होली ब्रज के होली गीत लिरिक्स
होली ब्रज के होली गीत लिरिक्स
ब्रज की होली से भला कौन परिचित नहीं होगा। यु तो पुरे देश में होली और होली के गीतों का अपना महत्त्व है लेकिन ब्रज परिवेश में इसका आनंद ही कुछ और है। फाल्गुन मास आते ही ब्रज में एक अलग सा ही रंग घुल जाता है। इसे महसूस किया जा सकता है ब्रज आकर। ऐसा नहीं है की ब्रज में केवल लट्ठमार होली ही खेली जाती हो, यहाँ की फूलो की होली भी काफी प्रसिद्द है। लोकगीतों के साथ फूलो की होली का अपना उल्लास है। इसमें मुख्य रूप से कलाकार / आम जन भी कृष्ण और गोपियों का प्रतीक बनकर होली के गीतों के साथ फूलो की होली को खेलते हैं। अबीर और गुलाल को भी मुख्य रूप से प्राकृतिक रूप से ही बनाया जाता है। आज सुनते हैं ब्रज अंचल में होली के कुछ ख़ास गीत।
आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
होरी तो होरी बरजोरी रे रसिया
उड़त अबीर गुलाल कुमकुमा
केशर की पिचकारी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
उतते ग्वाल बाल सब आवत,
इत वृषभान दुलारी रे रसिया।
आज बिरज में होरी रे रसिया
बाजत बीन मृदंग पखावज,
गावत दे दे तारी रे रसिया।
आज बिरज में होरी रे रसिया
श्याम श्यामली खेलें होरी,
अद्भुत रूप तिहारों रे रसिया।
आज बिरज में होरी रे रसिया
अपने अफने घर से निकली
कोई गोरी कोई कारी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
होली खेलन आयो श्याम
होली खेलन आयो श्याम
आज याको रंग में बोरो रे
होली खेलन आयो श्याम
आज याको रंग में बोरो रे
कोरे कोरे कलश मंगाय सखी री
उसमें केसर घोरी रे
होली खेलन आयो श्याम
आज याको रंग में बोरो रे
मुख पै मल्यो गुलाल सखी री
कीन्हों काले ते गोरी रे
होली खेलन आयो श्याम
आज याको रंग में बोरो रे
हरे हरे बांस की पोरी सखी री
छीन छपट करी चोरी रे
होली खेलन आयो श्याम
आज याको रंग में बोरो रे
लोक लाज कुल की मर्यादा
सखी! फागुन में छोड़ी रे
होली खेलन आयो श्याम
आज याको रंग में बोरो रे
आज बृज में होली रे रसिया।
आज बृज में होली रे रसिया।
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥
अपने अपने घर से निकसी,
कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया।
कौन गावं केकुंवर कन्हिया,
कौन गावं राधा गोरी रे रसिया।
नन्द गावं के कुंवर कन्हिया,
बरसाने की राधा गोरी रे रसिया।
कौन वरण के कुंवर कन्हिया,
कौन वरण राधा गोरी रे रसिया।
श्याम वरण के कुंवर कन्हिया प्यारे,
गौर वरण राधा गोरी रे रसिया।
इत ते आए कुंवर कन्हिया,
उत ते राधा गोरी रे रसिया।
कौन के हाथ कनक पिचकारी,
कौन के हाथ कमोरी रे रसिया।
कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी,
राधा के हाथ कमोरी रे रसिया।
उडत गुलाल लाल भए बादल,
मारत भर भर झोरी रे रसिया।
अबीर गुलाल के बादल छाए,
धूम मचाई रे सब मिल सखिया।
चन्द्र सखी भज बाल कृष्ण छवि,
चिर जीवो यह जोड़ी रे रसिया।
मथुरा की कुंज गलिन में
मथुरा की कुंज गलिन में
होरी खेल रहे नंदलाल
मोहे भर पिचकारी मारी
साड़ी की आब उतारी
झूमर को कर दियो नाश
मथुरा की कुंज गलिन में
होरी खेल रहे नंदलाल
मोरे सिर पर धरी कमोरी,
मोसे बहुत करी बरजोरी
मोरे मुख पर मलो गुलाल
मथुरा की कुंज गलिन में
होली खेल रहे नंदलाल
नैनन से मोहे गारी दई, पिचकारी दई
नैनन से मोहे गारी दई, पिचकारी दई,
हो होली खेली न जाय, होली खेली न जाय |
काहे लंगर लंगुराई मोसे कीन्ही,
केसर-कीच कपोलन दीनी,
लिए गुलाल खड़ा मुसकाय, मोसे नैन मिलाए,
मोपे नेह लुटाय, होली खेली न जाय ||
जरा न कान करे काहू की,
नजर बचाए भैया बलदाऊ की,
पनघट से घर तक बतराय, मोरे आगे-पीछे आय,
मोरी मटकी बजाय, होली खेली न जाय ||
चुपके से आय कुमकुमा मारे,
अबीर-गुलाल शीश पे डारे,
यह ऊधम मेरे सासरे जाय, मेरी सास रिसाय,
ननदी गरियाय, होली खेली न जाय ||
होली के दिनों में मोसे दूनों-तीनों अटके,
शालिग्राम जाय नहीं हट के,
अंग लिपट मोसे हा-हा खाय, मोरे पइयाँ पर जाय,
झूटी कसमें खाय, होली खेली न जाय ||