पिछम धरा में राजा रामदेव वे जोधा अजमल

पिछम धरा में राजा रामदेव वे जोधा अजमल


पूंगलगढ़ रा उजड़्या बाग में,
जद तंदूरो खनकायो,
डाल-डाल में सरगम गूंजी,
पत्तो-पत्तो हर्षायो।

लेवे वारना मनसा मालन,
जद शरण में शीश नवायो,
सुन-सुन कलियां गजरा बनायो,
मारा बाबा ने पहनायो।

पिछम धरा में राजा रामदेव,
वे जोधा अजमल वाला,
दड़िया रमता देत मारियो,
बालीनाथ ने है प्यारा।

राम रूणिजे रात पधारी,
अखंड ज्योति मालिक थारी रे,
मनसा मालन गुण तेरा गावे,
उठो कंवर, पैरों माला रे।

रंग भवन में गणपति जागा,
देव निराला सुंडधारी,
विघ्नविनाशक मंगल दाता,
रिद्धि-सिद्धि का है संगवारी।

राम रूणिजे रात पधारी,
अखंड ज्योति मालिक थारी रे,
मनसा मालन गुण तेरा गावे,
उठो कंवर, पैरों माला रे।

कैलाश पर्वत शिवजी विराजे,
वे जोधा निराकार,
जटा मुकुट में गंगा विराजे,
पार्वती ने है प्यारा।

राम रूणिजे रात पधारी,
अखंड ज्योति मालिक थारी रे,
मनसा मालन गुण तेरा गावे,
उठो कंवर, पैरों माला रे।

ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जागे,
सात समंदर रखवाला,
पल में दाता सृष्टि रचाई,
ए दाता रस देने वाला।

राम रूणिजे रात पधारी,
अखंड ज्योति मालिक थारी रे,
मनसा मालन गुण तेरा गावे,
उठो कंवर, पैरों माला रे।

चुन-चुन कलियां माला बनाई,
डाल-डाल में झंकारा,
कोयल मीठा गीत सुनावे,
बोले मोरपंखी मतवाला।

राम रूणिजे रात पधारी,
अखंड ज्योति मालिक थारी रे,
मनसा मालन गुण तेरा गावे,
उठो कंवर, पैरों माला रे।

रूणिजे रा राजा रामदेव,
खोलो थी भक्तों का ताला,
हरी शरण में भाटी हरजी बोलिया,
आप धणी हो रखवाला।

राम रूणिजे रात पधारी,
अखंड ज्योति मालिक थारी रे,
मनसा मालन गुण तेरा गावे,
उठो कंवर, पैरों माला रे।


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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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