
 
ॐ गुरवॆ नमः – हम गुरु को प्रणाम करते हैं।
ॐ गुणाकराय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो गुणों के संचयक हैं।
ॐ गॊप्त्रॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो सृष्टि के रक्षक हैं।
ॐ गॊचराय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो सभी प्राणियों के लिए सर्वव्यापी हैं।
ॐ गॊपतिप्रियाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो अपने भक्तों के प्रिय हैं।
ॐ गुणिनॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो गुणों से पूर्ण हैं।
ॐ गुणवंतांश्रॆष्ठाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो सर्वश्रेष्ठ गुणों से संपन्न हैं।
ॐ गुरूनां गुरवॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो सभी गुरुओं के गुरु हैं।
ॐ अव्ययाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो अविनाशी हैं।
ॐ जॆत्रॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो विजयी हैं।
ॐ जयंताय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो विजय के प्रतीक हैं।
ॐ जयदाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो विजय देने वाले हैं।
ॐ जीवाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो जीवों के जीवनदाता हैं।
ॐ अनंताय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो अनंत हैं।
ॐ जयावहाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो विजय का मार्ग प्रशस्त करने वाले हैं।
ॐ अंगीरसाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो अंगीरा मुनि के रूप में प्रसिद्ध हैं।
ॐ अध्वरासक्ताय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो यज्ञ के प्रेमी हैं।
ॐ विविक्ताय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो एकांतप्रिय हैं।
ॐ अध्वरकृतॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो यज्ञों का आयोजक हैं।
ॐ पराय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो सर्वश्रेष्ठ हैं।
ॐ वाचस्पतयॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो वाक्य के स्वामी हैं।
ॐ वशिनॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो वशीकरण करने वाले हैं।
ॐ वश्याय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो वशीकरण के पात्र हैं।
ॐ वरिष्ठाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो श्रेष्ठतम हैं।
ॐ वाग्विचक्षणाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो वाक्य के जानकार और कुशल हैं।
ॐ चित्तशुद्धिकराय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो चित्त की शुद्धि करने वाले हैं।
ॐ श्रीमतॆ नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो श्री के स्वामी हैं।
ॐ चैत्राय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो चैत्र के माह में पूजे जाते हैं।
ॐ चित्रशिखंडिजाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो चित्रकूट के शिखंडी हैं।
ॐ बृहद्रथाय नमः – हम उन भगवान को प्रणाम करते हैं, जो विशाल और महान हैं।

बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली का महत्व बहुत गहरा और धार्मिक है। यह मंत्र बृहस्पति देवता की स्तुति और पूजा के रूप में है। बृहस्पति देवता को गुरु ग्रह के रूप में पूजा जाता है, और उन्हें ज्ञान, शिक्षा, तर्क, और आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। इस स्तोत्र का प्रत्येक नाम उनके अलग-अलग गुणों, शक्तियों और विशेषताओं का वर्णन करता है। बृहस्पति धर्म (न्याय और कर्तव्य) के रक्षक हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। वे मनुष्य को सही और गलत का भेद समझने की शक्ति प्रदान करते हैं।


Guru Ashtottara Shatanamavali - 108 Times | Lord Guru Dev Mantra | Shemaroo Bhakti

बृहस्पत्यष्टोत्तरशतनामावली (Brihaspatyashtottara Satanamavali) का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व अत्यंत उच्च है। बृहस्पति को देवताओं के गुरु, ज्ञान, बुद्धि, धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। इन 108 नामों का जप करने से व्यक्ति न केवल गुरु ग्रह की कृपा प्राप्त करता है, बल्कि उसके जीवन में विद्या, तर्कशक्ति, नैतिकता, और शुभता का भी संचार होता है। विद्यार्थी, शिक्षक, और वे सभी लोग जो ज्ञान, विवेक, और सही मार्गदर्शन की आकांक्षा रखते हैं, उनके लिए बृहस्पति की उपासना विशेष फलदायी मानी गई है। बृहस्पति के 108 नामों का जप करने से गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव, राहु-गुरु दोष, या कुंडली में गुरु की स्थिति कमजोर होने पर भी सकारात्मक परिणाम मिलते हैं

ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को सबसे शुभ ग्रहों में से एक माना जाता है। उन्हें "गुरु ग्रह" कहा जाता है, और यह माना जाता है कि उनकी स्थिति कुंडली में व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। बृहस्पति की शुभ स्थिति से व्यक्ति को समृद्धि, सफलता और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। 

बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली में देवगुरु बृहस्पति (गुरु ग्रह) के 108 नामों का संकलन है। प्रत्येक नाम बृहस्पति के किसी विशेष गुण, शक्ति या स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे—गुरु (शिक्षक), गुणाकर (गुणों के भंडार), गोप्त्र (रक्षक), अव्यय (अक्षय), ज्ञानद (ज्ञान देने वाले), धर्मप्रिय (धर्म के प्रिय), शुभद (शुभता देने वाले), ब्रह्मविद्या-प्रदाता (ब्रह्मज्ञान देने वाले), सत्यप्रिय (सत्य के प्रिय), शीलवान (शीलवान), दयालु, तेजस्वी, और पापों का नाश करने वाले आदि। इन नामों का उच्चारण करते हुए साधक बृहस्पति के दिव्य गुणों का स्मरण करता है और उनसे कृपा, ज्ञान, विवेक, समृद्धि तथा शुभता की कामना करता है।

महत्त्व: बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली का जप विशेष रूप से गुरुवार के दिन, या जब कुंडली में गुरु ग्रह कमजोर हो, राहु/गुरु का चांडाल योग बने, या जीवन में शिक्षा, संतान, विवाह, धन, या धर्म संबंधी बाधाएँ आ रही हों, तब अत्यंत फलदायी माना गया है। इन नामों के जप से गुरु ग्रह का बल बढ़ता है, जिससे बुद्धि, विवेक, शिक्षा, संतान, विवाह, धन, स्वास्थ्य, समाज में सम्मान, और जीवन में शुभता प्राप्त होती है। यह नामावली साधक के पापों का क्षय करती है, मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा देती है, और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। बृहस्पति के 108 नामों का जप करने से गुरु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि, सफलता और संतुलन आता है, साथ ही सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

बृहस्पत्याष्टॊत्तर शतनामावलि का अर्थ और इसकी महत्ता क्या है

 
बृहस्पत्यष्टोत्तर शतनामावली का जप गुरुवार, गुरु ग्रह की शांति, शिक्षा, संतान, विवाह, धन, स्वास्थ्य, और जीवन में शुभता की प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है। ज्योतिष के अनुसार, गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव, राहु-गुरु के दोष, या जीवन में बार-बार आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए इन नामों का जप विशेष रूप से लाभकारी है। इससे साधक की बुद्धि, विवेक, धर्म, समाज में प्रतिष्ठा, और आध्यात्मिक उन्नति होती है। बृहस्पति के 108 नामों के जप से गुरु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, सफलता, संतुलन और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

इसके अतिरिक्त, बृहस्पति को देवताओं का गुरु, ज्ञान, धर्म, नीति, और शुभता का कारक माना गया है। बृहस्पति के नामों का जप न केवल ग्रहजन्य बाधाओं को दूर करता है, बल्कि साधक के मन को शुद्ध करता है, विवेक, धैर्य, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, और जीवन में संतुलन व स्थिरता लाता है। यह जप साधक के भीतर श्रद्धा, भक्ति, और गुरु के प्रति सम्मान को जाग्रत करता है, जिससे वह अपने जीवन में सही मार्गदर्शन, सफलता और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। इसलिए बृहस्पत्यष्टोत्तर शतनामावली का जप ज्योतिषीय, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायी और कल्याणकारी माना गया है।

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