ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया

ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया हाथ छुड़ा के कहाँ चले

 ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।

बंसी बजाकर, रास रचाकर,
गोपी नचाकर कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

माखन खाया, मटकी फोड़ी,
छुपते-छुपाते कहाँ चले।।

भरी सभा में द्रौपदी सुता का,
चीर बढ़ाकर कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

गाय चराई, वंशी बजाई,
ग्वाल सखा संग कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

यमुना में जा गेंद उछाली,
नाग नथैया कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

अर्जुन का सब मोह मिटाकर,
गीता गाकर कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।

तुम्हें पुकारे हम सब "राजेन्द्र",
विश्व रूप तुम कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया।।


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