नील रंग में पीले रंग में
राधा तुझे रंग दू
धुंध लूंगा कब तक छुपेगी तू
मुझे ना जाने ओ दीवाने
रोज ही में देखु
मुझ पर ना चले तेरा जादू
चल कभी मिल तू
मिल बरसाना
खेले फूलों से होली ये ज़माना
बिना रनागों के कैसी होली
होगा ना जो रंगो से नहाना
नील रंग में पीले रंग में
राधा तुझे रंग दू
धुंध लूंगा कब तक छुपेगी तू
मुझे ना जाने ओ दीवाने
रोज ही में देखु
मुझ पर ना चले तेरा जादू
राधा तुझे रंग दू
धुंध लूंगा कब तक छुपेगी तू
मुझे ना जाने ओ दीवाने
रोज ही में देखु
मुझ पर ना चले तेरा जादू
चल कभी मिल तू
मिल बरसाना
खेले फूलों से होली ये ज़माना
बिना रनागों के कैसी होली
होगा ना जो रंगो से नहाना
नील रंग में पीले रंग में
राधा तुझे रंग दू
धुंध लूंगा कब तक छुपेगी तू
मुझे ना जाने ओ दीवाने
रोज ही में देखु
मुझ पर ना चले तेरा जादू
कान्हा तेरा जादू Kanha Tera Jadoo, VIKRAM RATHOD,BABY RHYTHM, New Krishna Bhajan, Full HD Video
श्री कृष्ण जी के नाम : श्री कृष्ण जी के १०८ नाम हैं जिन्हे कृष्ण जी के प्रिय नाम कहे जाते हैं। कृष्ण जी के १०८ नाम हैं यथा कृष्ण ,कमलनाथ, वासुदेव, सनातन, वसुदेवात्मज, पुण्य, लीलामानुष विग्रह, श्रीवत्स कौस्तुभधराय, यशोदावत्सल, हरि, चतुर्भुजात्त चक्रासिगदा, सङ्खाम्बुजा युदायुजाय, देवाकीनन्दन, श्रीशाय, नन्दगोप प्रियात्मज, यमुनावेगा संहार, बलभद्र प्रियनुज, पूतना जीवित हर, शकटासुर भञ्जन, नन्दव्रज जनानन्दिन, सच्चिदानन्दविग्रह, नवनीत विलिप्ताङ्ग, नवनीतनटन, मुचुकुन्द प्रसादक, षोडशस्त्री सहस्रेश, त्रिभङ्गी, मधुराकृत, शुकवागमृताब्दीन्दवे, गोविन्द3, योगीपति आदि जिन में से गोपाल, गोविन्द, मोहन, हरी, बांके बिहारी, श्याम ज्यादा लोकप्रिय हैं।
श्री कृष्ण जी का रंग : कुछ लोगों का मानना है की श्री कृष्ण जी का रंग मेघ श्यामल था, मतलब काला नीला और सफ़ेद। ऐसी मान्यता है की गोपियाँ कृष्ण के सांवले रंग के कारन उन्हें चिढ़ाती थी। चूँकि श्री कृष्ण जी विष्णु जी का अवतार थे इसलिए उनके अंदर सागर का नीला रंग समां गया था इसलिए उनका रंग कुछ नीला सा था। एक पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण जी के बाल्य काल में वो बलराम और अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के तट पर खेला करते थे। जो भी उस नदी में जाता था उसको कालिया सांप खा जाता था लेकिन श्री कृष्ण ने नदी में जाकर कालिया सांप का वध किया जिससे उनका रंग श्याम हो गया था।
श्री कृष्ण रास लीला : श्री कृष्ण जी की रास लीला के बारे में सभी जानते हैं लेकिन श्री राधा का उल्लेख किसी धार्मिक ग्रन्थ में नहीं है और श्री कृष्ण ने राधा से विवाह नहीं किया। श्री राधा जी श्री कृष्ण जी उम्र में पांच वर्ष बड़ी थी और माता यशोदा जी कृष्ण जी के राधा जी से विवाह के खिलाफ थीं। कुछ लोगों की मान्यता है की श्री कृष्ण और राधा जी का प्रेम अलौकिक प्रेम था, वह दैहिक प्रेम नहीं था। एक मत के अनुसार श्री राधा जी ने विवाह से इंकार कर दिया था क्यों की उन्हें लगता था की वे महलों के जीवन के लिए उनके लिए ठीक नहीं था। एक अन्य मत के अनुसार श्री कृष्ण जी ने ही विवाह से इंकार कर दिया था और तर्क दिया की एक आत्मा से कोई कैसे विवाह कर सकता है, क्योंकि उनका प्रेम दैहिक नहीं था।
श्री कृष्ण जी की राणियां : श्री रुक्मणि जी जो की श्री कृष्ण जी की पत्नी थी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। रुक्मिणी विधर्भ के राजा भीष्म की पुत्री थी। ऐसी मान्यता है की एक बार रुकमिणी जी ने नारद से श्रीकृष्ण जी के अद्भुद गुणों के बारे में सुना और उनसे विवाह का मानस बना लिया। रुक्मिणी के भाई ने इसका विरोध किया तो श्री कृष्ण ने बलपूर्वक रुक्मिणी से विवाह कर लिया। श्री कृष्ण जी ने कुल ८ विवाह किये थे और उन्हें श्री रुक्मिणी जी सबसे प्रिय थीं। श्री कृष्ण जी की रानियों के नाम हैं- रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, सत्या, कालिन्दी, लक्ष्मणा, मित्रविंदा और भद्रा।
श्री कृष्ण जी की मृत्यु : मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण जी को जरा नाम के बहेलिये का तीर लगा था और उन्होंने मानव शरीर छोड़ा था। मान्यता है की एक बार श्री कृष्ण जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे थे। तभी वहां जरा नाम का शिकारी आया जो शिकार करने के उद्देश्य से जंगल में विचरण कर रहा था। उसे दूर से श्री कृष्ण जी के पैर किसी हिरन की मुख के समान लगा और उसने निशाना लगा कर तीर चला दिया। तीर श्री कृष्ण जी के तलवे में लगा। जब बहेलिये ने पास आकर देखा तो उसे अपनी गलती के लिए पश्चाताप हुआ। श्री कृष्ण ने उस बहेलिये को कहा की उसने नियति के अनुसार कार्य किया है और उसे स्वर्ग प्राप्त होगा। जरा के तीर के कारन ही श्री कृष्ण ने मानव देह को छोड़ दिया था। वैसे श्री कृष्ण जी ने मानव देह छोड़ी थी। आत्मा के रूप में वे आज भी विराजमान हैं।
कौन थी राधा जी : श्री करुणा मई सरकार श्री राधा जी के बारे में जानना सौभाग्य की बात है लेकिन जितना हम जानते हैं वो तो श्री राधा जी के चरणों की धूल के कण के समान है। श्री राधा जी का नाम लेने मात्र से यह मन पवित्र हो जाता है। द्वापर युग में श्री राधा जी वृषभानु जी के घर पर प्रकट हुयी है। राधा श्री कृष्ण की विख्यात प्राणसखी, उपासिका हैं और राधा-कृष्ण शाश्वत प्रेम का प्रतीक हैं।राधा जी की माता का नाम कीर्ति था। राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था और यहीं पर श्री राधा जी का मंदिर है। बरसाना के मध्य श्री राधा की जन्मस्थली माना जाने वाला श्री राधावल्ल्भ मन्दिर स्थित है।ऐसी मान्यता है की कंस के कारन जब नन्द जी ने बरसाना का रुख किया तो वृषभानु अपने परिवार सहित उनके पीछे-पीछे रावल ग्राम को त्याग कर बरसाना आ गए और बरसाना में आकर रहने लगे।लोगों का मानना है की राधा जी का जन्म बरसाना में हुआ था। राधा जी का भव्य मंदिर बरसाना के पहाड़ियों में स्थापित है। बरसाना में भद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बड़ी रौनक रहती है। राधाष्टमी के पावन अवसर पर राधा जी के महल को सजाया जाता है। राधा जी को लड्डुओं का भोग लगाकर मोर को खिलाया जाता है जिसे राधा का प्रतीक माना जाता है।
श्री कृष्ण जी के नाम : श्री कृष्ण जी के १०८ नाम हैं जिन्हे कृष्ण जी के प्रिय नाम कहे जाते हैं। कृष्ण जी के १०८ नाम हैं यथा कृष्ण ,कमलनाथ, वासुदेव, सनातन, वसुदेवात्मज, पुण्य, लीलामानुष विग्रह, श्रीवत्स कौस्तुभधराय, यशोदावत्सल, हरि, चतुर्भुजात्त चक्रासिगदा, सङ्खाम्बुजा युदायुजाय, देवाकीनन्दन, श्रीशाय, नन्दगोप प्रियात्मज, यमुनावेगा संहार, बलभद्र प्रियनुज, पूतना जीवित हर, शकटासुर भञ्जन, नन्दव्रज जनानन्दिन, सच्चिदानन्दविग्रह, नवनीत विलिप्ताङ्ग, नवनीतनटन, मुचुकुन्द प्रसादक, षोडशस्त्री सहस्रेश, त्रिभङ्गी, मधुराकृत, शुकवागमृताब्दीन्दवे, गोविन्द3, योगीपति आदि जिन में से गोपाल, गोविन्द, मोहन, हरी, बांके बिहारी, श्याम ज्यादा लोकप्रिय हैं।
श्री कृष्ण जी का रंग : कुछ लोगों का मानना है की श्री कृष्ण जी का रंग मेघ श्यामल था, मतलब काला नीला और सफ़ेद। ऐसी मान्यता है की गोपियाँ कृष्ण के सांवले रंग के कारन उन्हें चिढ़ाती थी। चूँकि श्री कृष्ण जी विष्णु जी का अवतार थे इसलिए उनके अंदर सागर का नीला रंग समां गया था इसलिए उनका रंग कुछ नीला सा था। एक पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण जी के बाल्य काल में वो बलराम और अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के तट पर खेला करते थे। जो भी उस नदी में जाता था उसको कालिया सांप खा जाता था लेकिन श्री कृष्ण ने नदी में जाकर कालिया सांप का वध किया जिससे उनका रंग श्याम हो गया था।
श्री कृष्ण रास लीला : श्री कृष्ण जी की रास लीला के बारे में सभी जानते हैं लेकिन श्री राधा का उल्लेख किसी धार्मिक ग्रन्थ में नहीं है और श्री कृष्ण ने राधा से विवाह नहीं किया। श्री राधा जी श्री कृष्ण जी उम्र में पांच वर्ष बड़ी थी और माता यशोदा जी कृष्ण जी के राधा जी से विवाह के खिलाफ थीं। कुछ लोगों की मान्यता है की श्री कृष्ण और राधा जी का प्रेम अलौकिक प्रेम था, वह दैहिक प्रेम नहीं था। एक मत के अनुसार श्री राधा जी ने विवाह से इंकार कर दिया था क्यों की उन्हें लगता था की वे महलों के जीवन के लिए उनके लिए ठीक नहीं था। एक अन्य मत के अनुसार श्री कृष्ण जी ने ही विवाह से इंकार कर दिया था और तर्क दिया की एक आत्मा से कोई कैसे विवाह कर सकता है, क्योंकि उनका प्रेम दैहिक नहीं था।
श्री कृष्ण जी की राणियां : श्री रुक्मणि जी जो की श्री कृष्ण जी की पत्नी थी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। रुक्मिणी विधर्भ के राजा भीष्म की पुत्री थी। ऐसी मान्यता है की एक बार रुकमिणी जी ने नारद से श्रीकृष्ण जी के अद्भुद गुणों के बारे में सुना और उनसे विवाह का मानस बना लिया। रुक्मिणी के भाई ने इसका विरोध किया तो श्री कृष्ण ने बलपूर्वक रुक्मिणी से विवाह कर लिया। श्री कृष्ण जी ने कुल ८ विवाह किये थे और उन्हें श्री रुक्मिणी जी सबसे प्रिय थीं। श्री कृष्ण जी की रानियों के नाम हैं- रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, सत्या, कालिन्दी, लक्ष्मणा, मित्रविंदा और भद्रा।
श्री कृष्ण जी की मृत्यु : मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण जी को जरा नाम के बहेलिये का तीर लगा था और उन्होंने मानव शरीर छोड़ा था। मान्यता है की एक बार श्री कृष्ण जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे थे। तभी वहां जरा नाम का शिकारी आया जो शिकार करने के उद्देश्य से जंगल में विचरण कर रहा था। उसे दूर से श्री कृष्ण जी के पैर किसी हिरन की मुख के समान लगा और उसने निशाना लगा कर तीर चला दिया। तीर श्री कृष्ण जी के तलवे में लगा। जब बहेलिये ने पास आकर देखा तो उसे अपनी गलती के लिए पश्चाताप हुआ। श्री कृष्ण ने उस बहेलिये को कहा की उसने नियति के अनुसार कार्य किया है और उसे स्वर्ग प्राप्त होगा। जरा के तीर के कारन ही श्री कृष्ण ने मानव देह को छोड़ दिया था। वैसे श्री कृष्ण जी ने मानव देह छोड़ी थी। आत्मा के रूप में वे आज भी विराजमान हैं।
कौन थी राधा जी : श्री करुणा मई सरकार श्री राधा जी के बारे में जानना सौभाग्य की बात है लेकिन जितना हम जानते हैं वो तो श्री राधा जी के चरणों की धूल के कण के समान है। श्री राधा जी का नाम लेने मात्र से यह मन पवित्र हो जाता है। द्वापर युग में श्री राधा जी वृषभानु जी के घर पर प्रकट हुयी है। राधा श्री कृष्ण की विख्यात प्राणसखी, उपासिका हैं और राधा-कृष्ण शाश्वत प्रेम का प्रतीक हैं।राधा जी की माता का नाम कीर्ति था। राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था और यहीं पर श्री राधा जी का मंदिर है। बरसाना के मध्य श्री राधा की जन्मस्थली माना जाने वाला श्री राधावल्ल्भ मन्दिर स्थित है।ऐसी मान्यता है की कंस के कारन जब नन्द जी ने बरसाना का रुख किया तो वृषभानु अपने परिवार सहित उनके पीछे-पीछे रावल ग्राम को त्याग कर बरसाना आ गए और बरसाना में आकर रहने लगे।लोगों का मानना है की राधा जी का जन्म बरसाना में हुआ था। राधा जी का भव्य मंदिर बरसाना के पहाड़ियों में स्थापित है। बरसाना में भद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बड़ी रौनक रहती है। राधाष्टमी के पावन अवसर पर राधा जी के महल को सजाया जाता है। राधा जी को लड्डुओं का भोग लगाकर मोर को खिलाया जाता है जिसे राधा का प्रतीक माना जाता है।
ब्रिज में राधा जी का महत्त्व वर्णातीत है। राधा जी को पौराणिक आधार पर कृष्ण वल्ल्भा के नाम से जाना जाता है। श्री राधा जी की पूजा के बैगैर श्री कृष्ण जी की आराधना अधूरी मानी जाती है। श्री कृष्ण जी की पूजा अर्चना के समय पहले राधा जी की पूजा की जाती है क्यों की राधा जी को श्री कृष्ण जी की प्राण अधिष्ठात्री माना जाता है। राधाष्टमी का पावन पर्व पर हर कोई राधामय हो जाता है। राधा अष्टमी के दिन व्रत किया जाता है। इस रोज व्रत करने से धन धान्य की कमी नहीं होती और जातक धन की आवक बनी रहती है।
राधा जी के विख्यात नाम : राधा नाम जाप प्रेम और सुख का वरदान।
राधा जी के नाम की महिमा अपार है। राधा जी के पवित्र नाम की महिमा किसी से छुपी नहीं है। राधा जी के नाम जाप से जीवन में प्रेम और सुख की बयार आती है जो जीवन को आनंदित कर देती है। रिश्तों में प्रेम और जीवन में शांति का अनुभव होता है। चाहे लाड़ली जी कहो या बरसाने वाली राधा, अलौकिक रूप से जीवन में परिवर्तन लाने में सक्षम हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री विष्णु जी ने स्वंय को राधा कहा है। ये राधा नाम का ही चमत्कार है। जो भी भक्त राधा जी का नाम जपता है उसे राधा जी अपने शरण में लेती हैं और ऐसे आशीर्वाद देती है जैसे कोई मा अपने बच्चे को गोद में बैठकर लाड करती है। अगर जीवन में प्रेम का वरदान चाहिए तो राधा नाम जपे। जब आप राधा जी का नाम जपते हैं तो स्वतः ही श्री कृष्ण जी का आशीर्वाद प्राप्त होने लगता है, क्यों की श्री राधा जी और कृष्ण एक ही हैं, अलग अलग नहीं। श्री राधा रानी को भगवान कृष्ण की दैवीय प्रेमिका के रूप में जाना जाता है और इनका अवतार कमल के फूल से हुआ है। भगवन श्री कृष्ण श्री विष्णु जी के आठवे अवतार थे। श्री कृष्ण के भक्त राधाष्टमी को बड़ी ही आस्था के साथ मनाते हैं। भाद्रपद माह में भारतीय पंचाग के अनुसार राधाष्टमी होती है।
श्रीकृष्ण और राधारानी के निःस्वार्थ दैवीय प्रेम बंधन को दर्शाता है राधाष्टमी तथा साथ ही भगवान और मनुष्य के बीच एक अद्वितीय संबंध का प्रतीक भी हैं।
राधाष्टमी के दिवस अगर राधा जी के नाम को जपा जाए तो अलोकिक लाभ मिलता है।
श्री राधा जी के नाम।
- राधा,
- रासेश्वरी,
- रम्या
- कृष्णमत्राधिदेवता,
- सर्वाद्या,
- सर्ववन्द्या,
- वृन्दावनविहारिणी,
- वृन्दाराधा,
- रमा,
- अशेषगोपीमण्डलपूजिता,
- सत्या,
- सत्यपरा,
- सत्यभामा,
- श्रीकृष्णवल्लभा,
- वृषभानुसुता,
- गोपी,
- मूल प्रकृति,
- ईश्वरी,
- गान्धर्वा,
- राधिका,
- रम्या,
- रुक्मिणी,
- परमेश्वरी,
- परात्परतरा,
- पूर्णा,
- पूर्णचन्द्रविमानना
- भुक्ति-मुक्तिप्रदा और
- भवव्याधि-विनाशिनी।
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