ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया भजन

ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया हाथ छुड़ा के कहाँ चले

 
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया

ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।

बंसी बजाकर, रास रचाकर,
गोपी नचाकर कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।


माखन खाया, मटकी फोड़ी,
छुपते-छुपाते कहाँ चले।।

भरी सभा में द्रौपदी सुता का,
चीर बढ़ाकर कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

गाय चराई, वंशी बजाई,
ग्वाल सखा संग कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

यमुना में जा गेंद उछाली,
नाग नथैया कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

अर्जुन का सब मोह मिटाकर,
गीता गाकर कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

तुम्हें पुकारे हम सब "राजेन्द्र",
विश्व रूप तुम कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

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सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के मनमोहक रूप का बखान है, जैसे वो हर दिल को अपनी ओर खींच लेते हैं। उनका रास रचाना, बंसी की मधुर तान छेड़ना, और गोपियों के संग नाचना एक ऐसी लीलामय दुनिया रचता है, जो हर किसी को आनंद में डुबो देती है। ये लीला सिखाती है कि सच्चा सुख उस प्रेम में है, जो मन को बंधनों से मुक्त कर दे।

श्रीकृष्णजी का माखन चुराना और मटकी फोड़ना उनकी बालसुलभ चंचलता को दिखाता है। ये हरकतें बताती हैं कि जीवन में छोटी-छोटी खुशियाँ भी बड़ा आनंद दे सकती हैं। जैसे बच्चा बिना डर के खेलता है, वैसे ही मन को हल्का रखने से जीवन का बोझ कम हो जाता है।

जब द्रौपदी ने पुकारा, तो श्रीकृष्णजी ने चीर बढ़ाकर उनकी लाज रखी। ये उदाहरण दिखाता है कि जो सच्चे मन से पुकारता है, उसकी रक्षा के लिए वो हमेशा मौजूद हैं। ये विश्वास दिलाता है कि मुश्किल वक्त में भी कोई न कोई साथ देता है, अगर मन में श्रद्धा हो। यमुना में कालिय नाग को हराने की बात हो या अर्जुन को गीता का उपदेश देना, श्रीकृष्णजी हर रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देते हैं। कालिय नाग को नथना बुरे विचारों को काबू करने की सीख देता है, तो गीता का ज्ञान जीवन के भटकाव को दूर करने का रास्ता दिखाता है। ये बताता है कि सही मार्ग पर चलने के लिए मन को संयम और समझ की जरूरत है।

Singer,-rajendra prasad soni
Lyricist -rajendra prasad soni
Music by-ranendra prasad soni 

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