यहाँ मीरा बाई कहती है की उन्हें भक्ति मार्ग से विचलित करने के लिए एक और राणा जी के द्वारा उन्हें जहर दिया गया वही दूसरी और समाज में भी उन्हें लोक लाज का हवाला दिया गया, लेकिन मीरा बाई ने इसे पानी की तरह बहा दिया अर्थात उनकी कोई परवाह नहीं की। उन्होंने अपने पति की निशानियों त्याग कर दिया और लिखा मीरा कहती हैं की में किसी के रोकने से रुकने वाली नहीं हूँ। मैंने तो कुल की कानि / मर्यादा को मैंने त्याग कर दिया है और मैंने सबकुछ हरी को ही मान लिया है।