मो सम कौन कुटिल खल कामी सूरदास जी

मो सम कौन कुटिल खल कामी सूरदास जी

कौन कुटिल खल कामी,
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहि तन दियो, तेहि बिसरावो,
ऐसो नमक हरामी।
मो सम कौन कुटिल खल कामी।


मो सम कौन कुटिल खल कामी।
कौन कुटिल खल कामी,
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहि तन दियो, तेहि बिसरावो,
ऐसो नमक हरामी।
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
कौन कुटिल खल कामी,
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहि तन दियो, तेहि बिसरावो,
ऐसो नमक हरामी।
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
 
सूरदास जी के इस भजन में, भक्त अपने आपको अत्यंत पापी, कुटिल, और कामी मानते हुए आत्मग्लानि प्रकट करता है। वह स्वीकार करता है कि भगवान ने उसे यह शरीर प्रदान किया, फिर भी उसने उन्हें भुला दिया, जो नमकहरामी (कृतघ्नता) का प्रतीक है। वह विषय-वासना में लिप्त होकर, सूअर की भांति गंदगी में रमण करता है और सत्संग सुनकर भी आलस्य महसूस करता है। वह हरि-भक्तों को छोड़कर, हरि-विमुख लोगों की सेवा में लगा रहता है। अंत में, वह स्वयं को सबसे बड़ा पापी और अधम मानते हुए, भगवान से उद्धार की प्रार्थना करता है।

मो सम कौन कुटिल खल कामी अर्थ

मो सम कौन कुटिल खल कामी।
मेरे जैसा कुटिल, दुष्ट और कामी (वासनाओं में लिप्त) और कौन होगा?

तुम सौं कहा छिपी करुणामय, सबके अंतरजामी।
हे करुणामय प्रभु, आप तो सबके हृदय के जानने वाले हैं, आपसे क्या छिपा है?

जो तन दियौ ताहि विसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी।
जिस शरीर को आपने दिया, उसी को भुला दिया; ऐसा कृतघ्न (नमकहराम) हूँ मैं।

भरि भरि द्रोह विषय कौं धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
मैं विषय-वासना में ऐसे लिप्त हूँ जैसे गाँव का सूअर गंदगी में दौड़ता है।

सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषियिनि सँग विसरामी।
सत्संग सुनकर भी मेरे हृदय में आलस्य आता है, जबकि विषयी लोगों के साथ मैं आनंदित होता हूँ।

श्रीहरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की निसि-दिन करत गुलामी।
श्रीहरि के चरणों को छोड़कर, विमुख लोगों की दिन-रात सेवा करता हूँ।

पापी परम, अधम, अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।
मैं परम पापी, अधम, अपराधी हूँ; सभी पतितों में मेरा नाम सबसे ऊपर है।

सूरदास प्रभु अधम उधारन सुनियै श्रीपति स्वामी।
सूरदास कहते हैं, हे प्रभु, आप अधमों के उद्धारक हैं; कृपया मेरी सुनिए, हे श्रीपति स्वामी।

इस भजन में आत्मग्लानि और पश्चाताप के माध्यम से भक्त अपने दोषों को स्वीकारते हुए भगवान से क्षमा और उद्धार की प्रार्थना करता है। यह भजन हमें सिखाता है कि अपने दोषों को स्वीकार कर, ईश्वर की शरण में जाने से ही मुक्ति संभव है।
 

मो सम कौन कुटिल खल कामी सूरदास जी भजन मुरलीधर जी महाराज की सुमधुर वाणी में

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