नँद नंदन आगे नाचूँगी मीराबाई भजन

नँद नंदन आगे नाचूँगी मीराबाई भजन

 
नँद नंदन आगे नाचूँगी मीराबाई भजन

नँद-नंदन आगे नाचूँगी
नाच नाच पिय तुमहिं रिझाऊँ, प्रेमीजन को जाँचूँगी
प्रेम प्रीत का बाँध घूँघरा, मोहन के ढिंग छाजूगीं
लोक-लाज कुल की मरजादा, या मैं एक न राखूँगी
पिय के पलँगाँ जा पौढूँगी, ‘मीराँ’ हरि रँग राँचूँगी
 
मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी 
मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी 

मैं तो नाच नाच पिव रसिक रिझाऊँ 
प्रेमी जैन को जाचूँगी 
मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी
 
प्रेम प्रीत के  बांध के घुंगरू  
सूरत की कछिनी काछूँगी 
मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी 

लोक लाज कुल की मर्यादा 
यां मैं एक ना राखूँगी 
मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी 

पि के पलंगवा जा पहुँचूँगी 
मीरा हरी रंग राचूँगी 
मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी 

मैं तो नाच नाच पिव रसिक रिझाऊँ 
प्रेमी जैन को  जाचूँगी 
मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी 
 
भजन में मीरा बाई अपने आराध्य श्री कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करती हैं। वह कहती हैं कि वह श्री कृष्ण के आगे नाचेंगी, प्रेमियों को रिझाएंगी, और उनके प्रेम में रंगी रहेंगी।

मैं तो गिरधर आगे नाचूँगी | Main To Girdhar Aage Naachoongi | Mohinderjit Singh | #Krishna #Meerabai

Actress - Mrinal Kulkarni 
Choreography - Uma Dogra
Commentary - Ravi Mishra
Audio Editing - Vishesh Goswami

मीराबाई का मन श्रीकृष्णजी के प्रेम में ऐसा डूबा है कि वह उनके सामने नाचने को तैयार है, जैसे कोई दीवानी अपनी दुनिया भूल जाए। प्रेम का घुंघरू बांधकर वह श्रीकृष्णजी को रिझाना चाहती हैं, मानो हर कदम में भक्ति की मस्ती बिखर रही हो। लोक-लाज और कुल की मर्यादा को वह ठुकरा देती हैं, क्योंकि उनके लिए तो बस श्रीकृष्णजी का प्रेम ही सब कुछ है। राधारानी की तरह वह अपने प्रिय के पास पहुंचकर उनके रंग में रंग जाना चाहती हैं, जैसे कोई नदी सागर में मिलकर अपनी पहचान खो दे। यह भक्ति का ऐसा उन्माद है, जो मन को सारी बेड़ियों से आज़ाद कर देता है और श्रीकृष्णजी के चरणों में शांति देता है, जैसे कोई दीया रात के अंधेरे में भी जलता रहे। 

नंद-नंदन के आगे नाचने का मन करता है, जैसे कोई पुरानी धुन बज उठी हो दिल में। प्रेम के घुंघरू बांधकर रसिक रूप रिझाने का स्वाद ही अलग है, जहां सूरत की कछनी कसकर हर नजाकत निभाई जाए। लोक-लाज, कुल की मर्यादा सब पीछे छूट जाए, बस पिया के पलंग तक पहुंचना हो और हरि के रंग में रंग जाना हो। मीरा जैसी आत्मा का ये समर्पण सिखाता है कि सच्चा प्रेम दुनिया की रस्मों से ऊपर उठ जाता है।

​गिरधर के चरणों में खो जाना मतलब हर बंधन तोड़ देना, प्रेमियों की जाँच में रस लेना। वृंदावन की उन लीलाओं में डूबकर जीवन का सार मिलता है, जहां न कोई शोक न कोई भेदभाव। पग घुंघरू बांधे नाचना भक्ति का सबसे सहज रूप है, जो मन को बांध लेता है और रूह को उड़ा ले जाता है। ये नृत्य केवल शरीर का नहीं, बल्कि आत्मा का उन्माद है, जो हर दर्द भुला देता है।

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