कुरजा राजस्थानी सोंग लिरिक्स
सूती ने आयो रे जंजाळ
सुपना रे बैरी झूठो क्यों आयो रे
कुरजां तू म्हारी बैनडी ए, सांभळ म्हारी बात
ढोला तणे ओळमां भेजूं थारे लार।
कुरजां ए म्हारो भंवर मिला देनी ए
सुपनो जगाई आधी रात में
तनै मैं बताऊँ मन की बात
कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ
संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ
तूं छै कुरजां म्हारे गाँव की
लागे धर्म की भान
कुरजां ऐ राण्यो भंवर मिलाद्यो ऐ
संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ
पांखां पै लिखूं थारै ओळमों
चान्चां पै सात सलाम
संदेशो म्हारै पिया ने पुगाद्यो ऐ
कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ
लश्करिये ने यूँ कही
क्यूँ परणी छी मोय
परण पाछे क्यों बिसराई रे
कुरजां ऐ भंवर मिलाद्यो ऐ
कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ
ले परवानो कुरजां उड़ गई
गई-गई समदर रे पार
संदेशो पिया की गोदी में नाख्यो जाय
संदेशो गोरी को पियाजी ने दीन्यो जाय
थारी धण री भेजी मैं आ गई
ल्याई जी संदेशो ल्यो थे बांच
थे गोरी धण ने क्यों छिटकाई जी
कुरजां ऐ साँची बात बताई जी
के चित आयो थारे देसड़ो
के चित आयो माय’र बाप
साथीड़ा म्हाने सांच बतादे रे
उदासी कियां मुखड़े पे छाई रे
आ ल्यो राजाजी थारी चाकरी
ओ ल्यो साथीड़ा थांरो साथ,
संदेशो म्हारी मरवण को आयोजी
गोरी म्हाने घरां तो बुलाया जी
नीली घोड़ी नौ लखी
मोत्यां से जड़ी रे लगाम
घोड़ी ऐ म्हाने देस पुगाद्यो जी
गोरी से म्हाने बेगा मिलाद्यो जी
रात ढल्याँ राजाजी रळकिया
दिनड़ो उगायो गोरी रे देस
कुरजां ऐ सांचो कोल निभायो ऐ
कुरजां ऐ राण्यो भंवर मिलाया ऐ
सुपनो जगाई आधी रात में
तने मैं बतायी मन की बात
कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाया ऐ
सुपनो रे बीरा फेरूँ फेरूँ आजे रे
KURJAN|Folk song|Rajsthan Royal Song|कुरजां|एक विरह गीत
Rajasthani lok geet
राजस्थानी विरह गीत by इंदर जी विरम,folk song
Royal Rajasthan Folk Song
Mahfil Geet,Vivah Geet
Royal wadding Party LIVE
'कुरजां' पक्षी विरहिणी नायिका और उसके परदेश गए पति के बीच दूत का कार्य करती है। इस गीत की शुरुआत नायिका के रंग महल में सोए रहने और आधी रात को एक झूठे सपने से जागने की पीड़ा से होती है, जहाँ वह सपने को 'जंजाळ' (बखेड़ा) और 'झूठो बैरी' कहकर पुकारती है, और अपनी मनोव्यथा का निवारण अपनी धर्म-बहन कुरजां से करने का आग्रह करती है। नायिका कुरजां को अपने 'भंवर' (पति) तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए भेजती है, अपने पंखों पर 'ओळमों' (उलाहना) और चोंच पर 'सलाम' लिखकर अपनी विरह वेदना को साकार करती है, साथ ही यह प्रश्न भी करती है कि पति ने विवाह के बाद उसे क्यों बिसरा दिया।
कुरजां तुरंत परवाना लेकर समुद्र पार करके पति (राजाजी/लश्करिये) की गोद में संदेश पहुँचाती है, और उससे यह प्रश्न करती है कि उसने अपनी पत्नी को क्यों भुला दिया है। संदेश पढ़कर राजाजी भावुक हो जाते हैं, वह तुरंत अपनी 'चाकरी' (नौकरी) और साथियों का साथ छोड़कर, कुरजां से अपनी उदासी का कारण पूछने के बाद, अपनी मोतियों से जड़ी नीली घोड़ी पर सवार होकर पत्नी से शीघ्र मिलने के लिए रवाना हो जाते हैं। गीत का सुखद अंत इस बात से होता है कि रात बीतने और दिन उगने के साथ ही राजाजी अपनी गोरी के देश पहुँच जाते हैं, और नायिका कुरजां को धन्यवाद देते हुए कहती है कि उसने अपना 'सांचो कोल' (सच्चा वादा) निभाया
