गुरु पादुका स्त्रोतम लिरिक्स अर्थ
रचन: आदि शंकराचार्य
अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ १ ॥
कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ २ ॥
नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः ।
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ३ ॥
नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्याम् ।
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ४ ॥
नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्याम् ।
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ५ ॥
पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्याम् ।
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ६ ॥
शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्याम् ।
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ७ ॥
स्वार्चापराणाम् अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्याम् ।
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ८ ॥
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्याम् ।
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ९ ॥
श्री गुरु पादुका स्तोत्रम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक स्तुति है, जिसमें गुरु की पादुकाओं की महिमा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र नौ श्लोकों में विभाजित है, जिनमें गुरु की पादुकाओं की विशेषताओं और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले आशीर्वादों का उल्लेख है।
अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ १ ॥
गुरु की पादुकाएँ अनंत संसार रूपी समुद्र को पार करने के लिए नौका के समान हैं, जो भक्तों को वैराग्य का साम्राज्य प्रदान करती हैं।
कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ २ ॥
ये पादुकाएँ काव्य के समुद्र के चंद्रमा के समान हैं, जो दुर्भाग्य के दावानल को शांत करती हैं और विनम्र भक्तों की विपत्तियों को दूर करती हैं।
नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः ।
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ३ ॥
इन पादुकाओं की कृपा से दरिद्र व्यक्ति भी समृद्ध हो जाता है, और मूक व्यक्ति वाक्पटु बन जाता है।
नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्याम् ।
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ४ ॥
कमल के समान सुंदर ये पादुकाएँ मोह और अज्ञान को दूर करती हैं, और भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।
नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्याम् ।
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ५ ॥
राजाओं के मुकुट में जड़े रत्नों की चमक के समान, ये पादुकाएँ भक्तों को राजसी सम्मान प्रदान करती हैं।
पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्याम् ।
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ६ ॥
ये पादुकाएँ पापों के अंधकार को सूर्य के समान नष्ट करती हैं, और तीनों तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक) को हरती हैं।
शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्याम् ।
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ७ ॥
शम (मन का नियंत्रण) आदि षट् सम्पत्तियों को प्रदान करने वाली ये पादुकाएँ, भक्तों को भगवान विष्णु के चरणों में स्थिर भक्ति देती हैं।
स्वार्चापराणाम् अखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्याम् ।
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ८ ॥
स्वयं की पूजा करने वालों की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली, ये पादुकाएँ हृदय की शुद्धि करती हैं।
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्याम् ।
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ॥ ९ ॥
काम आदि सर्पों के लिए गरुड़ के समान, ये पादुकाएँ विवेक और वैराग्य की निधि प्रदान करती हैं, ज्ञान देती हैं और शीघ्र मोक्ष प्रदान करती हैं।
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